बता नहीं सकता कि मेरा प्रिय लेखक कौन है क्योंकि मैं असम में किसी को नाराज नहीं करना चाहता. मैं अंग्रेजी के किसी लेखक का नाम भी नहीं लूंगा क्योंकि लोग यह न समझें कि अपनी मातृभाषा असमी की जगह मैं किसी दूसरी भाषा को तरजीह देता हूं.'' प्रफुल्ल कुमार महंत ने 'आपका प्रिय लेखक कौन है' के जवाब में यह कहा. ऐसी राजनैतिक शुद्धता और कठमुल्लाई संकीर्णता के चलते असम में विपक्ष का यह नेता कोई चार दशक से राज्य की राजनीति में प्रासंगिक बना हुआ है. दशक भर पूर्व राजनीति में हाशिए पर चला गया असम गण परिषद (अगप) का यह नेता विधानसभा चुनावों में तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार कव् लिएमुख्य चुनौती बनकर उभरा है.
असम में दो बार मुख्यमंत्री रहे महंत को कुछ आरोपों के कारण 2001 में सत्ता छोड़नी पड़ी थी और पार्टी अध्यक्ष का पद खोना पड़ा था. उन पर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर उल्फा नेताओं के परिवार के सदस्यों की हत्या कराने (असम में जिसे गुप्त हत्याएं कहते हैं) और विवाहेतर संबंधों के आरोप लगे. तब बोझ समझे गए महंत को पार्टी से बाहर कर दिया गया. उन्होंने अगप (पी) बना ली और 2006 के विधानसभा चुनावों में अपनी पार्टी के एकमात्र विजयी उम्मीदवार रहे. {mospagebreak}
1985 में 32 वर्ष की उम्र में दुनिया के सबसे कम उम्र मुख्यमंत्री बनकर इतिहास रचने के बाद दो दशक के भीतर वे असम की राजनीति में अछूत हो गए. जानकारों ने तब महंत की राजनैतिक अंत्येष्टि तक कर डाली थी, जो देश के प्रधानमंत्री पद के लिए ज्योति बसु की पसंद थे. महंत का दावा है, ''खुद प्रधानमंत्री बनने से इनकार करने वाले ज्योति बसु ने 1996 में दिल्ली के असम भवन में संयुक्त मोर्चा की एक बैठक में मेरे नाम का प्रस्ताव रखा था. मैंने विनम्रतापूर्वक इसके लिए मना कर दिया था.'' अब वे तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद पर निशाना साध रहे हैं.
तीन वर्ष पूर्व यह असंभव सपना दिखता था. अगप के तत्कालीन अध्यक्ष वृंदावन गोस्वामी ने महंत को कभी पार्टी में न लौटने देने की कसम खाई थी. ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन (आसू) ने महंत विरोधी अभियान शुरू कर दिया था और उल्फा गुप्त हत्याओं के विलेन का नाम राजनैतिक परिदृश्य से मिटा देना चाहता था. कठिन दौर में योगाभ्यास और प्रार्थना को अपना सहायक मानने वाले इस 59 वर्षीय नेता का कहना है, ''वह निश्चय ही कठिन दौर था, पर मैंने उसे लोगों से जुड़ने का अवसर माना. मैंने असम की कई जगहों का दौरा कर समझने की कोशिश की कि लोग क्या चाहते हैं और मैंने कहां गलती की.'' {mospagebreak}
गोस्वामी की आदर्शवाद की राजनीति जमीनी कार्यकर्ताओं से नहीं जुड़ पाई और पार्टी के भीतर महंत के वफादारों ने उन्हें पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने पर मजबूर कर दिया. 2008 में चंद्रमोहन पटवारी अगप के अध्यक्ष बने तो महंत की वापसी की मुहिम शुरू हुई. पटवारी जानते थे कि पार्टी को सत्ता में लौटाने के लिए केवल महंत में ही नेतृत्व संभालने का करिश्मा है और वे सर्वमान्य हैं. वे पूर्व मुख्यमंत्री को न केवल पार्टी में वापस लाए बल्कि उन्होंने अगप से टूटे सभी गुटों को एकजुट किया. असम के एक वरिष्ठ पत्रकार का कहना है, ''पटवारी के पास कोई चारा न था.
1979 में आसू अध्यक्ष बनने से लेकर असम की राजनीति महंत के इर्दगिर्द घूमती आई है. सत्तारूढ़ कांग्रेस को उनकी पार्टी से ज्यादा महंत का डर है. गोगोई और उनके सहयोगी चुनाव प्रचार में महंत पर व्यक्तिगत हमले करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं.'' पर गुवाहाटी विवि के छात्रावास से राजनैतिक यात्रा शुरू कर मुख्यमंत्री के आवास तक पहुंचने वाले महंत के लिए पार्टी में वापसी ही काफी नहीं थी. {mospagebreak}
अक्तूबर 2010 में उन्होंने पटवारी को विपक्ष का नेता पद छोड़ने के लिए मना लिया. इस दांव के चलते उन्हें अगप की ओर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार माना जाने लगा. अगला कदम भाजपा से संबंध तोड़ना था, जिसके साथ 2006 के चुनाव में अगप ने सीटों का बंटवारा किया था. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को लाभ होने और मुस्लिम वोट गंवाने के डर से महंत भगवा पार्टी से सावधान हो गए. उनका कहना है, ''मैं अगप को अपने बलबूते पर मजबूत देखना चाहता हूं.'' पर अब वे कांग्रेस से मुकाबले के लिए क्षेत्रीय दलों के वृहद् गठबंधन की बात कर रहे हैं. वे चुनाव के बाद भाजपा और एयूडीएफ जैसे दलों के साथ गठबंधन की संभावना से भी इनकार नहीं करते. भाजपा के साथ मौन समझैते की भी चर्चा है, हालांकि दोनों पार्टियों ने इसका खंडन किया है.
महंत अब भष्टाचार के आरोपों और ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों पर बड़े बांधों के निर्माण के मुद्दे पर कांग्रेस से भिड़ने को तैयार हैं. असम में बड़े बांधों की मांग को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को लिखे उनके पत्र के बारे में याद दिलाने पर वे कहते हैं, ''हम पानी की आपूर्ति, बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई और बिजली के लिए बहुउद्देश्यीय छोटे बांध चाहते थे. ये लोग महज बिजली उत्पादन के लिए बांधों का निर्माण कर रहे हैं. असम जैसे भूकंप की संभावना वाले इलाके में बड़े बांध तबाही ला सकते हैं.'' असम आंदोलन का मुख्य मुद्दा होने के बावजूद बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ के सवाल पर उनका कहना था, ''केंद्र सरकार ही इस समस्या के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठा सकती है.'' {mospagebreak}
महंत इस बार दो चुनाव क्षेत्रों- ब्रह्मपुर और समूगुरी से चुनाव लड़ेंगे. ब्रह्मपुर से वे 1985 से जीतते आए हैं और समुगूरी में वे वन मंत्री रॉकीबुल हुसैन से टक्कर लेंगे. वे कहते हैं, ''समूगुरी के लोग चाहते हैं कि वहां कांग्रेस के गुंडा राज के खिलाफ मैं खड़ा होऊं.'' राजनैतिक विश्लेषक मृणाल तालुकदार इसे चतुर चाल मानते हैं. वे कहते हैं, ''कांग्रेस की युवा ब्रिगेड के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार लाकर अगप उन्हें अपने चुनाव क्षेत्रों में उलझा रही है.''
पशुपालन विभाग में हुए ऋण पत्र घोटाले में हाथ होने और गोपनीय हत्याओं के आरोप आज भी महंत का पीछा नहीं छोड़ रहे, पर वे इनका जोरदार खंडन करते हैं, ''अदालत में मेरे खिलाफ कुछ साबित नहीं हुआ है. ऋण पत्र घोटाला कांग्रेस और एक व्यवसायी की साजिश थी. गोपनीय हत्याओं की जांच के लिए तीन जांच आयोग बिठाने के बावजूद मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है.'' विडंबना है, उल्फा नेताओं के परिवार के सदस्यों की हत्या का आदेश देने के मामले में वह शख्स आरोपी है जिसकी 1996 के चुनावों में विजय का जश्न पुलिस थाने के सामने एके 47 राइफलों से हवा में गोलियां दागकर उन्होंने मनाया था. अब महंत कहते हैं, ''मैं मानता हूं विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई में बहुत से लोगों को जान गंवानी पड़ी, पर मैंने अपने तथाकथित अधिकार क्षेत्र से बाहर हत्याओं की इजाजत नहीं दी थी.'' {mospagebreak}
हो सकता है कि गोपनीय हत्याओं में उनकी भूमिका का कोई सबूत न मिले, पर अगप में बहुत से लोग उन्हें अगला मुख्यमंत्री देखना पसंद नहीं करेंगे. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ''वे बदला भंजाऊ हैं और अनेक नेताओं को, खासकर जिन्होंने उन्हें पार्टी से बाहर करने का समर्थन किया था, डर है कि वे उनसे बदला लेंगे.'' आइएमडीटी अधिनियम को रद्द करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले सर्वनंदा सोनोवाल अगप छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए और अनेक लोग मानते हैं कि पार्टी में महंत के बढ़ते कद को देखकर ही उन्होंने यह कदम उठाया. उन्होंने अगप से महंत के निष्कासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पत्रकारों के पास भी महंत की अच्छी यादें नहीं हैं.
बकौल एक वरिष्ठ पत्रकार, ''कांग्रेस सरकार भले ही भ्रष्ट हो, पर गोगोई के शासन में हम सुरक्षित महसूस करते हैं. महंत ने विरोधियों की आवाज दबाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल किया.'' पर महंत इससे सहमत नहीं हैं. विवाहेतर संबंधों के आरोप होने के बावजूद महंत अपने परिवार के प्रति समर्पित होने का दावा करते हैं. वे कहते हैं, ''अपने सार्वजनिक जीवन से जब भी मुझे फुरसत मिलती है, मैं अपने परिवार के साथ समय बिताता हूं.'' {mospagebreak}
लेक्चरर रहीं उनकी पत्नी जयश्री गोस्वामी महंत के बारे में कहा जाता है कि महंत के दूसरे कार्यकाल में वास्तव में सत्ता की बागडोर उनके हाथ में थी और यही महंत के पतन का कारण था. उनका 20 वर्षीय पुत्र श्यामंता कश्यप एक स्वयंसेवी संगठन चलाता है और 18 वर्षीया पुत्री प्रजयिता दिल्ली के मैत्रेयी कॉलेज में पढ़ रही है. सुबह जल्दी उठने वाले महंत 14 घंटे काम करते हैं और शाकाहारी हैं. वे कहते हैं, ''किसी भी असमी की तरह मैं चावल खाने का बहुत शौकीन हूं और उटेंगा (बेल का रस) और माटी महारा दाल (काला चना) तो चाहे जितना दे दो.'' महंत हमेशा सफेद कपड़े पहनते हैं. उनका मानना है कि इससे वह शांत और शुद्ध रहते हैं.
इस बार चुनावी संघर्ष में भी उन्हें शांत रहना होगा. पार्टी को पैसे का संकट है, टिकटों के बंटवारे को लेकर असंतोष है और पहले की तरह वे मुख्यमंत्री पद के आधिकारिक उम्मीदवार नहीं हैं. पर उनके कॅरियर की सबसे बड़ी लड़ाई में उनका साथ स्वामी राम की किताब लिविंग विद द हिमालयन मास्टर्स दे रही है.