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6 फीसदी एक्स्ट्रा आरक्षण के दांव से क्या बीजेपी का गणित बिगाड़ पाएंगे अशोक गहलोत?

राजस्थान चुनाव में जीत के लिए बीजेपी जातीय समीकरण सेट करने में जुटी है तो वहीं विपक्षी कांग्रेस भी हर बार सरकार बदलने का ट्रेंड तोड़ने के लिए वादों और योजनाओं का पिटारा लेकर मैदान में उतर आई है. सीएम गहलोत ने अब ओबीसी के लिए 6 फीसदी एक्स्ट्रा आरक्षण का दांव चल दिया है. क्या गहलोत इस दांव से बीजेपी का गणित बिगाड़ पाएंगे?

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अशोक गहलोत (फाइल फोटोः पीटीआई)
अशोक गहलोत (फाइल फोटोः पीटीआई)

राजस्थान चुनाव को लेकर विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) एक्टिव मोड में है. बीजेपी के शीर्ष नेता लगातार राजस्थान के दौरे कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाटलैंड को साधने के लिए बीकानेर में जनसभा की तो वहीं दौसा में जनसभा कर मीणा-गुर्जर को साधने की. बीजेपी जाट-गुर्जर-मीणा और सवर्ण वोटरों का समीकरण सेट कर राजस्थान का रण जीतने की कोशिश में है तो वहीं अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी जातीय समीकरण सेट करने के लिए ओबीसी को छह फीसदी अतिरिक्त आरक्षण का दांव चल दिया है.

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एक के बाद एक नई योजनाएं, एक के बाद घोषणाएं. योजनाओं और घोषणाओं के सहारे कांग्रेस की कोशिश सरकार दोबारा रिपीट कर हर चुनाव में सरकार बदलने के ट्रेंड को तोड़ने की है. मुख्यमंत्री गहलोत ने इसके लिए अब एक और बड़ा दांव चल दिया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए अतिरिक्त आरक्षण का ऐलान किया है.

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सीएम गहलोत ने ट्वीट कर कहा है कि 21 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ छह फीसदी अतिरिक्त कोटा की व्यवस्था की जाएगी जिसका लाभ वर्ग की अति पिछड़ी जातियों को मिलेगा. ओबीसी वर्ग की अति पिछड़ी जातियों की पहचान के लिए ओबीसी आयोग सर्वे कराएगा और समयबद्ध तरीके से अपनी रिपोर्ट देगा.

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उन्होंने कहा कि एससी-एसटी वर्ग के अलग-अलग संगठन भी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे हैं. सरकार इसका भी परीक्षण करवा रही है. सीएम गहलोत ने ये ऐलान ऐसे समय में किया है जब विधानसभा चुनाव में बस कुछ ही महीने का समय शेष बचा है. गहलोत के इस आरक्षण दांव के पीछे क्या रणनीति है?

बीजेपी का गेम बिगाड़ने की रणनीति

बीजेपी जाट, गुर्जर, मीणा के साथ ही सवर्ण मतदाताओं के सहारे राजस्थान जीतने की कोशिश में है. अशोक गहलोत के ओबीसी के लिए अतिरिक्त आरक्षण के दांव को बीजेपी का गेम बिगाड़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. अशोक गहलोत खुद भी ओबीसी समुदाय से हैं. संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग कई ओबीसी संगठन करते रहे हैं. बीजेपी भी ओबीसी का मुद्दा उठा गहलोत सरकार को घेरती रही है. ऐसे में गहलोत की कोशिश अब ओबीसी के लिए अतिरिक्त आरक्षण और जातिगत जनगणना के दांव से इस समुदाय के बीच कांग्रेस की जमीन मजबूत करने की है.

वरिष्ठ पत्रकार आशीष शुक्ला ने कहा कि गहलोत ओबीसी वोट की महत्ता जानते हैं और ये भी कि आज ओबीसी के लिए बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. ओबीसी के लिए केंद्र में 27 फीसदी आरक्षण है तो कई राज्यों में इससे भी अधिक. राजस्थान में ओबीसी आरक्षण की सीमा केंद्र से भी कम थी और इसकी वजह से जो नाराजगी थी, उसे कम करने के लिए ही गहलोत ने ये दांव चला है.

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नीतीश कुमार और योगी के फॉर्मूले पर गहलोत

राजस्थान का सरकार बदलने वाला ट्रेंड तोड़ने के लिए गहलोत अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के फॉर्मूले पर बढ़ते नजर आ रहे हैं. बिहार में ओबीसी वोट पर एक समय लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की पकड़ मजबूत थी. बिहार में लंबे लालू राज के लिए जानकार इसे भी श्रेय देते हैं. नीतीश कुमार ने पिछड़ा वर्ग को दो भाग में विभाजित कर एक नया वोट बैंक सेट कर लिया- पिछड़ा और अति पिछड़ा. नीतीश ने बिहार में जातिगत सर्वे भी शुरू करा दिया है.

इसी तरह 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले यूपी सरकार के भी ओबीसी रिजर्वेशन के लिए तीन श्रेणियां बनाने की चर्चा थी. राजस्थान में अति पिछड़ा के लिए पहले से ही पांच फीसदी आरक्षण का प्रावधान है. ऐसे में गहलोत भी अब बिहार और यूपी के मुख्यमंत्रियों के फॉर्मूले पर आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं. ओबीसी आयोग की सर्वे रिपोर्ट के आधार पर कुछ जातियों को चिह्नित कर उन्हें छह फीसदी आरक्षण का वादा कर गहलोत ने ओबीसी की पुरानी मांग पूरी कर तीसरी कैटेगरी बनाने के संकेत दे दिए हैं.

राजस्थान में ओबीसी वोट की ताकत कितनी?

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राजस्थान में ओबीसी वर्ग में 90 से अधिक जातियां आती हैं. अनुमानों के मुताबिक सूबे में करीब 50 फीसदी ओबीसी वोटर हैं. कई सीटों पर ओबीसी वोटर्स की तादाद करीब 60 फीसदी तक होने की बात भी कही जाती है. 200 सीटों वाली राजस्थान विधानसभा की करीब सौ सीटें ऐसी हैं जहां जीत और हार तय करने में ओबीसी मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं.

राजस्थान विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी जादुई आंकड़ा ही 101 सीट है. ऐसे में ओबीसी जिसके साथ आ गया, उसके सत्ता में आने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं. राजस्थान विधानसभा की 59 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं और इन सीटों का परिणाम तय करने में भी ओबीसी मतदाताओं की भूमिका अहम होती है.

गहलोत के दांव का कितना असर होगा?

राजस्थान चुनाव से पहले अशोक गहलोत ने खजाना खोल दिया है. महिलाओं को फ्री स्मार्टफोन, मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं के जरिए जनता को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं ओबीसी आरक्षण का कोटा बढ़ाने की वर्षों पुरानी मांग पर भी बीच का रास्ता निकाल अतिरिक्त रिजर्वेशन का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस को सीएम गहलोत की इन योजनाओं और घोषणाओं का कितना लाभ मिल पाएगा?

वरिष्ठ पत्रकार आशीष शुक्ला ने कहा कि राजनीति के जादुगर ने ये दांव तीसरे कार्यकाल के अंतिम हाफ में चला है. दूसरी बात ये है कि आरक्षण का लाभ ओबीसी की किन जातियों को मिलेगा? इसे लेकर भी जातियों में भ्रम है. ऐसे में देखना होगा कि जनता इसे किस तरह से लेती है. राजस्थान के रण में गहलोत का जादू चलेगा या बीजेपी भारी पड़ेगी? ये तो चुनाव परिणाम ही बताएगा. हां, बीजेपी के लिए भी गहलोत के चक्रव्यूह से पार पाना आसान नहीं होगा.

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