चुनाव के समय अपनी पार्टी और उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल तैयार करने, सुनहरे वायदों को जनता तक पहुंचाने, पिछले कार्यो को सामने रखने और प्रतिद्वन्द्वी की कमजोरियों को उजागर करने में पार्टी कार्यकर्ताओं का अहम योगदान होता है, लेकिन इन नायकों की कमरतोड़ मेहनत गुमनामी में ही रहती है.
कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, इन कर्मठ कार्यकर्ताओं के अभाव में वह चुनाव जीतने की कल्पना ही नहीं कर सकती. यहां तक कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक पार्टी की बात को पहुंचाने में भी इनकी अहम भूमिका होती है. इसके बावजूद उनका नाम लेने वाला कोई नहीं होता है.
ऐसे ही एक पार्टी कार्यकर्ता है, तृणमूल कांग्रेस के तापस मजुमदार, जिन्होंने अपनी पार्टी के पक्ष में गली-गली जाकर, लाउडस्पीकर पर नारा लगाने के साथ मतदाताओं से पार्टी के पक्ष में समर्थन मांगने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.
मजुमदार ने कहा, ‘‘हम अपनी पार्टी के अग्रिम पंक्ति के सिपाही हैं, इससे न कम और न ज्यादा. चुनाव के दौरान पार्टी उम्मीदवार हमारे ऊपर निर्भर होते हैं.’’ मजुमदार की इस बात का माकपा कार्यकर्ता त्वीसम्पती राय ने भी समर्थन किया. दोनों कार्यकर्ता अलग-अलग पार्टियों और विचारधारा से जुड़े हुए हैं, लेकिन उनका कामकाज एक ही तरीके का है.
यह पूछे जाने पर कि क्या पार्टी के उम्मीदवार या नेता उनकी जरूरतों का ध्यान रखते हैं, कांग्रेस से पाला बदलकर तृणमूल में आए मजुमदार ने कहा, ‘‘हमारी पार्टी कार्यकर्ताओं पर आधारित है. कार्यकर्ता और नेता आपस में मिलकर सभी काम करते हैं. यहां तक मैंने ममता बनर्जी को एक ही प्लेट में दूसरों के साथ चावल खाते देखा है.’’
माकपा के सक्रिय कार्यकर्ता राय ने कहा कि उम्मीदवार या बड़े नेता हमारी जरूरतों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं समझते हैं, उन्हें और जरूरी काम करने होते हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे कार्यों के लिए स्थानीय समितियों का गठन किया गया है.’’ एक अन्य माकपा कार्यकर्ता ने नाम नहीं उजागर करने की शर्त पर बताया कि पार्टी के अलग-अलग नेताओं की सोच एक-दूसरे से भिन्न होती है.