अगले साल होने जा रहे पंजाब चुनाव में किसानों का मुद्दा काफी अहम रहने वाला है. तीनों कृषि कानूनों के वापस होने के बाद किसान आंदोलन की जीत जरूर रही है, लेकिन ये लड़ाई अभी बाकी है. उसी लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा संग आंदोलन करने वाले 22 संगठन अब साथ आ रहे हैं.
गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी अपनी खुद की पार्टी लॉन्च कर दी है. अब जो पंजाब रण अभी तक तीन दलों के बीच लड़ा जा रहा था, इसमें एक एक मजबूत चौथे प्रतिद्वंदी की एंट्री हो ली है. अब किसानों की ये पार्टी किसानों को कितना रिझा पाती है ये तो समय बताएगा, लेकिन पंजाब के गांवों में माहौल जरूर बदलता दिख रहा है. कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां पर इन किसानों की पार्टी को समर्थन भी मिल रहा है और एक नई उम्मीद भी दिखाई पड़ रही है.
चुन्नी गांव के किसानों से जब आजतक ने बात की तो कई ऐसे सामने आए जिनके मुताबिक अभी तक किसी दल ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया. ऐसे में उन्होंने इस नई पार्टी से पूरी उम्मीद बांध रखी है. एक नौजवान किसान भी मानता है कि अगर उनके मुद्दों को कोई उठाने वाला है तो वो किसानों की बनाई गई ये नई पार्टी है. वे पूरा विश्वास जता रहे हैं कि एमएसपी के मुद्दे से लेकर महंगाई तक, हर मुद्दे पर उनकी पार्टी न्याय दिलवाएगी.
अब अगर किसानों की इस पार्टी को काफी ज्यादा उम्मीदें बंध गई हैं तो दूसरे बड़ दलों की टेंशन काफी हाई है. जिस चुनाव में किसानों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे हो रहे हैं, उस बीच अब किसानों की ही पार्टी से लड़ना सभी के लिए चुनौती बन गया है. ना खुलकर विरोध किया जा सकता है और ना ही समर्थन. ऐसे में सभी पार्टियां इस नए दल को लेकर संभलकर बयान दे रही हैं.
आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा कहते हैं कि अभी तो शुरुआती दिन हैं, ऐसे में कोई कमेंट नहीं किया जा सकता. हमारी पार्टी तो हमेशा से किसानों के लिए खड़ी रहती है. वैसे भी जिन किसानों ने बीजेपी के हाथों इतना दर्द झेला हो, वो उस पार्टी को तो कभी वोट नहीं देगी. वहीं कांग्रेस भी सिर्फ यही कह रही है कि लोकतंत्र में हर पार्टी का चुनाव लड़ने के लिए स्वागत है. उनकी पार्टी भी हमेशा से ही किसानों के हित के लिए खड़ी रही है.
वहीं बीजेपी अभी भी पीएम नरेंद्र मोदी को ही अपना सबसे बड़ा चेहरा मान रही है. कह रही है कि उन्हीं के दम पर किसानों का वोट जीता जाएगा. ये भी कहा जा रहा है कि मोदी सरकार ने किसानों के लिए काफी कुछ किया है. लेकिन अब किसान खुद किस ओर जाते हैं, उन्हें किसानों वाली पार्टी का समर्थन करना है या फिर पारंपरिक दलों में से किसी को चुनना है, ये आने वाले कुछ महीने तय कर लेंगे.