16 जनवरी से पहले अरविंद केजरीवाल दिल्ली बीजेपी के नेताओं का नाम लेकर मजाक उड़ाया करते थे. किसके बूते बीजेपी उनका सामना कर पाएगी? मगर किरण बेदी को जिस तरह बीजेपी ने पार्टी ज्वाइन करने के चौथे ही दिन मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, आम आदमी पार्टी को अपना पैंतरा ही बदलना पड़ गया.
बहस के बहाने घेरने की कोशिश
केजरीवाल के किरण बेदी को सार्वजनिक बहस के लिए आमंत्रित करने और फिर बेदी के इनकार को आम आदमी पार्टी ने हथियार बना लिया है. आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास एक ट्वीट करते हैं. इसमें उन्होंने किरण बेदी के ही एक ट्वीट का स्क्रीन शॉट अटैच किया है. साल 2012 के इस ट्वीट में किरण कह रही हैं कि वह ओबामा और रोमनी के बीच लाइव बहस देख रही हैं. और दूसरे भी इसे मिस न करें. कुमार विश्वास का इस पर कमेंट है, “दीदी आप को ऐसी ही एक भारतीय बहस तक स्वीकार नहीं? आप तो कहती थीं – ‘आई डेयर’?” केजरीवाल ने भी इसे रीट्वीट किया है. केजरीवाल ने AAP समर्थक लेखिका चंचल शर्मा की एक पोस्ट को भी रीट्वीट किया है. जिसमें कल प्रसारित हुए टीवी शो का वीडियो है, जिसे किरण बेदी नाराज होकर बीच में ही छोड़ कर चली गईं. कुमार विश्वास ने किरण बेदी के 22 जून 2012 के एक ट्वीट का स्क्रीन शॉट भी पोस्ट किया है जिसमें किरण ने राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उम्मीदवार पीए संगमा द्वारा प्रणब मुखर्जी को बहस की चुनौती देने का जिक्र किया है. एक कवि वाले अंदाज में कुमार विश्वास इस पर एक इमोशनल कमेंट करते हैं, “तुम्हें याद हो ना याद हो?”
किरण को कठघरे में खड़ा करने की चुनौती
आम आदमी पार्टी नेता केजरीवाल के सामने अब उसी शख्स को कठघरे में खड़ा करने की चुनौती है जिसे कभी खुद उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की पेशकश की थी (जैसी कि खबरें आई थीं). केजरीवाल खुद अन्ना आंदोलन की उपज हैं और अब उन्हें उसी शख्स को गलत साबित करना है जो कभी उनके एजेंडे और मुहिम में मजबूत के साथ डटा रहा. आखिर केजरीवाल किरण बेदी की काबिलियत पर सवाल तो उठा नहीं सकते. केजरीवाल, किरण बेदी की ईमानदारी पर उंगली तो उठा नहीं सकते. केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ किरण की नीयत पर भी सवाल नहीं खड़े कर सकते.
क्या मोदी की इंश्योरेंस पॉलिसी हैं किरण बेदी?
आम आदमी पार्टी के मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट योगेंद्र यादव ने एक इंटरव्यू में किरण बेदी को मोदी की “इंश्योरेंस पॉलिसी” बताया है. योगेंद्र यादव इसके पीछे तर्क भी पेश करते हैं, “अगर बीजेपी की हार होती है तो उसे किरण के खाते में डाल दिया जाएगा.” यादव का कहना है कि बीजेपी को किरण बेदी की शख्सियत और काबिलियत से कोई लेना-देना नहीं है. केजरीवाल भी किरण बेदी को बीजेपी का बलि का बकरा बता चुके हैं. केजरीवाल पूछते हैं, “किरण बेदीजी आप राजनीति में क्यों आईं? आखिर आपने चक्रव्यूह में फंसने का फैसला क्यों किया, समझ में नहीं आ रहा.” यादव साथ ही किरण बेदी पर भी सवाल उठाते हैं, “अगर वह मोदी के साथ काम करना चाहती थीं, तो चुनाव से 20 दिन पहले ही क्यों पार्टी में शामिल हुईं?”
आगे की रणनीति क्या होगी?
किरण बेदी के खिलाफ केजरीवाल ने कांग्रेस छोड़कर आए एस. के. बग्गा को मैदान में उतारा है. केजरीवाल ने शीला दिक्षित और नरेंद्र मोदी को सीधी चुनौती दी, लेकिन वे किरण बेदी के सामने नहीं आ रहे हैं. रणनीति तो कुछ ऐसी लग रही है कि योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास ही किरण बेदी के खिलाफ मोर्चा संभालेंगे. केजरीवाल सीधे हमलों से परहेज करेंगे. कुल मिलाकर उद्देश्य यही साबित करना है कि किरण बेदी बीजेपी में मिस-फिट हैं.