फरवरी 2008 में गठित पीस पार्टी ने अभी तक चुनावी सफलता का स्वाद नहीं चखा है, इसके बावजूद वह उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों की बिसात को बिगाड़ने का खेल खेल सकती है. और अगर अस्पष्ट जनादेश आया, तो वह इतनी सीटें भी ला सकती है कि सरकार बनाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाए.
14 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
07 दिसंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
सेक्स सर्वे: तस्वीरों से जानिए कैसे बदल रहा है भारतीय समाज
पीस पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मोहम्मद अयूब इस आधार पर उम्मीद रखते हैं कि स्थापना के बाद से लड़े गए चुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन लगातार बेहतर होता जा रहा है. 2009 में, जब उसने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, तो उसे उत्तर प्रदेश में 5,37,638 वोट मिले. संत कबीर नगर में पीस पार्टी के उम्मीदवार राजेश सिंह को 1 लाख से ज्यादा वोट मिले; गोंडा, डुमरियागंज और बस्ती में पार्टी उम्मीदवारों को 60,000 से ज्यादा वोट मिले. हालांकि पार्टी ने उत्तर प्रदेश में सिर्फ एक-चौथाई लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, फिर भी कुल मिले मतों के लिहाज से सभी दलों में यह छठवें स्थान पर रही.
30 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
उसके बाद 2010 में हुए विधानसभा उपचुनाव और भी बेहतर साबित हुए. लखीमपुर खीरी में पीस पार्टी का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहा; समाजवादी पार्टी ने सीट जीती. डुमरियागंज उपचुनाव में उसके उम्मीदवार सच्चिदानंद तीसरे स्थान पर रहे, जबकि सपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गईं.
अयूब की अपेक्षाएं साधारण-सी हैं. वे कहते हैं, ''हम 30 से 50 सीटें जीतने की उम्मीद करते हैं. यह हमें वहां ले जाएगा, जहां हम उत्तर प्रदेश में अपने विस्तार के पहले चरण में पहुंचना चाहते हैं.'' वे यह भी कहते हैं, ''हमें उस हैसियत में पहुंचने की जरूरत है जहां हमारा समर्थन अगली सरकार बनाने के लिए जरूरी हो जाए.'' पार्टी अन्य छोटी पार्टियों के साथ चुनावी गठजोड़ों को अंतिम रूप दे रही है. यह 403 विधानसभा सीटों में से कम से कम आधी सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन अयूब के निशाने पर पूर्वी उत्तर प्रदेश की 158 सीटें हैं, वह इलाका जो प्रस्तावित पूर्वांचल प्रदेश को शामिल करता है-जो आने वाले वर्षों के लिए उनकी योजना में है.
23 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे16 नवंबर 2011: तस्वीरों में देखें इंडिया टुडे
राज्य की बड़ी पार्टियों को पीस पार्टी का उभार जरा भी रास नहीं आया है, क्योंकि अयूब उनके परंपरागत वोट बैंक को निशाना बना रहे हैं. वे मुसलमानों, दलितों के हाशिए पर पड़े वर्गों, अति पिछड़ी जातियों और आर्थिक तौर पर वंचित वर्गों का एक सामाजिक गठजोड़ रचने के बाद, एक हस्तांतरणीय मुस्लिम वोट बैंक तैयार करके मायावती वाला खेल खेल रहे हैं, जो पार्टी को जीतने में सक्षम गैर-मुस्लिम उम्मीदवार चुनने में सक्षम बना देता है.
अयूब की सबसे बड़ी ताकत है, गोरखपुर जिले के बड़हलगंज में जुलाहों के एक परिवार से लेकर क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित लिवर विशेषज्ञ होने तक, रंक से राजा होने की उनकी अपनी कहानी. परहेजगार और मजहबी मुस्लिम होने की उनकी छवि हाशिए पर पड़े समुदाय को झनझना देती है. वे 16 जून को हुई सड़क दुर्घटना के बाद से आज भी लंगड़ाते हैं, जिसमें उनके दाहिने पैर की हड्डी टूट गई थी और पीठ पर चोट आई थी, फिर भी ''रणनैतिक राजनीतिक चर्चाओं'' के लिए दिल्ली की यात्रा से लेकर खलीलाबाद में प्रचार, जहां से वे चुनाव लड़ने वाले हैं, से लेकर रात में सर्जरी करने के लिए अपने बड़हलगंज नर्सिंग होम तक लौटने तक, उनकी दिनचर्या बेहद मसरूफियत भरी होती है. हो सकता है आने वाले दिनों में उन्हें और भी बाजीगरी दिखानी पड़े.
आप पिछड़े मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण का विरोध करते हैं या समर्थन
आरक्षण का विरोध 54
मैं समर्थन करता हूं 38
बाकी नहीं जानते/कह नहीं सकते. आंकड़े प्रतिशत में
71% उच्च जातियों के लोग पिछड़े मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण का विरोध करते हैं.