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26 की उम्र में रविंद्र सिंह भार्टी ने बीजेपी से बागी होकर रचा इतिहास, 84 साल के दिग्गज अमीन खान को दी पटखनी

Rajasthan: चुनाव से ठीक 1 महीना पहले रविंद्र सिंह भाटी बीजेपी का दामन थामते हैं. इस आस में कि शिव विधानसभा सीट से उसे चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलेगा. लेकिन, पर्चा भरने की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले टिकट आरएसएस के बेहद ही करीबी और बाड़मेर बीजेपी के जिलाध्यक्ष स्वरूपसिंह खारा को मिल जाता है. उसी दिन रविंद्र सिंह भाटी फिर दूसरी बार बगावत पर उतर आते हैं.

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26 साल के विधायक रविंद्र सिंह भाटी.
26 साल के विधायक रविंद्र सिंह भाटी.

राजस्थान में एक शिक्षक का बेटा और 26 साल का एक युवा बीजेपी से बागी होकर चुनाव लड़ता है. समाज से लेकर उसके शुभचिंतक उसे सलाह देते हैं कि बागी होकर चुनाव नहीं लड़ना है. लेकिन, युवा कहता है कि 3 साल पहले मैंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से बगावत कर पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में 57 साल के इतिहास में पहली बार परचम लहराया था. इस बार भी मैं बगावत कर मैं इतिहास रचूंगा. 

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शुरू में तो बीजेपी के लोग मजाक उड़ाते हैं. कहते हैं कि 4- 5 हजार वोट लेकर आएगा. लेकिन, जैसे ही पर्चा दाखिल करता है तो हजारों की तादाद में लोग सड़कों पर उसके साथ निकलते हैं. यह देख हर कोई दंग रह जाता है. जब चुनाव प्रचार के लिए उतरता है तो महिलाओं से लेकर बुजुर्ग उसे सुनने पहुंचते हैं और आशीर्वाद देते हैं. जनता उसे इतना आशीर्वाद देती है कि वह 26 साल की उम्र में 84 साल के एमएलए को हराकर विधायक बन जाता है. उसी शख्स का नाम है रविंद्र सिंह भाटी. जो की राजस्थान के बाड़मेर जिले के शिव विधानसभा से ताल्लुक रखता है.

रविंद्रसिंह भाटी जब जोधपुर  की जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी का चुनाव जीतकर अध्यक्ष बने थे. उसी दिन ठान ली थी कि मैं अब भविष्य में शिव सीट की जनता का प्रतिनिधित्व करने के लिए विधायक बनूंगा. 

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आज से ठीक 1 साल पहले शिव विधानसभा में रन फॉर रेगिस्तान के नाम से युवाओं के लिए एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजन होता है. जिसमें हजारों की तादाद में लोग रविंद्रसिंह भाटी के लिए नजर आते हैं. उसी दिन से भाटी चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं. विधानसभा चुनाव से 2 महीना पहले एक यात्रा निकालकर ऐसे इलाकों में जाते हैं. जहां पर आजादी के 75 वर्ष बाद तक भी कोई नेता नहीं पहुंचा था. वहां जाकर लोगों से समस्याओं के बारे में पूछते हैं. 

उसी दौरान 80 साल का एक बुजुर्ग कहता है, जिंदगी के आखिरी पड़ाव में हूं, बस इतनी सी इच्छा है कि बेटा तू जब विधायक बने तो मेरे गांव में पानी की समस्या का समाधान करवा देना और यह वीडियो सोशल मीडिया पर पूरे देश में वायरल होता है.

चुनाव से ठीक 1 महीना पहले रविंद्र सिंह भाटी बीजेपी का दामन थामते हैं. इस आस में कि शिव विधानसभा सीट से उसे चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलेगा. लेकिन, पर्चा भरने की आखिरी तारीख से 2 दिन पहले टिकट आरएसएस के बेहद ही करीबी और बाड़मेर बीजेपी के जिलाध्यक्ष स्वरूपसिंह खारा को मिल जाता है. 

उसी दिन रविंद्र सिंह भाटी फिर दूसरी बार बगावत पर उतर आते हैं और अपना पर्चा दाखिल कर निर्दलीय चुनाव लड़ने की ताल ठोक देते हैं. रविंद्रसिंह भाटी की सोशल मीडिया पर जबरदस्त फैन फॉलोविंग के चलते पूरे चुनावी कैंपेन के दौरान देश भर में सुर्खियां बन जाते हैं. खास तौर से भाषण देने का जो देसी अंदाज जो लोगों को खूब भाता है.

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शिव विधानसभा से कांग्रेस ने अपने सबसे वरिष्ठ विधायक 84 साल के अमीन खान को लगातार 10वीं बार चुनाव में उतारा. कांग्रेस में भी बगावत कर जिलाध्यक्ष फतेह खान भी चुनावी मैदान में उतर जाते हैं. 

बीजेपी से बागी पूर्व विधायक जालम सिंह भी बीजेपी से बागी होकर आरएलपी से चुनाव लड़ते हैं. मुकाबला पंचकोणीय हो जाता है. लेकिन, आखिरकार शिव की जनता एक शिक्षक के बेटे और 26 साल के युवा रविंद्रसिंह भाटी को 3950 वोटों से चुनाव जिता देती है. 56 साल की इस विधानसभा में रविंद्रसिंह एक बार फिर नया इतिहास रच देते हैं.

शिव विधानसभा में रविंद्रसिंह भाटी को 79495 वोट, निकटतम प्रतिनिधि फतेह खान को 75545 वोट, 84 साल के MLA अमीन खान को 55264, बीजेपी के स्वरूप सिंह खारा को 22820 और आरएलपी के जालम सिंह रावलोत को 7345 वोट मिले. 3 दिसंबर को ही रविंद्रसिंह भाटी का जन्मदिन है और जनता ने 3 दिसंबर को उन्हें जिताकर जन्मदिन का तोहफा दिया.

रविंद्रसिंह भाटी साल 2013 में अपनी कॉलेज की पढ़ाई जोधपुर से करते हैं. 2019 में जब एबीवीपी टिकट नहीं देती है तो बगावत कर निर्दलीय के तौर पर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते हैं. उसी दिन से रविंद्र सिंह भाटी का सोशल मीडिया पर जबरदस्त तरीके से ट्रेंड चलना शुरू होता है. आखिरकार 57 साल के इतिहास में पहली बार निर्दलीय के तौर पर जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी में अध्यक्ष के तौर पर चुने जाते हैं.

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2023 विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी करते हैं. बीजेपी और समाज के ही कई अकड़वान नेता यह नहीं चाहते हैं कि भाटी किसी भी तरीके से बीजेपी का दामन थामे, अपना जोर आजमाइश करते हैं. आखिरकार भाटी बीजेपी ज्वॉइन कर देते हैं. लेकिन, उसके बाद में बीजेपी के बड़े कद्दावर नेता भाटी को टिकट ना मिले, इसके लिए पूरे प्रयास करते हैं और सफल भी हो जाते हैं. ऐसे में भाटी फिर दूसरी बार बगावत पर उतर आते हैं और विधायक का चुनाव जीत जाते हैं. चुनौती कितनी बड़ी थी आप इस बात से समझिए कि सामने एक उम्मीदवार जो कि 50 सालों से लगातार उसी विधानसभा का चुनाव लड़ते आए हैं. अमीन खान पांच बार के विधायक है. वहीं बीजेपी से बगावत कर पूर्व विधायक जालमसिंह रावलोत आरएलपी से चुनाव लड़ते हैं और बीजेपी के संगठन के मजबूत जिलाध्यक्ष सामने मैदान में होते हैं. लेकिन, सबको पटकनी देकर भाटी आखिरकार शिव के विधायक बन जाते हैं. 

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