बिहार विधानसभा चुनावों में लालू प्रसाद के निराशाजनक प्रदर्शन पर उनके पूर्व सहयोगियों में खुशी है और उनका कहना है कि राजद प्रमुख अपनी स्थिति के लिए खुद ही जिम्मेदार हैं.
उनके सहयोगियों का मानना है कि राजद प्रमुख ने सहयोगियों और आम लोगों की कीमत पर परिवार की ओर ध्यान दिया और अपनी ऐसी स्थिति खुद ही बनायी. राजद की प्रतिद्वंद्वी पार्टी जदयू से लोकसभा सदस्य और लंबे समय तक लालू के करीबी रहे रंजन प्रसाद यादव का कहना है, ‘लालू प्रसाद पर सत्ता का गुरूर प्रभावी हो गया था जिससे वह लोगों और राजनीतिक सहयोगियों से दूर होते चले गए.’
उन्होंने कहा, ‘मतदाताओं ने उन्हें उपयुक्त जवाब दिया है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि लालू ने अपनी पत्नी को सत्ता में बनाए रखने के लिए 2000 में विधानसभा में झारखंड संबंधी संकल्प पारित कर राज्य के विभाजन का रास्ता प्रशस्त कर दिया. रंजन प्रसाद यादव ने पिछले लोकसभा चुनावों में पाटलीपुत्र सीट पर लालू को हराया था.
उल्लेखनीय है कि हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है और 243 सदस्यीय विधानसभा में उसे सिर्फ 22 सीटें मिली हैं जबकि पिछली विधानसभा में उसके 54 सदस्य थे. उन्होंने कहा, ‘लालू ने अपनी आखिरी पारी खेल ली है (हालिया संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव). बिहार की राजनीति में उनका कोई भविष्य नहीं है.’
लालू जब चारा घोटाला संबंधी मामले में जेल गए थे, रंजन उस समय राजद के कार्यकारी अध्यक्ष होते थे. बाद में वह लोजपा में शामिल हो गए. पिछले लोकसभा चुनावों के पूर्व वह जदयू में शामिल हो गए थे. उन्होंने कहा, ‘लालू ने न सिर्फ अपने सहयोगियों को छोड़ दिया बल्कि बिहार की आम जनता के भरोसे को भी तोड़ा जिन्होंने 15 साल तक उन पर विश्वास किया.’
लालू के एक अन्य सहयोगी तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए. सिंह चुनावों के पूर्व कांग्रेस में शामिल हो गए थे. सिंह ने कहा कि वह ‘अहंकारी’ हो गए हैं और वह किसी के सुझावों को भी स्वीकार नहीं करते. लालू के साले साधु यादव भी असुंष्टों में शामिल हैं. साधु ने कहा, ‘लालूजी मुझ जैसे लोगों को पसंद नहीं करते जो सच्ची बातें करते हैं.’