scorecardresearch
 

Opinion: केजरीवाल की पब्लिसिटी की भूख बढ़ती ही जा रही है

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा इस्तेमाल करते हैं और वो सब बोलते हैं जिससे वह सुर्खियों में बने रहें. भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता से शुरुआत करके वह अब इंटेलिजेंस एजेंट तक का रोल निभाने लगे हैं.

Advertisement
X
अरविंद केजरीवाल
अरविंद केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पूरा इस्तेमाल करते हैं और वो सब बोलते हैं जिससे वह सुर्खियों में बने रहें. भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता से शुरुआत करके वह अब इंटेलिजेंस एजेंट तक का रोल निभाने लगे हैं और उसका उदाहरण है, वाराणसी में हिंसा भड़कने की आशंका जताना. पब्लिसिटी में बड़ा नशा होता है. उसकी एक बार लत जो लग जाए तो छूटती नहीं. हर वक्त मीडिया में बने रहना भला किसे नहीं सुहाएगा. अपना नाम अखबारों, वेबसाइटों में देखना और टीवी कैमरों से घिरे रहना वाकई बड़ा ही रोमांचक होता है.

Advertisement

केजरीवाल को यह सब पसंद आता है और इसलिए वह अब हर दिन कोई न कोई ऐसा बयान दे देते हैं जिसकी चारों ओर चर्चा हो. वैसे भी उन्हें पता है कि भ्रष्टाचार विरोधी उनकी भूमिका और उनके बयान पर अब उतनी पब्लिसिटी नहीं मिलती, इसलिए उन्होंने मोदी के खिलाफ वाराणसी से मोर्चो खोला और साम्प्रदायिकता का राग छेड़ा. जाहिर है भारतीय नागरिक होने के नाते यह उनका हक है. लेकिन उससे भी बड़ी बात है कि वह जानते हैं कि वहां उन्हें बहुत ज्यादा पब्लिसिटी मिलेगी और इसलिए वह सोनिया गांधी के इलाके में नहीं गए. वह ‘सूखा इलाका’ है और वहां से खड़े होने वाले को वह पब्लिसिटी नहीं मिल सकती जो वाराणसी की धरती से मिलेगी. सो केजरीवाल वाराणसीमय हो गए हैं.

मोदी को साम्प्रदायिक बताने के बाद अब वह वहां हिंसा होने की आशंका भी जता रहे हैं. अब उन्हें बीजेपी की हर बात में षड्यंत्र की बू आ रही है. कांग्रेस उनके लिए अब खास मायने नहीं रख रही है क्योंकि वहां पब्लिसिटी फैक्टर नहीं है. उन्हें अच्छी तरह पता है कि देश में भले ही मोदी की लहर न हो, लेकिन चर्चा उनकी ही है. ऐसे में उनके बारे में हर बयान उन्हें पब्लिसिटी दिलाएगा.

Advertisement

रही बात मीडिया की तो उसके साथ यह होता रहता है. उसका फायदा उठा लेने के बाद कई ‘महान’ व्यक्तियों ने उलटे उस पर ही आरोप लगाया. केजरीवाल उनमें से एक हैं. मीडिया में उनके खिलाफ छपी हर खबर को वह बड़े औद्योगिक घरानों की साजिश करार देते हैं. उन्हें आलोचना तनिक मंजूर नहीं है. इसकी बजाय वह मीडिया पर बरसकर अपना गुस्सा शांत करते रहते हैं.

वह मीडिया के असहज प्रश्नों से कतराते हैं और फिर उस पर वार करते हैं. दरअसल इसी मीडिया ने उन्हें इतनी पब्लिसिटी दे दी कि वह यह मानकर चलने लगे कि उनकी किसी भी विषय पर आलोचना नहीं होगी. और अब जबकि आलोचना हो रही है तो वह उग्र हो रहे हैं. उन्हें लगता है कि मीडिया उनके खिलाफ है. केजरीवाल यह मानकर चलते हैं कि वह सारे देश के नेता और सिस्टम उनके प्रति जवाबदेह है लेकिन वह किसी के प्रति नहीं. उनकी यह सोच भी उन्हें उटपटांग बयान देने के लिए प्रेरित करती है. अब चुनाव तक तो यह चलता ही रहेगा.

Advertisement
Advertisement