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भारतीय राजनीति में नए अध्‍याय की छोटी शुरुआत है 'आप'!

पांच राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों के मद्देनज़र राजनैतिक पंडितों को सबसे अधिक माथापच्‍ची दिल्ली को लेकर करनी पड़ रही है. छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश में मुकाबला साफ तौर पर कांग्रेस और बीजेपी में है, लेकिन दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) चुनावी गणित में कलम की बहुत स्याही खर्च करवा रही है.

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अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल

पांच राज्यों में हो रहे विधान सभा चुनावों के मद्देनज़र राजनैतिक पंडितों को सबसे अधिक माथापच्‍ची दिल्ली को लेकर करनी पड़ रही है. छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश में मुकाबला साफ तौर पर कांग्रेस और बीजेपी में है, लेकिन दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) चुनावी गणित में कलम की बहुत स्याही खर्च करवा रही है.

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दिल्‍ली में बीजेपी और कांग्रेस भले ही मुकाबला एक दूसरे के विरुद्ध ही बताएं, लेकिन हकीकत यह है कि 'आप' ने दोनों की ही नींद उड़ा दी है. अलग-अलग न्यूज़ चैनल और सर्वे भले जिस भी पार्टी की सरकार बनने या त्रिशंकु विधान सभा होने का दावा कर रहे हों, लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि आप ने ऐसे अनेक नए ट्रेंड सेट किए हैं जिसका अनुसरण न केवल दूसरी पार्टियां कर रही हैं, बल्कि ये ट्रेंड भारतीय राजनीती में नए अध्याय की छोटी शुरुआत कहे जा सकते हैं.

साफ छवि का उम्मीदवार यानी ईमानदार नेता
अन्ना हजारे के आन्दोलन से ही यह बात प्रखर थी कि पार्टियां साफ छवि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारें. आम आदमी पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री पद के अनौपचारिक दावेदार अरविन्द केजरीवाल के धुआंधार प्रचार के बाद बीजेपी ने राजनैतिक रसातल में जा चुके डॉ. हर्षवर्धन को उम्मीदवार घोषित कर दिया. जबकि पिछले कई महीनों से दिल्ली में बीजेपी का चेहरा विजय गोयल थे, लेकिन अचानक ही भाजपा का पोस्टर फटा और नया हीरो निकला. वजह साफ थी- केजरीवाल की टक्कर का साफ छवि वाला चेहरा.

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पार्टी नहीं लोग बताएं मुद्दे
अन्ना और उनकी टीम का एक बहुत बड़ा सुझाव था कि लोग खुद अपने इलाके के मुद्दे और उनका समाधान निर्धारित करें. साथ ही हर काम के लिए लोगों को सरकार का मुंह ना ताकना पड़े. आप ने यह दावा किया कि वे दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में लोगों से बात करने के बाद अपना घोषणा पत्र जारी करेगी. कुछ ही दिन बाद बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी अपने घोषणा पत्र के लिए जनता की राय मांगते हैं और उसके अगले ही दिन शहजादे राहुल गांधी भी ऐसा ही करते हैं! बात बिल्‍कुल साफ है कि सब कुछ इत्तेफाक नहीं हो सकता.

जितने क्षेत्र, उतने घोषणा पत्र
चुनाव से पहले हर पार्टी घोषणा पत्र में चांद-तारे तोड़ लाने जैसे दावे करती है, लेकिन उन पर कोई जवाब न मांग ले, इसलिए कोई भी आरटीआई के दायरे में आने को तैयार नहीं. ऐसी दकियानूसी सोच के बीच आप ने एक बड़ा कदम लेते हुए कहा कि वह दिल्ली में हर विधानसभा क्षेत्र का अलग घोषणा पत्र बनायेंगे ताकि हर इलाके के समस्याओं का समाधान हो सके. कुछ ही दिन पहले बीजेपी ने भी मॉडल टाउन का अलग घोषणा पत्र जारी किया और बाकी जारी करने की बात कही. सवाल यह है कि यदि बीजेपी इस विषय पर इतनी ही गंभीर है तो वह दूसरे राज्यों में भी ऐसा क्यों नहीं कर रही?

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बिजली के दाम
हर चुनाव से पहले विपक्ष में बैठी पार्टियां महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे अनेक मुद्दों का रोना रोती हैं और सरकार को कोसती हैं. लेकिन वह उन्हें दूर करेंगी या नहीं और यदि करेंगी तो कैसे, इसका 'रोडमैप' कोई नहीं बताता. काफी समय पहले आप ने दिल्ली की बिजली कंपनियों का सीएजी से ऑडिट करवा कर बिजली के दाम आधे करने का वादा किया. इस पर बीजेपी ने भी 30 फ़ीसदी का बाजा बजा दिया. इससे पहले शायद ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी प्रमुख पार्टी ने दाम कम करने का एक आंकड़ा पेश किया हो.

ज़रूरी नहीं दो जमा दो चार ही हो
वर्ष 2003 में 'भारत उदय' बीजेपी को ले डूबा तो 1977 में कांग्रेस की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं. जरूरी नहीं कि साफ-सुथरे उम्मीदवारों को उतारने का वायदा करके या लोगों की मोहल्ला सभाएं बनाने की बात कहकर आप चुनाव जीत ही जाए, लेकिन कम से कम दिल्ली में उन्होंने ऐसा माहौल ज़रूर बना दिया है कि दूसरी पार्टियां राजनीति की पुरानी चालों को भूलकर, थोड़ा-बहुत ही सही, लेकिन कुछ नए रास्ते तय करती दिखाई दे रही हैं. केजरीवाल या आम आदमी पार्टी कितनी लम्बी रेस के घोड़े साबित होते हैं, यह भी कोई नहीं कह सकता, लेकिन उनके इन नए कदमों की दूसरी पार्टियों द्वारा कॉपी किया जाना इस बात को साबित करता है कि भारतीय राजनीती में सुधार की बेहद लम्बी दौड़ के छोटे से पहले कदम की शुरुआत शायद हो गई है.

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