
राजस्थान में सूबे की अगली सरकार चुनने के लिए 25 नवंबर को वोटिंग होनी है. वोटिंग में अब तीन दिन का वक्त बचा है और हर दल अपने-अपने समीकरणों को फिनिशिंग टच देने में जुटा है जिससे चुनावी नैया पार कराई जा सके. सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने चुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है. बड़े नेताओं की ताबड़तोड़ रैलियां हो रही हैं, रोड-शो हो रहे हैं तो साथ ही वादों की बौछार भी है. मतदाताओं को अपने-अपने पाले में करने की कवायद के बीच छोटी पार्टियों का रोल अहम हो गया है.
राजस्थान में तीन छोटी पार्टियां जननायक जनता पार्टी (जेजेपी), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) और आजाद समाज पार्टी (एएसपी) इस बार बीजेपी और कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ने पर तुली नजर आ रही हैं. हनुमान बेनीवाल की आरएलपी और चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के गठबंधन ने दोनों प्रमुख दलों की टेंशन बढ़ा दी है. जेजेपी भी जाट वोट में सेंध लगाने की कवायद में है.
तीनों दल बीजेपी-कांग्रेस के लिए टेंशन क्यों?
दरअसल, 2018 के राजस्थान चुनाव में तब की सत्ताधारी बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के बीच टाइट फाइट थी. सीटों के लिहाज से कांग्रेस भले ही बीजेपी पर 26 सीट की लीड के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन वोट शेयर के लिहाज से दोनों दलों के बीच अंतर आधे फीसदी वोट का ही था. तब कांग्रेस को 39.8 फीसदी वोट और 99 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी का वोट शेयर 39.3 फीसदी वोट रहा था और पार्टी को 73 सीटें मिली थीं.
हनुमान बेनीवाल ने तब चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के बाद अक्टूबर महीने में पार्टी बनाने का ऐलान किया था. नई-नवेली आरएलपी तब 2.3 फीसदी वोट शेयर के साथ तीन सीटें जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस अगर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद पूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 101 सीट के जादुई आंकड़े से दो सीट कम पर थम गई तो इसमें बेनीवाल की पार्टी का बड़ा रोल माना गया. क्लोज फाइट वाली सीटों के परिणाम पर नजर डालें तो तस्वीर और भी स्पष्ट हो जाती है.
किस तरह सत्ता का समीकरण बदल सकते हैं ये दल?
राजस्थान विधानसभा की 200 में से 20 सीटें ऐसी थीं जहां हार-जीत का अंतर एक से पांच हजार वोट के बीच का था. नौ सीटों हार-जीत का फासला एक हजार से भी कम का वोट का रहा. इनमें से करीब दर्जन भर सीटें ऐसी थीं जहां बेनीवाल की पार्टी को हार-जीत के अंतर से अधिक वोट मिले थे. वैसा होता तो ऐसा होता, ऐसा होता तो वैसा होता जैसी बातों का कोई खास मतलब नहीं होता लेकिन फिर भी, अगर बेनीवाल की पार्टी नहीं होती तो क्लोज फाइट वाली इन सीटों पर चुनावी ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता था.
पिछले चुनाव की तस्वीर देख कहा ये भी जा रहा है कि छोटी पार्टियां किंगमेकर बनें ना बनें, सूबे में सत्ता के समीकरण बदल सकती हैं. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि बेनीवाल की पार्टी आरएलपी और चंद्रशेखर की एएसपी गठबंधन ने सौ से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जिनमें से करीब पांच दर्जन सीटें ऐसी हैं जहां जाट-दलित समीकरण निर्णायक साबित हो सकता है. जेजेपी ने भी हरियाणा की सीमा से सटे इलाकों की करीब दो दर्जन सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.
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बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही प्रमुख पार्टियां जाट मतदाताओं को साधने की जुगत में जुटी हैं. ऐसे में आरएलपी और एएसपी गठबंधन के साथ ही जेजेपी की एंट्री ने जाट वोट की लड़ाई को बहुकोणीय बना दिया है. आरएलपी और जेजेपी जैसी पार्टियों ने बीजेपी-कांग्रेस के बागियों पर अधिक दांव लगाया है. कहा तो ये भी जा रहा है कि बेनीवाल की पार्टी के गठबंधन और जेजेपी कितनी सीटें जीत पाते हैं? इससे अधिक नजर इस बात पर है कि ये कितनी सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस का खेल बिगाड़ते हैं. दोनों ही दलों को कुल मिलाकर छह से सात फीसदी वोट भी मिल गए तो कांग्रेस-बीजेपी में से कोई भी पार्टी राजस्थान की सत्ता के नजदीक जा सकती है.
तीनों पार्टियों का प्रमुख प्रभाव क्षेत्र
हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी का जाटलैंड में अच्छा प्रभाव है. नागौर, सीकर, झुंझुनू, भरतपुर समेत करीब दर्जनभर जिलों में जाट मतदाताओं की बहुलता है. बेनीवाल नागौर से सांसद हैं और जाटलैंड की ही खींवसर सीट से चुनाव मैदान में हैं. जेजेपी की नजर भी जाटलैंड पर ही है. जाटलैंड में दोनों जाट पार्टियों के बीच जाट वोट की लड़ाई है तो वहीं दलित बाहुल्य मारवाड़ इलाके की सीटों पर एएसपी की नजर है.
प्रमुख चेहरे कौन-कौन से हैं?
नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल आरएलपी के प्रमुख और पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा है. बेनीवाल की पार्टी ने बीजेपी और कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक बागियों को टिकट दिया है. बीजेपी एससी मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बीएल भाटी भी आरएलपी के टिकट पर जायल सीट से मैदान में हैं तो वहीं कपासन से उम्मीदवार आनंदी राम प्रदेश कांग्रेस कमेटी के भी सदस्य रह चुके हैं. राजस्थान में सियासी जमीन तलाश रही जेजेपी के लिए पार्टी प्रमुख दुष्यंत चौटाला प्रमुख चेहरा हैं तो वहीं एएसपी की ओर से चंद्रशेखर.
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इन पार्टियों के लिए पिछला परिणाम क्या रहा?
पिछले चुनाव में आरएलपी को 2.3 फीसदी वोट शेयर के साथ तीन सीटों पर जीत मिली थी. जेजेपी और एएसपी के लिए राजस्थान की चुनावी राजनीति में ये डेब्यू है.
छोटी पार्टियां किन मुद्दों पर चुनाव लड़ रही हैं?
आरएलपी राजस्थान चुनाव में जाट सीएम का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है. करीब दो दर्जन सीटों पर चुनाव लड़ रही जेजेपी जाट समुदाय की समस्याओं और विकास को मुद्दा बना रही है. छोटे दल जाट-दलित की उपेक्षा का मुद्दा भी उठा रहे हैं.
कांग्रेस-बीजेपी को पिछले चुनावों में कितने प्रतिशत वोट मिले थे?
राजस्थान चुनाव 2018 में कांग्रेस को 39.8 फीसदी वोट के साथ 99 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी 39.3 फीसदी वोट शेयर के साथ 73 सीटें जीतकर कांग्रेस से 26 सीट पीछे रह गई थी. कांग्रेस ने बसपा से गठबंधन और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई थी.