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राजनीतिक दल, दिल्ली और दलित

चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गई है. बीजेपी, आप और कांग्रेस जनता के बीच ताल ठोंक रहे हैं. मुकाबला त्रिकोणीय है. हर नेता और दल वोटरों को लुभाने के लिए वादों के तोहफे बांट रहा है.दिल्ली में बड़ी तादाद दलितों की है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों की निगाहें दलित वोटरों पर भी लगी हैं.

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तीनों दलों ने दलितों के लिए खास रणनीति बनाई है
तीनों दलों ने दलितों के लिए खास रणनीति बनाई है

चुनाव की तारीख का ऐलान होते ही दिल्ली में सियासी हलचल तेज हो गई है. बीजेपी, आप और कांग्रेस जनता के बीच ताल ठोंक रहे हैं. मुकाबला त्रिकोणीय है. हर नेता और दल वोटरों को लुभाने के लिए वादों के तोहफे बांट रहा है.दिल्ली में बड़ी तादाद दलितों की है. यही वजह है कि राजनीतिक दलों की निगाहें दलित वोटरों पर भी लगी हैं.

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तकरीबन पौने दो करोड़ की आबादी वाले दिल्ली राज्य में करीब सवा करोड़ मतदाता हैं. जिनमें 25 लाख दलित हैं. यानी 20 फीसदी. लेकिन वे दिल्ली की 70 में से 20 सीटों को प्रभावित करते हैं. ऐसे में कोई भी पार्टी इनकी अहमियत को कम नहीं आंक सकती. केन्द्र में पहली बार बहुमत की सरकार बनाने वाली बीजेपी ने दलितों पर खास फोकस किया है.

बीजेपी के पास दिल्ली का कोई दमदार दलित चेहरा नहीं है, लेकिन पार्टी ने उत्तर-पश्चि‍मी दिल्ली से सांसद उदित राज को दलित वोटरों को एकजुट करने की जिम्मेदारी दी है. बीजेपी ने दलितों को ध्यान में रखते हुए दिसबंर 2014 में गोकुलपुरी, मंगोलपुरी, त्रिलोकपुरी और सुल्तानपुरी में सदस्यता अभियान पर खास जोर दिया था. इन इलाकों में 37 से 45 फीसदी तक आबादी दलितों की है. बीजेपी का प्लान यहीं खत्म नहीं होता. बीते साल जब अक्टूबर में स्वच्छता अभियान का ऐलान किया गया तो उसका आगाज़ पीएम मोदी ने दिल्ली की एक दलित बस्ती से ही किया था. और अब चुनाव की तारीख का ऐलान होने के ठीक बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह दिल्ली में दलित रैली कर रहे हैं.

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दलित वोटों को लुभाने में आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं है. आप ने 2013 में दिल्ली विधानसभा की 12 आरक्षित सीटों पर भी कब्जा जमाया था. उस वक्त कांग्रेस का लगभग सारा दलित वोट आप के खाते में गया था. इसके पीछे केजरीवाल की सस्ता पानी और बीजली वाली रणनीति काम आई थी. उन्होंने दलित बहुल इलाकों में कई सुविधाएं देने की बात कही थी. पार्टी आज भी अपने वादे पर कायम है. दिल्ली के स्लम और पिछड़े इलाकों में रहने वाले दलित और गरीब लोग पहले दिन से ही आप के साथ जुड़े रहे हैं. पार्टी ने इस बार भी अपने प्रचार में इन इलाकों पर खास ध्यान दिया है. पार्टी के नेता रात-दिन स्लम और झुग्गियों में रहने वाले लोगों के सम्पर्क में हैं. सबसे अहम बात यह है कि आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली के ही कई दलित चेहरे हैं. उसे बाहर से किसी दलित नेता को लाने की ज़रूरत नहीं है.

दिल्ली की सत्ता खो चुकी कांग्रेस भी उम्मीद के साथ फिर तैयार है. पार्टी ने सभी जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर अपने उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है. आला-कमान ने दिल्ली के दलित बहुल इलाकों में पार्टी के बड़े दलित चेहरों को प्रचार के लिए भेजने की योजना बनाई है.

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दिल्ली की गद्दी को पाने के लिए तैयारी तो तीनों पार्टियों ने जमकर की है. लेकिन दिल्ली के दलित किस पार्टी को वोट करेंगे इस बात के लिए तो दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार करना होगा.

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