लखनऊ के बाहरी इलाके में दूर तक पसरा आंबेडकर मेमोरियल पार्क ग्रेनाइट पत्थर से पटा पड़ा है. चारों तरफ फैले ढेरों विशालकाय हाथियों के बीच, संगमरमर की पट्टी पर कुरेदे गए शब्द 'सुश्री मायावतीजी, जन्म 15 जनवरी, वर्ष 1956' अमरत्व की चाहत बयान करते हैं. वे अभिमानी गंभीरता के साथ गुंबद के नीचे विराजमान हैं, जहां उनकी बगल में हैंडबैग, अपनी खास शैली की सलवार कमीज और गले को सब तरफ से ढांकता दुपट्टा. ये चार-मुखी माया हैं.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
सेक्स सर्वे: तस्वीरों से जानिए कैसे बदल रहा है भारतीय समाज
इनके चारों ओर दलितों के संघर्ष के इतिहास से ली गई छवियां हैं, जिनमें आंबेडकर से लेकर कबीर और गौतम बुद्ध से नारायणा गुरु तक शामिल हैं. उनकी नजरें अपनी रियासत के चारों कोनों तक पहुंचती हैं. दुनिया की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक मायावती हर ओर से अपने ऊपर होने वाले हमलों को लेकर हमेशा की तरह चौकन्नी हैं. वे अपनी ताकत या राज्य को छोड़ने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश में अगले साल की पहली छमाही में कभी भी विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. यहां चुनावी जंग शुरू हो चुकी है. बहुत दूर दिल्ली में भी जमीन हिलने लगी है. यूपी की राजनीति अब क्षेत्रीय नहीं रह गई है. इसके लड़ाकों के लिए देश के सबसे ज्यादा असरदार राज्य उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों के लिए जंग अब राष्ट्रीय संघर्ष का रूप ले चुकी है. देश की सबसे तेजी से बढ़ती राजनैतिक पार्टी की सुप्रीमो होने के नाते मायावती की चाहत हमेशा से लखनऊ के कालिदास मार्ग और दिल्ली के रेसकोर्स रोड की दूरी को कम करने की रही है. 2012 में एक और जीत, मायावती की प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के कयासों को और हवा देगी. दलित देवी के शक्तिशाली प्रतीक के साथ ही दुनिया के सबसे जीवंत लोकतंत्र की नेता के नाते उन्हें सामाजिक न्याय की राजनीति तक बांधे रखना मुश्किल है. उनकी महत्वाकांक्षाएं हमेशा से स्पष्ट रही हैं.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इसका सबसे नाटकीय असर राहुल गांधी पर होगा जिन्होंने यूपी को अपनी लड़ाई का मैदान और माया को प्रमुख राजनैतिक दुश्मन बना लिया है. युवराज ने स्पष्ट तौर पर ऐसे राज्य में अपना करियर दांव पर लगा दिया है, जो उनके वंश के राजनैतिक भाग्य से कभी अलग नहीं हुआ. दिल्ली में अपनी दावेदारी पेश करने से पहले, वे माया की आंधी को रोककर अपनी राजनैतिक प्रौढ़ता सिद्ध करना चाहते हैं. यह एक लापरवाही भरा रोमांस और जुआ है जो उनके लिए दुःस्वप्न भी बन सकता है.
यूपी के बाद, या तो नई पीढ़ी के गांधी का प्रधानमंत्री पद के लिए विधिसम्मत राज्याभिषेक होगा, या फिर एक असफल राजकुमार का पतन. दूसरे परिदृश्य में, अब भी जनता की चहेती प्रियंका गांधी आगे आ सकती हैं और गांधी नाम के जादू को फिर जीवित कर सकती हैं. यह चुनाव सोनिया गांधी के अपने बेटे को प्रधानमंत्री बनाने के ख्वाब को बना या बिगाड़ सकता है.
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
इसके मायने यह हुए कि उत्तर प्रदेश का महामुकाबला भरोसा खो चुके मनमोहन सिंह का भाग्य भी तय करेगा. यह यूपीए-2 की रूपरेखा भी बदल सकता है. समाजवादी पार्टी (सपा) के दोबारा खड़ा होने की स्थिति में मुलायम सिंह यादव को लखनऊ पर शासन के लिए कांग्रेस की जरूरत पड़ सकती है. और दिल्ली में कांग्रेस-सपा की औपचारिक दोस्ती के मायने मुलायम के 23 सांसदों के साथ जबरदस्त सौदेबाजी होगी. अगर 19 सांसदों वाली तृणमूल कांग्रेस 6 मंत्री पद हासिल कर सकती है तो कांग्रेस के सबसे बड़े साथी के तौर पर सपा इससे ज्यादा मांगने की हकदार होगी.
यूपी 2012 ऐसी जंग है जिसे हारने का जोखिम मायावती नहीं ले सकतीं. उन्होंने अपनी जंग की शुरुआत पांच साल पहले उस समय की थी जब निर्विवाद रूप से उन्होंने अवध की महारानी के तौर पर लखनऊ स्थित 5 कालिदास मार्ग में कदम रखा था. उन्होंने यह सब दिग्गज शत्रुओं, राजनैतिक हस्तियों को धूल चटाकर हासिल किया था. ऑफिस में उनका हर दिन प्रचार और अपने कदम मजबूत करने का दिन था. अपने करियर में पहली बार उन्होंने स्पष्ट बहुमत हासिल किया. राज्य में जबरदस्त जनादेश का इस्तेमाल माया ने बड़े स्तर पर निर्माण के जरिए खुद की विचारधारा को स्थापित करने के लिए किया. आज, वे एक अकेली नेत्री हैं जो हताश पुरुषों की फौज से मुकाबला कर रही हैं, यह जीत या हार से जुड़ी उनकी अपनी लड़ाई है.
वे अपनी सत्ता को और अधिक हल्के में नहीं ले सकतीं. नवंबर के मध्य में कराए गए इंडिया टुडे-ओआरजी जनमत सर्वेक्षण से पता चलता है कि संघर्ष ने इन धुर विरोधियों को हाशिए पर पहुंचा दिया है. कोई भी पार्टी विधानसभा में बहुमत के लिए जरूरी 202 के जादुई आंकड़े (बसपा ने 2007 में 206 सीटें जीती थीं) तक नहीं पहुंच पा रही है. यह सपा और बसपा के बीच करीबी लड़ाई होने जा रही है.
दोनों ही का वोट फीसदी (25 फीसदी) समान ही है. जनमत सर्वेक्षण में सपा को ज्यादा सीटें मिलती दिखती हैं. लेकिन चुनाव को अभी काफी महीने पड़े हैं. यूपी की रणभूमि में हरेक दिन मायने रखता है. माया बेशक औंधे मुंह नहीं गिरीं, लेकिन ढलान पर हैं, वे स्थिरता की मजबूत जमीन से अनिश्चितता की भूमि पर कदम रख चुकी हैं. उन्हें न सिर्फ चारों ओर के हमलों बल्कि सत्ता विरोधी लहर से भी निपटना है.
वे एहसास और वास्तविकता के बीच की अनिश्चय की उस स्थिति में उलझ गई हैं जो सर्वेक्षण में साफ नजर आती हैः 44 फीसदी ने उनके प्रदर्शन को खराब बताया है और 66 फीसदी लखनऊ में बदलाव चाहते हैं. मायावती के 29 फीसदी से 2 फीसदी ज्यादा 31 फीसदी लोग मुलायम को अगला मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते हैं. 31 फीसदी लोगों के लिए भ्रष्टाचार उनकी सबसे बड़ी असफलता है. यानी लोग मुलायम को सुन रहे हैं?
जब इंडिया टुडे की टीम लखनऊ की एक और जंग के लिए खुद को तैयार कर रहे इस उम्रदराज पहलवान के पास पहुंची तो मुस्लिम युवाओं की जोश से भरी भीड़ ने कालिदास मार्ग स्थित पार्टी कार्यालय को घेर रखा था. मुलायम बोले, ''आप कोई भी काम घूस दिए बिना नहीं करा सकते, और सारा पैसा मुख्यमंत्री को जाता है. अगर सपा सत्ता में आती है, तो सबसे पहले भ्रष्टों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. किसी को नहीं बख्शा जाएगा.''
19 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
12 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
5 अक्टूबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
लखनऊ की गलियों में एक जगह माया खुद को कोसने वालों को धता बता रही हैं और विज्ञापन बोर्डों के जरिए खुद को बेहतरीन प्रदर्शन करने वाली नेता के तौर पर पेश कर रही हैं. अन्य किसी भी मुक्तिदाता की तरह माया भी तड़क-भड़क को प्रभावी राजनैतिक जरिया बना रही हैं. सामाजिक सरोकारों से लेकर कानून-व्यवस्था और इंफ्रास्ट्रक्चर तक के क्षेत्र में ''मायावती के बेहतरीन नेतृत्व'' की उपलब्धियों को सड़कों के किनारे बड़े-बड़े विज्ञापन बोर्डों पर सिलसिलेवार ढंग से पेश किया जा रहा है.
ये एक उम्दा नेता की कहानी कहते हैं. एक बार को तो ऐसा लगता है कि ये माया के प्रोपेगैंडा विभाग के साहित्य से बढ़कर कुछ और है. जनमत सर्वेक्षण के मुताबिक उन्होंने बतौर एक प्रशासक काम तो किया है, लेकिन वे भ्रष्टाचार के मोर्चे पर जनता के नजरिए को बदलने में असफल रहीं. (इसके लिए अण्णा हजारे को दोषी ठहाराया जा सकता है, जिनकी शिक्षाएं दिल्ली के रामलीला मैदान से भी आगे पहुंच चुकी हैं).
आज चुनाव प्रचार के दौरान माया विकास की पुजारिन और हिंसा को कतई बर्दाश्त न करने की मूर्ति बनी हुई हैं. कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह की अध्यक्षता वाले सबसे सयाने और वफादार अफसरशाहोंका एक समूह यूपी की कुशासन वाले राज्य की पुरानी छवि को तोड़ने के लिए देर रात तक काम कर रहा है. राज्य में शशांक दूसरे नंबर की सबसे शक्तिशाली हस्ती माने जाते हैं. उनसे लोग जितना डरते हैं, उतनी ही उनकी सराहना भी करते हैं. सिर्फ वही एक ऐसे शख्स हैं जिन्हें मुख्यमंत्री से किसी भी समय मिलने के लिए समय लेने की जरूरत नहीं है.
जब एक दिन देर शाम इंडिया टुडे ने उनसे उनके ऑफिस में मुलाकात की, वे फाइलें निपटाने में लगे थे. उन्होंने चाय और कुकीज लेते हुए अनौपचारिक बातचीत के लिए छोटा-सा ब्रेक लिया. किसी भी शीर्ष नेता के वफादार और जानकार सिपहसालार की तरह उन्होंने पते की बातें कम बताईं जबकि राज्य चलाने पर खूब बातें की. वह भी एक ऐसा राज्य जिसकी आबादी 20 करोड़ है और अगर वह स्वतंत्र होता तो दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश होता.
वे अपनी बॉस के बारे में कहते हैं, ''वे जिद्दी नहीं हैं. वे विकास के विचार के साथ सत्ता में आई थीं.'' वे पूर्व पायलट हैं. अब भी अपना लाइसेंस पास ही रखते हैं, जब भी इमरजेंसी होती है तो वे इसका इस्तेमाल करते हैं, अक्सर शशांक सिंह ही मुख्यमंत्री के विमान को उड़ाते हैं. जब वे कॉकपिट में होते हैं तो माया खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं, और ''कैबिनेट'' से जुड़े कुछ फैसले बादलों के बीच किए जाते हैं.
जमीन पर, उनके सहयोगी यह पक्का करते हैं कि नेता के पास यूपी उदय के लिए डींगें हांकने के पर्याप्त कारण मौजूद रहें. एक अन्य भरोसेमंद अधिकारी नवनीत सहगल कहते हैं कि 10 साल में राज्य के पास अतिरिक्त बिजली होगी. 10,000 मेगावाट की क्षमता वाले प्लांट का निर्माण चल रहा है. सड़कों से जुड़ी उनकी कुछ परियोजनाएं पर्यावरण संबंधी मंजूरी न मिलने से अधर में लटकी हुई हैं. सड़कों और बिजली में निवेश की गई उनकी रकम जमीन से बेदखल किए गए लोगों को दी जाने वाली सुविधाओं से मेल खाती हैः एक ऐसे राज्य में गरीबों को घर और नकदी का फायदा, जहां 38 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. सहगल कहते हैं, ''उनके पास 3डी विजन है.''
28 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
21 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
7 सितंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
बाकी सब ठीक है. लेकिन असली बात यह है कि यूपी की राजनीति जाति से चलती है. अपने प्रतिद्वंद्वियों से उलट माया अपनी इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. 2012 के चुनाव को सुशासन और विकास पर जनादेश बताकर वे बेबाकी से नारा बदल रही हैं. उनके चुनावी आधार को शक्ति देने वाले दलित-ब्राह्मण समीकरण बरकरार हैं. अब भी वे देश में एकमात्र ऐसी नेता हैं जो अपने वोटों को ट्रांसफर कर सकती हैं.
सर्वेक्षण इशारा करता है कि कांग्रेस तेजी से अपने पारंपरिक समर्थक जातियों में पकड़ खोती जा रही है. लोकप्रियता के मामले में राहुल भाजपा के राजनाथ सिंह से भी पीछे हैं. आज, माया अपने हाथ में मौजूद वोटों को विकास के लिए जनादेश में बदलना चाहती हैं. एक चार मुंह वाली देवी के तौर पर वे अपने खुद के विश्वास को ही पोषित करने और रचने में लगी हुई हैं, मायावती को अपने ध्वस्त हुए ख्वाबों को देखने के लिए अपना सिर घुमाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. अब जब वे करीब आ गए हैं तो उन्होंने अपनी उलझन की वृद्धि दर नहीं जाहिर की है. हालांकि वे टीवी देखने की बेहद शौकीन हैं लेकिन सत्ता को बचाए रखने की यह लड़ाई उन्हें भी चैनलों को बार-बार बदलने के आनंद से महरूम रखेगी.
आपकी जाति या समुदाय के हितों की रक्षा कौन-सी पार्टी बेहतरीन ढंग से कर सकती है?
सपा 29 बसपा 27भाजपा 21
कांग्रेस 18
अन्य 2
पीस पार्टी 2
रालोद 1
बाकी नहीं जानते /कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
क्या अपने शासनकाल के दौरान मायावती दलितों की उम्मीदों पर खरी उतरी हैं?
हां 69 नहीं 25बाकी नहीं जानते/कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
मायावती ने यूपी को चार छोटे राज्यों में बांटने का प्रस्ताव रखा था. क्या आपको लगता है यह एक सही विचार है?
बंटवारे के खिलाफ 70 पक्ष में 24बाकी नहीं जानते/कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
पिछले पांच साल के मायावती सरकार के संपूर्ण प्रदर्शन को आप किस तरह आंकेंगे?
खराब 44 अच्छा 28औसत 24
बाकी नहीं जानते/कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
74% बसपा सरकार के पार्कों के निर्माण पर खर्च किए गए पैसे को पूरी तरह से खारिज कर देते हैं.
वे कौन से मुख्य क्षेत्र हैं जिनमें बसपा सरकार बेहतरीन काम नहीं कर सकी?
भ्रष्टाचार 31 महंगाई 22कानून और व्यवस्था 12
विकास 9
रोजगार 7
बिजली कटौती 5
कृषि उत्पादों के एवज में मिलने वाली कीमत 5
सरकारी फिजूलखर्ची (जैसे पार्क बनाना) 4
बाकी नहीं जानते/कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
66% मुख्यमंत्री पद पर बदलाव चाहते हैं. सिर्फ 29% ही चाहते हैं कि मायावती दोबारा चुनी जाएं.
कौन बनेगा प्रदेश का सबसे बेहतरीन मुख्यमंत्री?
मुलायम सिंह यादव 31 मायावती 29राजनाथ सिंह 19
राहुल गांधी 15
अखिलेश यादव 1
बाकी नहीं जानते /कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
-साथ में आशीष मिश्र
सर्वेक्षण विधि इस इंडिया टुडे-ओआरजी जनमत सर्वेक्षण को उत्तर प्रदेश के 30 प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों में अंजाम दिया गया है. इसमें कुल 6,219 मतदाताओं को शामिल किया गया. प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र से 200 से अधिक मतदाता शामिल थे, जिनसे अच्छी तरह से तैयार की गई प्रश्नावली के माध्यम से प्रश्न पूछे गए. सैंपल का विभाजन इस तरह किया गया था, जिससे शहरी और ग्रामीण इलाकों से सही अनुपात में सैंपल हासिल हो सकें. इसी तरह, सैंपल के लिए मुसलमानों और एससी/एसटी मतदाताओं का कोटा सैंपल भी तय कर दिया गया था. सर्वे 13 नवंबर और 23 नवंबर के बीच कराया गया. इसके नतीजों में 3 फीसदी का हेर-फेर हो सकता है.