देश की राजधानी में राजनीति ने नई करवट ली है. बड़ों का गुरूर चूर हो गया और समाज में हाशिए पर खड़े लोग आज खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. उनकी आंखों में एक सपना सच होने की चमक है और इसका श्रेय जाता है एक सीधे-सादे आम आदमी अरविंद केजरीवाल को. ये हैं आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत के चेहरे
दिल्ली में चुनाव की तारीख के ऐलान से बहुत पहले ही समूचे शहर में आम आदमी पार्टी के पोस्टर नजर आने लगे थे. एक पोस्टर में अरविंद की तस्वीर के साथ सिर्फ एक वाक्य लिखा है, 'बंदे में दम है'. चुनाव खत्म हो गया, वह पोस्टर आज भी कई जगह लगे हुए हैं. नतीजे आए, तो वह बात सच साबित हो गई. लोग कहने लगे हैं, 'हरियाणे के छोरे में है दम, लो फिर दिल्ली पै छा गयो.'
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित अरविंद को एक बार फिर कामयाबी ने आकर चूम लिया. इसकी एक वजह यह भी है कि आम आदमी को उनमें अपना अक्स दिखाई देता है. उनका साधारण पहनावा और बोलचाल की भाषा में बात करना उस तबके को पसंद है, जिससे बड़े दल वालों ने जुड़ने की कोशिश तो खूब की, मगर सही मायने में जुड़ नहीं पाए.
अन्य दलों की तरह केजरीवाल ने भी जनता को सुनहरे सपने दिखाए, लेकिन देश की पारंपरिक राजनीति से हटकर. उन्होंने दिग्गज दलों को नए दौर की राजनीति सिखाई और लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती पेश की.
केजरीवाल ने अन्ना आंदोलन की सफलता के बाद 26 नवंबर, 2012 को आम आदमी पार्टी का गठन किया और दिसंबर 2013 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर समूचे देश को स्तब्ध कर दिया.
केजरीवाल 28 दिसंबर, 2013 को दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री बने थे, मगर भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए जनलोकपाल विधेयक पारित न हो पाने पर मात्र 49 दिनों बाद अपनी कुर्सी कुर्बान कर दी. वह अब आठवें मुख्यमंत्री का दायित्व संभालेंगे.
केजरीवाल को आरटीआई (सूचना का अधिकार) कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है. वह 2006 में 'इमर्जिंग लीडरशिप' के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित हुए थे.
उनका जन्म 6 जून, 1968 को हरियाणा के हिसार में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी-खड़गपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक (बीटेक) की उपाधि प्राप्त की. पिता गोविंदराम केजरीवाल जिंदल स्टील में इंजीनियर थे.
इंजीनियरिंग करने के बाद केजरीवाल को टाटा स्टील कंपनी में नौकरी मिली. मगर कुछ ही साल बाद नौकरी छोड़ मिशनरीज ऑफ चैरिटी और पूर्व व पूर्वोत्तर भारत में रामकृष्ण मिशन के साथ काम करते रहे. बाद में, 1992 में वह भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में चयनित हुए, और पहली पोस्टिंग में उन्हें दिल्ली में मिली.
उन्होंने कुछ विदेशी कंपनियों के काले कारनामे पकड़े कि किस तरह वे भारतीय आयकर कानून तोड़ती हैं. उन्हें धमकियां मिलीं और फिर तबादला भी हो गया, जिसके बाद उनका सरकारी सेवा से मोहभंग हो गया.
जनवरी, 2000 में उन्होंने कुछ समय के लिए सेवा से अवकाश ले लिया और दिल्ली में एक गैर सरकारी संगठन 'परिवर्तन' की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है. इसके बाद, फरवरी 2006 में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया, और 'परिवर्तन' में पूरा समय देने लगे.
राजस्थान कैडर की आईएएस अधिकारी अरुणा राय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्द ही एक मूक सामाजिक आंदोलन बन गया.
दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम साल 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने साल 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया. इसके बाद, जुलाई 2006 में केजरीवाल ने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया.
उन्होंने 'सूचना का अधिकार: व्यावहारिक मार्गदर्शिका' पुस्तक लिखी, जिसमें उनके सह लेखक हैं विष्णु राजगढ़िया. यह पुस्तक राजकमल प्रकाशन से साल 2007 में प्रकाशित हुई.
सरदार भगत सिंह, महात्मा गांधी और लालबहादुर शास्त्री के चित्रों से सजी पृष्ठभूमि वाले मंच से अरविंद केजरीवाल ने दो अक्टूबर, 2012 को अपने राजनीतिक सफर की औपचारिक शुरुआत कर दी. वह बाकायदा गांधी टोपी (जो बाद में 'अन्ना टोपी' कहलाने लगी) पहनने लगे. उनकी पार्टी के सभी सदस्य टोपी पहने नजर आते हैं. उनकी टोपी की नकल अन्य पार्टियां भी करने लगीं.
केजरीवाल ने 2 अक्टूबर, 2012 को अपने भावी राजनीतिक दल का दृष्टिकोण पत्र जारी किया था. आम आदमी पार्टी के गठन की आधिकारिक घोषणा केजरीवाल और जन लोकपाल आंदोलन के बहुत से सहयोगियों ने 26 नवंबर, 2012, भारतीय संविधान अधिनियम की 63वीं वर्षगांठ के अवसर पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर की थी.
2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा, जहां उनकी सीधी टक्कर लगातार 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से थी. उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से लगातार तीन बार जीतने वाली और 15 साल शासन कर चुकी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 22 हजार से अधिक मतों से हराया.
नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनेता बने केजरीवाल की पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में धमाकेदार प्रवेश किया.
आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी. बीजेपी के बाद वह दूसरे नंबर की बड़ी पार्टी बनी और सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी सिर्फ 8 सीटें लेकर तीसरे स्थान पर खिसक गई.
अब 2015 के चुनाव में 50 से अधिक सीटें जीतकर केजरीवाल ने राजनीति के धुंरधरों को धूल चटा दी है. केजरीवाल को अपनाकर दिल्ली की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार के 24 मंत्रियों की फौज व समूचे सरकारी तंत्र को कड़ा जवाब दिया है.
केजरीवाल ने इस चुनाव को 21वीं सदी के हस्तिनापुर में कौरव-पांडव के बीच 'धर्मयुद्ध' की संज्ञा दी और स्वयं को अर्जुन बताते हुए कहा कि बीजेपी के पास कौरव-सेना यानी समूचा तंत्र है, तो सच की राह पर चलने वाली AAP के साथ भगवान श्रीकृष्ण हैं.
भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को AAP में उम्मीद की किरण नजर आई. इस चुनाव के बहाने देश की राजधानी में राजनीति ने एक नई करवट ली है. इसका संदेश निस्संदेह समूचे देश में फैलेगा. दिल्ली की जनता ने अपना दम दिखाकर दुनिया में अपनी इज्जत बढ़ा ली है.