बिहार में लालू-नीतीश 'महागठबंधन' से नाता तोड़कर अलग हुई समाजवादी पार्टी ने दो हफ्ते बाद ही एक नया मोर्चा खड़ा कर लिया है. नए गठजोड़ के तहत मुलायम सिंह यादव एनसीपी और जनता दल डेमोक्रेटिक के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उम्मीदवार उतारेंगे.
जानकारी के मुताबिक, पीए संगमा की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी चुनाव में सपा का साथ देगी. यानी राज्य में चुनावी समीकरण समय के साथ जहां और मजेदार होते जा रहे हैं, वहीं किसकी खिचड़ी कहां पक रही है और सत्ता के लिए दाल किसकी गलेगी यह कहना अब और भी कठिन हो चला है.
दरअसल, अब तक राज्य में दो बड़े गठबंधनों के बीच सीधी लड़ाई थी. जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का 'महागठबंधन' बीजेपी नीत एनडीए के खिलाफ खड़ा है. महागठबंधन के लिए नीतीश कुमार चेहरा हैं तो एनडीए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है. लेकिन कुछ दिनों से जिस तरह राज्य में राजनीतिक हलचल मची है, हर दल और गठबंधन के लिए चुनाव की डगर मुश्किल होती जा रही है.
समधी-समधी की सीधी लड़ाई
मुलायम सिंह यादव महागठबंधन के तहत 243 विधानसभा सीटों में से उनकी पार्टी को सिर्फ 5 सीटें दिए जाने से खफा हैं. यही कारण है कि उन्होंने दो हफ्ते पहले ही सपा को गठबंधन से अलग कर लिया. पारिवारिक रिश्तों को सियासी डोर में पिरोने की बात करने वाले लालू प्रसाद अपने समधी को मनाने पहुंचे, लेकिन मुलायम और सख्त हो गए. दो हफ्ते बाद ही मुलायम ने जो ट्रम्प कार्ड चला है, उससे कुछ घाटा महागठबंधन को जरूर होता दिख रहा है.
दूसरी ओर, एनसीपी भी लालू-नीतीश की जोड़ी से नाराज है. उसे गठबंधन धर्म के नाम पर 3 सीटों का प्रस्ताव मिला था, जिसे पार्टी ने नकार दिया. हालांकि, न तो सपा और न ही एनसीपी बिहार में कोई खास माद्दा रखती है, लेकिन महागठबंधन में शामिल होने और फिर फूट के बाद अलग होने के कारण दोनों ही पार्टी चर्चा में आ गई है.
किसकी कितनी राजनीतिक हैसियत
बिहार की राजनीति की बात करें तो 2010 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और एनसीपी दोनों की झोली खाली रही थी. जबकि बीते साल हुए लोकसभा चुनाव में एनसीपी को एक सीट से ही संतोष करना पड़ा. सपा को यहां भी एक बूंद नसीब नहीं हुई.
खुद को बताया तीसरा मोर्चा
सपा नेता रामगोपाल यादव ने इस नए गठबंधन को 'तीसरा मोर्चा' बताया है. इस शब्दावली का इस्तेमाल आम तौर पर गैर-कांग्रेस और गैर-बीजेपी राजनीतिक गठबंधन के लिए किया जाता है. जाहिर है ऐसे में सपा ने साफ संकेत दिए हैं कि वह लालू-नीतीश का विरोध करने से पीछे नहीं हटेगी.
हालांकि, इन सब के बीच यह बात भी मायने रखती है कि लोकसभा चुनाव में बीते साल बीजेपी ने 40 से 32 सीटें जीती थीं और उसके बाद ही जेडीयू-आरजेडी और सपा ने साथ आने का फैसला किया था.
इस बीच, सीमांचल से असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया और लगे हाथ शिवसेना ने भी चुनावी ताल ठोंक दिया है.