नरेंद्र मोदी और संघ की बैकिंग से मनोहर लाल खट्टर हरियाणा के पहले भाजपाई मुख्यमंत्री बन गए हैं. इससे पहले न कभी वह विधायक रहे, न मंत्री. यानी शुरुआती दौर के मोदी की तरह उन्हें भी सिर्फ संगठन चलाने का अनुभव है, सरकार चलाने का नहीं. ऐसे में मनोहर लाल खट्टर के सामने होंगी ये 6 चुनौतियां.
1. मनोहर लाल खट्टर पाकिस्तान से पलायन कर आई पंजाबी कम्युनिटी के हैं. उन्हें पूरे हरियाणा का नेता बनना होगा. यानी कि जाट, बिश्नोई, दलित, अहीर, गुर्जर, ब्राह्मण, बनिया, इन सभी जातियों को अपनी छतरी के नीचे लेकर आना होगा. ये काम खासा जरूरी है क्योंकि जाति अभी भी भारतीय लोकतंत्र और चुनाव की एक सच्चाई है और संख्या की दृष्टि से खट्टर की जाति हरियाणा में निर्णायक तो क्या प्रभावी भी नहीं है.
2. मुख्यमंत्री पद के बाकी दावेदार अब खट्टर कैबिनेट में होंगे. इसमें रामबिलास शर्मा, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु शामिल हैं. कांग्रेस से आए चौधरी बीरेंदर सिंह अपनी पत्नी प्रेमलता के जरिए दावेदारी ठोंकेंगे. अहीरवाल में बीजेपी को बड़ी सफलता दिलाने वाले मोदी सरकार में मंत्री और गुड़गांव से सांसद राव इंद्रजीत सिंह की निगाहें भी कसी रहेंगी. यही बात फरीदाबाद से सांसद और मंत्री कृष्णपाल गुर्जर के बारे में भी कही जा सकती है. यानी सब तरफ से छत्रप घेरे रहेंगे. खट्टर को न सिर्फ इन्हें साधना होगा, बल्कि ये सुनिश्चित भी करना होगा कि उन्हें आलाकमान का लगातार समर्थन मिलता रहे.
पढ़ें: मोदी और खट्टर में 7 समान बातें
3. हाल तक मुख्यमंत्री रहे भूपिंदर सिंह हुड्डा की सबसे बड़ी आलोचना भेदभाव को लेकर होती रही है. हुड्डा को हरियाणा का नहीं रोहतक का सीएम कहा जाता था. आरोप था कि उन्हें सिर्फ पुराने रोहतक हलके (रोहतक, सोनीपत, झज्जर) में ही विकास प्रोजेक्ट लाने की धुन है. ऐसे में चाहे दक्षिणी हरियाणा हो या जाटलैंड कहा जाने वाला सिरसा, हिसार का इलाका. सभी अपनी उपेक्षा का रोना रोते रहे. खट्टर की पैदाइश रोहतक की और रिहाइश पंचकूला की है. और वह अब करनाल से विधायक हैं. ऐसे में उन पर किसी क्षेत्र विशेष को तरजीह देने का दबाव तो नहीं ही होगा. अब जरूरत है उन हिस्सों तक विकास को ले जाने की, जहां पिछले 10 साल में पहिया कुछ थमा है. इसमें मेवात जैसा मुस्लिम बहुल इलाका भी शामिल है, जहां से बीजेपी का एक भी विधायक चुनकर नहीं आया.
4. हरियाणा के मुख्यमंत्री के सामने एक चुनौती दिल्ली से सटे इलाकों में जमीन के इस्तेमाल की है. हुड्डा अपनी सीएलयू (चेंज ऑफ लैंड यूज) पॉलिसी को लेकर आलोचनाओं के घेरे में रहे. गुड़गांव हो या फरीदाबाद, सोनीपत या बहादुरगढ़, हर जगह रिएल एस्टेट के लिहाज से जमीन की कीमतें बहुत ज्यादा हैं. ऐसे में सरकार को पारदर्शी नीति अपनानी होगी. आखिर खट्टर के नेता मोदी जी दामाद जी की जमीनी आलोचना कर ही तालियां और वोट बटोर लाए हैं.
5. हरियाणा की छवि जाट जनित है. आपको सुनकर अचरज लगेगा मगर दूर प्रदेश के लोगों को यही लगता है कि हरियाणा में सब जाट हैं, सब खेती करते हैं, मास्टरी करते हैं और सुबह शाम दूध पीकर दंड पेलते हैं. हरियाणा की नकारात्मक चर्चा कभी खाप पंचायत के फरमानों को लेकर होती है, तो कभी दलितों पर अत्याचार को लेकर. खट्टर को जातीय, सामाजिक संतुलन साधने के साथ ही जातीय हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी मैकेनिज्म अपनानी होगी. इसके अलावा डेरों के बीच की आपसी प्रतिस्पर्धा से कोई तनाव न हो. इसका भी ध्यान रखना होगा. एक तरफ तो राज्य की सबसे बडी़ आबादी (लगभग 23 फीसदी) जाटों को ये नहीं लगना चाहिए कि हुड्डा गए, चौटाला नहीं आए तो सत्ता में उनकी भागीदारी खत्म हो गई. वहीं गैरजाट जातियों को भी ये लगना चाहिए कि अब कम से कम जातीय आधार पर तो उनके साथ सरकारी तंत्र में भेदभाव नहीं हो रहा.
6. और एक बात. पंजाब के साथ विवाद को लेकर. अब दिल्ली में बीजेपी की सरकार है. पंजाब में बीजेपी के समर्थन से एनडीए के सहयोगी अकाली दल की सरपरस्ती वाली सरकार है. और हरियाणा में भी बीजेपी सरकार है. जाहिर है कि समय आ गया है जब चंडीगढ़, अबोहर फाजिल्का जैसे राजधानी और सीमा के विवाद एकबारगी सुलटा ही लिए जाएं. यहीं बात नहर जल बंटवारे और हुड्डा के आखिरी दिनों में आए गुरुद्वारा एक्ट को लेकर भी लागू होती है. ऐसा मौका सियासत में बार बार नहीं आता. और अब बीजेपी या खट्टर किसी किस्म की राजनैतिक टालमटोल भी नहीं कर सकते.