बिहार के विधानसभा चुनावों को अपराध मुक्त करने के सभी दावे खोखले सिद्ध हुए.
राजनीति और अपराध हमेशा से बिहार में हाथ में हाथ डालकर चलते नजर आते हैं और 2010 के विधानसभा चुनाव भी इससे अलग नहीं हैं.
नेशनल इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने पहले तीन चरणों के 962 उम्मीदवारों के बीच एक अध्ययन को अंजाम दिया जिसमें यह बात सामने आई कि इनमें से 379 या 39 फीसदी उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित पड़े हैं.
दूसरे और तीसरे चरण के मतदान के उम्मीदवारों पर किए गए एक अन्य अध्ययन में यह बात सामने आई कि सभी मुख्य राजनीतिक दलों ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं.
अपराधियों को टिकट देने के मामले में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी सबसे आगे है. पार्टी के दो चरणों के 21 में से 15 उम्मीदवारों (71 फीसदी) के खिलाफ मामले लंबित हैं.
लोजपा के बाद भाजपा की बारी है जहां 69 फीसदी उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं, जबकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) के 66 फीसदी, लालू प्रसाद यादव की राजद के 63 फीसदी उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं, तो कांग्रेस का आंकड़ा 31 फीसदी का ही है.
सभी मुख्य दलों के उम्मीदवारों का विश्लेषण करने पर यह जानकारी भी सामने आई कि हत्या, हत्या के प्रयास, चोरी और डकैती जैसे गंभीर अपराधों के लंबित पड़े मामलों वाली पृष्ठभूमि के सर्वाधिक उम्मीदवार 44 फीसदी जद (यू) के हैं, जबकि भाजपा के 40 और लोजपा 33 फीसदी उम्मीदवार इस तरह के हैं.
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि चुनावी प्रक्रिया को अपराध मुक्त बनाने का प्रयास राज्य में एक बार फिर धूल चाटता नजर आ रहा है. विश्लेषण से पता चल जाता है कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल आंकड़े थोड़े बढ़ ही गए हैं.