पंजाब कांग्रेस में कई दिनों की खींचतान के बाद रविवार को चरणजीत सिंह चन्नी कैबिनेट का गठन हो गया है, जिसमें 15 नए मंत्रियों ने शपथ ली. मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अपनी-अपनी सियासी चाल चल रहे थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान के आगे किसी भी नेता की नहीं चली. पंजाब में भविष्य की लीडरशिप को खड़ी करने के लिए राहुल गांधी ने अपने यूथ ब्रिगेड के नेताओं को खास तरजीह दी है.
हाईकमान का पंजाब में पकड़ बनाने का प्लान
दरअसल, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के साढ़े चार साल के राज में जिस तरह से कांग्रेस हाईकमान की सियासी पकड़ कमजोर हो गई थी, नेतृत्व परिवर्तन और नई कैबिनेट के जरिए राहुल गांधी ने उसे दोबारा से बनाने का प्रयास किया है. ऐसे में कांग्रेस हाईकमान ने न तो मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की ज्यादा चलने दी है और न ही नवजोत सिद्धू के करीबी नेताओं को मंत्रिमंडल में अहमियत मिली.
चरणजीत सिंह चन्नी के मंत्रिमंडल की 18 सदस्यी टीम तैयार हो गई है. कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार में शामिल रहे आठ मंत्री चन्नी कैबिनेट में अपनी जगह बनाने में सफल रहे हैं. कैप्टन के करीबी पांच मंत्रियों की छुट्टी हो गई है और उनकी जगह सात नए चेहरे शामिल किए हैं. इनमें रणदीप सिंह नाभा, राजकुमार वेरका, संगत सिंह गिलजियां, परगट सिंह, अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग और गुरकीरत सिंह कोटली नए चेहरे के तौर पर शामिल किए गए हैं.
राहुल के करीबी नेताओं को मिली जगह
पंजाब कैबिनेट में राहुल गांधी अपनी यूथ ब्रिगेड को एंट्री कराने में सफल रहे हैं. विजय इंद्र सिंगला, भारत भूषण आशु, अमरिंदर सिंह राजा वडिंग, कुलजीत नागरा ये सभी वह चेहरे हैं जो राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. 2012 के चुनाव में राहुल गांधी ने अपने कोटे से जिन छह युवाओं को आगे किया था उनमें नागरा और राजा वंडिग भी शामिल थे. इस तरह से कांग्रेस हाईकमान का असली मकसद पंजाब की सियासत में दबदबा फिर से कायम करना है और भविष्य की लीडरशिप को आगे लाने की रणनीति मानी जा रही है.
पंजाब में सबसे वरिष्ठ मंत्री ब्रह्म मोहिंदरा हिंदू चेहरा व छह बार के विधायक हैं. वह हाईकमान के करीबियों में माने जाते हैं और सरकार के संकट मोचक रहे हैं. मनप्रीत बादल पांच बार के विधायक हैं और राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. राणा गुरजीत सिंह की 2018 में अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद वापसी हुई है, जिनकी एंट्री का विरोध हो रहा था. इसके बावजूद राहुल ने उन्हें तवज्जो दी है. इसका सीधा संदेश है कि अब पंजाब में कांग्रेस हाईकमान के मनमुताबिक फैसले होंगे.
सिद्धू के करीबी नेताओं को नहीं मिली जगह
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के इलाके से मदन लाल जलालपुर को सिद्धू कैबिनेट में एंट्री कराना चाहते थे, लेकिन हाईकमान इस पर राजी नहीं हुआ. हालांकि, परगट सिंह और राजा वडिंग को मंत्रिमंडल में जगह मिली है, लेकिन उन्हें कांग्रेस हाईकमान के नजदीकियों के चलते. ऐसे ही चरणजीत सिंह चन्नी और डिप्टीसीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा अपने कई करीबी नेताओं को मंत्री की कुर्सी दिलाने की लॉबिंग कर रहे थे, पर हाईकमान ने किसी की एक नहीं चलने दी. ऐसे में पुराने नेताओं के साथ-साथ युवा चेहरों को शामिल कराकर अपनी सियासी पकड़ को राज्य में मजबूत करने का काम किया है.
मंत्रियों के विभागों को लेकर भी पार्टी हाईकमान का दखल इसी तरह रहने की संभावना है. माना जा रहा है कि राहुल अपने करीबी नेताओं को बड़े विभाग दिलाने का काम करेंगे. पंजाब में पहली बार सुखजिंदर रंधावा और ओपी सोनी के रूप में दो डिप्टी सीएम कांग्रेस ने बनाए हैं. ऐसे में उनको अच्छे मंत्रालय देना के लिए चुनौती रहेगी. रंधावा कैप्टन सरकार में सहकारिता व जेल मंत्री रहे जबकि ओपी सोनी मेडिकल एजुकेशन व रिसर्च मंत्री रहे हैं. चन्नी सरकार में उन्हें कौन सा अहम विभाग मिलेगा, इस पर सबकी नजर है.
कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत ने कहा, ‘जिन्हें मंत्रिपरिषद में जगह नहीं मिली है उन्हें सरकारी संस्थाओं और संगठन में स्थान दिया जाएगा. यह कवायद युवा चेहरों को लाने और सामाजिक व क्षेत्रीय संतुलन बनाने के लिए किया गया है.’ राज्य में पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस कवायद से सत्तारूढ़ दल कांग्रेस ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है.