राजस्थान में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस और बीजेपी की तैयारियां जोरों पर हैं. सीएम गहलोत जहां कांग्रेस की जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हैं, वहीं बीजेपी कह रही है कि गहलोत की विदाई तय है. इन सबके बीच राहुल गांधी ने एक ऐसा बयान दे दिया जिससे कांग्रेस नेता हैरान भी हैं और चितिंत भी. राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम के दौरान राजस्थान में कांग्रेस की जीत को लेकर संशय जताते हुए कहा कि उनकी पार्टी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जीत रही है, शायद तेलंगाना भी जीत रही है और राजस्थान में बहुत करीबी मुकाबला है.
राहुल का यह संशय भरा बयान तब आया है जब सीएम गहलोत समेत तमाम कांग्रेस नेता दावा कर रहे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस ने एक बेहतरीन मॉडल का शासन दिया है जिसे कई राज्य भी फॉलो कर रहे हैं और यहां कांग्रेस की सरकार फिर से बनना तय है. अब राहुल के बयान से कांग्रेस नेता तो हैरान हैं ही, साथ में इसके सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. तो आइए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर वो कौन से कारण हैं जिनकी वजह से राहुल गांधी के मन में राजस्थान को लेकर संशय बना हुआ है-
पायलट और गहलोत में अदावत
राजस्थान कांग्रेस के दो दिग्गज नेता सीएम अशोक गहलोत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की अदावत किसी से छिपी नहीं है. हालांकि दोनों ने हाल के दिनों में एक-दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की है और दोनों नेता दावा कर रहे हैं राजस्थान में सरकार रिपीट होगी. लेकिन दोनों के समर्थक समय-समय पर बयान देते रहते हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कुछ समय पहले राजस्थान के सभी नेताओं को मतभेद भूलकर एकजुट होकर चुनाव लड़ने को कहा था और सार्वजनिक बयानबाजी ना करने की भी हिदायत दी थी. फिलहाल बयानबाजी तो शांत है लेकिन जैसे ही कांग्रेस उम्मीदवारों के टिकट तय करेगी तो जो बयानबाजी अभी बंद है, वो खुलकर सामने आ सकती है. यह भी एक कारण है कि पार्टी ने राजस्थान में सीएम फेस घोषित नहीं करके सामूहिक लीडरशिप में चुनाव लड़ने जा रही है.
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राजेंद्र गुढ़ा के आरोप
गहलोत कैबिनेट में मंत्री रह चुके राजेंद्र गुढ़ा अपनी ही सरकार पर कई गंभीर आरोप लगा चुके हैं. उनके आरोपों के बाद गहलोत सरकार की काफी किरकिरी हुई थी. दरअसल इसी साल जुलाई में गुढ़ा एक लाल डायरी लेकर विधानसभा पहुंच गए और दावा किया कि अशोक गहलोत के खिलाफ इस डायरी में आरोपों की पूरी फेहरिस्त है. गुढ़ा ने कहा कि संकट के समय विधायकों को खरीदने का पूरा लेखा-जोखा इस डायरी में लिखा गया था.
इन आरोपों के बाद गहलोत ने गुढ़ा को मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था. लेकिन उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद गहलोत सरकार बैकफुट पर नजर आई. बीजेपी ने लगे हाथ लाल डायरी के इस मुद्दे को लपक लिया और खुद पीएम मोदी ने सीकर रैली के दौरान लाल डायरी का जिक्र कर गहलोत सरकार पर हमला बोला. बीजेपी कह रही है कि गहलोत सरकार को प्रदेश की जनता लाल झंडा दिखाएगी.
हिंदुत्व का मुद्दा
राजस्थान में हिंदुत्व भी एक प्रमुख मुद्दा रहा है. बीजेपी गहलोत सरकार पर हिंदू विरोधी होने का आरोप लगाते रही है. इस मुद्दे को लेकर बैकफुट पर नजर आ रही गहलोत सरकार ने इस बार रणनीति में बदलाव किया है. गहलोत सरकार ने ध्रुवीक्ररण से बचने के लिए हिंदू तीर्थस्थलों, मंदिरों, धार्मिक पर्यटन स्थलो में जमकर कार्य किए हैं और कई योजनाएं भी चलाई हैं.
कन्हैयालाल हत्याकांड हो या फिर करौली में जिंदा जलाए गए पुजारी बाबूलाल वैष्णव की मौत, गहलोत सरकार की दोनों मुद्दों पर खूब किरकिरी हुई थी. कन्हैयालाल हत्याकांड का मुद्दा तो बीजेपी चुनावी मुद्दा बना चुकी है. कोटा में बीजेपी की परिवर्तन रैली के दौरान असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा था कि उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड जैसी घटना असम में होती तो, मैं 10 मिनट में हिसाब बराबर कर देता. हालांकि गहलोत सरकार कन्हैयालाल के परिवार की आर्थिक मदद करने के साथ- साथ उनके दोनों बेटों को सरकारी नौकरी दे चुकी है. बीजेपी इसे मुद्दा ना बना पाए, इसके लिए गहलोत सरकार कन्हैया के हत्यारों को पकड़वाने में मदद करने वाले दो युवकों को भी सरकारी नौकरी देने का ऐलान कर चुकी है. इन सबके बावजूद यह चुनावी मुद्दा बना हुआ है.
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चुनावी सर्वे
विधानसभा चुनाव से पहले अभी तक कई चुनावी सर्वे सामने आए हैं जिनमें कुछ में बीजेपी तो कुछ में दोनों के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है. यानि ये सर्वे भी दिखा रहे हैं कि वहां एंटी इंन्केंबेंसी है और चुनाव में गहलोत के लिए चुनौतियां कम नहीं है. सी वोटर के सबसे ताजा सर्वे में जहां बीजेपी को बढ़त मिलती दिख रही है तो हाल में आए IANS एजेंसी Polstrat सर्वे कांग्रेस को 200 में से 97-105 सीटें मिलती दिख रही हैं. बीजेपी के लिए यहां खुशी ये है कि उसे भी 89-97 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है.
पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड
राजस्थान में बीते दो दशक से ही यह ट्रेंड रहा है कि वहां पांच साल में सरकार बदलती जरूर है, यानि एक बार कांग्रेस तो अगली बार भाजपा की सरकार राज्य में बनती रही है. कई सत्ताधारी विधायकों और मंत्रियों को चुनाव में अक्सर हार का सामना करना पड़ा है. इससे साफ है सत्तापक्ष के विधायकों को एंटी इंकम्बेंसी का हर बार सामना करना पड़ा है.
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ये कुछ ऐसे कारण हैं जिन्हें राहुल गांधी के बयान से जोड़कर देखा जा सकता है. दूसरी तरफ बीजेपी में भी कम चुनौतियां नहीं है. दोनों दलों में अंदरुनी कलह कई बार सार्वजनिक हो चुकी है. अब देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस और बीजेपी अपनी इन चुनौतियों से कैसे पार पाते हैं.