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ढकी गई मायावती और हाथियों की मूर्तियां

उत्तर प्रदेश में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के मद्देनजर राजधानी लखनऊ तथा गौतमबुद्ध नगर में जगह-जगह लगी मुख्यमंत्री मायावती और उनकी पार्टी के चुनाव निशान हाथी की मूर्तियों को ढकने के निर्वाचन आयोग के आदेश के बाद बुतों पर आवरण चढ़ाने का काम मुकम्मल हो गया.

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उत्तर प्रदेश में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होने के मद्देनजर राजधानी लखनऊ तथा गौतमबुद्ध नगर में जगह-जगह लगी मुख्यमंत्री मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के चुनाव निशान हाथी की मूर्तियों को ढकने के निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय में खारिज होने के बीच बुतों पर आवरण चढ़ाने का काम मुकम्मल हो गया.

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प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारी उमेश सिन्हा ने संवाददाताओं को बताया, ‘हालांकि लिखित रिपोर्ट अभी प्राप्त नहीं हुई है लेकिन लखनऊ और गौतमबुद्धनगर जिलों के निर्वाचन अधिकारियों ने मौखिक रूप से बताया है कि दोनों जिलों में मायावती और हाथी की मूर्तियां ढकने का पूरा हो चुका है.’

गौरतलब है कि विपक्षी दलों की मांगों के बीच चुनाव आयोग ने गत शनिवार को लखनऊ तथा गौतमबुद्धनगर जिलों में जगह-जगह लगी मायावती और हाथियों की मूर्तियों को ढकने का आदेश देते हुए इस पर अमल के लिये 11 जनवरी तक का समय दिया था.

लखनऊ में डाक्टर भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल तथा स्मृति उपवन में जहां हाथियों की मूर्तियों को पीली पॉलीथीन और कपड़े से ढका गया है वहीं मायावती के बुतों को लकड़ी के ढांचे से पोशीदा किया गया है.

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नोएडा स्थित दलित प्रेरणा स्थल पर भी बसपा के प्रतीक चिन्‍ह रूपी मूर्तियों को ढकने का काम पूरा हो गया है. सरकारी कोष के 685 करोड़ रुपए की लागत से बने इस स्मारक में हाथी की पत्थर की 30 मूर्तियां जबकि कांसे की 22 प्रतिमाएं लगाई गयी हैं.

ग्रेटर नोएडा में मायावती और हाथी की मूर्तियों को ढकने का काम मायावती के पैतृक गांव बादलपुर तथा गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में बने पार्को समेत अनेक स्थानों पर पूरा किया गया. इस बीच, प्रदेश में हाथियों की मूर्तियों को ढके जाने के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका को आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया.

इस सिलसिले में सोमवार को स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता धीरज सिंह ने एक जनहित याचिका दायर की थी. मुख्य न्यायाधीश एसआर आलम और न्यायमूर्ति राम विजय सिंह की खंडपीठ के समक्ष यह जनहित याचिका सुनवाई के लिए आई. उन्होंने कहा कि याचिका में तकनीकी खामी है.

अदालत ने इस पर नाराजगी जताई कि जनहित याचिका में ना तो याचिकाकर्ता की पहचान जाहिर की गई है ना ही चुनाव आयोग के संबद्ध आदेश की प्रति संलग्न की गई है. याचिकाकर्ता के वकील अनिल सिंह बिसेन ने इसके बाद खामियों को दूर करने के लिए संशोधन दाखिल करने की इजाजत देने के लिए अदालत से अनुरोध किया.

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बहरहाल, अदालत ने कहा कि याचिका को वापस लिया हुआ मान कर खारिज किया जाता है और याचिकाकर्ता को यह छूट दी जाती है कि वह नियमों के मुताबिक एक नयी जनहित याचिका दायर करे.

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