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रंग लाई जय‍ललिता की चुनाव पूर्व रणनीति

तमिलनाडु में 2004 से ही चुनावों में हार का सामना कर रही अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता ने इस बार द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए पूरी तैयारी की और इसका फायदा ‘अम्मा’ को मिला है जब उनकी पार्टी ने बेहतरीन वापसी की है.

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तमिलनाडु में 2004 से ही चुनावों में हार का सामना कर रही अन्नाद्रमुक प्रमुख जयललिता ने इस बार द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए पूरी तैयारी की और इसका फायदा ‘अम्मा’ को मिला है जब उनकी पार्टी ने बेहतरीन वापसी की है.

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जयललिता ने द्रमुक विरोधी मतों को बिखरने से बचाने के लिए विजयकांत की डीएमडीके और वाम दलों के साथ गठबंधन किया. उन्होंने अपने गठबंधन में छोटे छोटे दलों को भी शामिल करने का प्रयास किया.

अभिनय की दुनिया से राजनीति में आयी जयललिता इस बार शुरू से ही द्रमुक को जवाब देने के मूड में दिख रही थीं. जब द्रमुक ने मतदाताओं को आकषिर्त करने के लिए मिक्सर, ग्रिंडर आदि देने की घोषणा की तो उन्होंने भी कई ऐसी घोषणाएं कीं. जयललिता पर आरोप लगता रहा है कि वह अपने सहयोगी दलों के साथ मंच साझा नहीं करतीं. लेकिन इस बार उन्होंने इस आरोप को गलत साबित करते हुए विभिन्न सहयोगी दलों के साथ कई चुनावी सभाएं कीं.

इस क्रम में वह माकपा नेता प्रकाश करात, भाकपा नेता डी राजा, तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के साथ चुनावी सभाओं में दिखीं. अपने सख्त फैसलों के लिए ‘आयरन लेडी’ के नाम से मशहूर जयललिता ने इस बार सीधे मतदाताओं से संपर्क किया. जयललिता को अन्नाद्रमुक के संस्थापक स्व एम जी रामचंद्रन राजनीति में लाये थे और वह 1982 में पहली बार राज्यसभा की सदस्य बनीं.

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संध्या और जयरमण के घर मैसूर में पैदा हुईं जयललिता को सिर्फ 15 साल की उम्र में घर की मदद के लिए अभिनय के क्षेत्र में आना पड़ा. जयललिता ने करीब तीन दशक के फिल्मी करियर में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और हिंदी की करीब 300 फिल्मों में काम किया. उन्होंने एमजीआर और शिवाजी गणेशन सहित उस दौर के सभी प्रमुख अभिनेताओं के साथ काम किया.

एमजीआर ने उन्हें पार्टी की प्रचार सचिव पद पर नियुक्त किया था. उन्होंने 1991 में प्रदेश की मुख्यमंत्री का पद संभाला. 1991 में विधानसभा चुनावों के दौरान ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई और इसके बाद सहानुभूमि लहर से अन्नाद्रमुक-कांग्रेस को फायदा हुआ.

मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने लिट्टे पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया. हिन्दुत्व के प्रति अपना झुकाव रखने वाली जयललिता भाजपा और शिवसेना के अलावा उन कुछ नेताओं में थीं जिन्होंने कार सेवा और अयोध्या का समर्थन किया था.

मुख्यमंत्री के रूप में जयललिता का पहला कार्यकाल विवादों से घिरा रहा और उनके दत्तक पुत्र वी एन सुधाकरण की शादी में हुए खर्च की व्यापक आलोचना हुई. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने लाटरी टिकटों पर प्रतिबंध लगा दिया और हड़ताल कर रहे करीब दो लाख कर्मचारियों को एक ही झटके में बख्रास्त कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने किसानों को मुफ्त बिजली जैसी सुविधाओं पर भी रोक लगा दी. लेकिन 2004 में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उनके रुख में कुछ नरमी आयी.

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