असम में भाजपा नीत गठबंधन को मिशन 84 के लक्ष्य को पार करते हुए जबर्दस्त जीत के साथ इतिहास रचने में सफलता मिली और पार्टी 15 वर्ष से राज्य की सत्ता पर काबिज कांग्रेस को हटाकर पहली बार पूर्वोत्तर के किसी राज्य में सरकार बनाने जा रही है.
चुनावी नतीजों में भाजपा ने 60 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि उसकी सहयोगी असम गण परिषद ने 14 सीटें जीती है. साथ ही बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट 12 पर जीत दर्ज कर चुकी है. तरूण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस ने 26 सीटें जीती हैं. एआईयूडीएफ 13 सीट जीत चुकी है जबति एक निर्दलीय ने जीत दर्ज की है.
पीएम ने जीत को बताया ऐतिहासिक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम में भाजपा की जीत को 'ऐतिहासिक' और 'अभूतपूर्व' करार देते हुए कहा कि पार्टी राज्य के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी और राज्य को विकास की नई उंचाइयों तक ले जाएगी. पीएम ने ट्वीट किया, 'असम में अभूतपूर्व जीत के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं और जनता को हृदय से बधाई. यह जीत सभी मानकों पर ऐतिहासिक है.'
BJP will do everything possible to fulfil dreams & aspirations of the people of Assam & take the state’s development journey to new heights.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 19, 2016
घुसपैठ को रोकना बड़ी चुनौती
असम में भाजपा की जीत के सूत्रधारों में शामिल पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि राज्य में नई सरकार की मुख्य प्राथमिकता वृहद असमिया समुदाय के हितों को सुरक्षा प्रदान करना होगा. सोनोवाल ने कहा कि घुसपैठ को रोकना हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. भाजपा नीत गठबंधन का यह मुख्य चुनावी मुद्दा भी रहा है.
तरुण गोगोई की हार
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भी असम में भाजपा नीत गठबंधन की जीत पर जनता का आभार जताया और पार्टी कार्यकर्ताओं को बधाई दी. असम विधानसभा चुनाव के नतीजे एक्जिट पोल के अनुरूप ही रहे और 15 वर्ष से मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई चौथी पारी खेलने में नाकाम रहे. अपने 15 वर्ष के कार्यकाल में स्पष्ट निर्णयों और आमतौर पर किसी भी विवाद में न रहने के बावजूद गोगोई कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने और लोगों को उत्साहित करने में विफल रहे.
असम में बहुत पहले शुरू हो गई थी तैयारी
दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने नेता एवं केंद्रीय मंत्री सर्बानन्द सोनोवाल को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया और लोगों ने उनमें विश्वास जताकर पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार माने जाने वाले असम में भाजपा के सत्तासीन होने का मार्ग प्रशस्त किया. भाजपा ने असम में चुनाव की तैयारी दिल्ली और बिहार में हुई भारी हार से पहले से ही शुरू कर दी थी. पार्टी ने राज्य में 126 विधानसभा सीटों के लिए लड़ाई में दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने के लिए 'मिशन 84' का नारा महीनों से दे रखा था. चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो रहा है कि भाजपा नीत गठबंधन 86 सीट जीतने की ओर बढ़ रही है.
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गठबंधन से हुआ फायदा
भाजपा ने 84 सीटें हासिल करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए असम गण परिषद (एजीपी) और बीपीएफ से समझौता किया था. चुनाव से पहले कांग्रेस समेत कई दलों के नेताओं ने भी भाजपा का दामन थामा था. असम में भाजपा को 2011 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटें ही मिली थी, इस दृष्टि से राज्य में भाजपा की जीत को ऐतिहासिक और अभूतपूर्व माना जा रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को राज्य की 14 में से 7 सीटें मिली थीं.
बांग्लादेशियों के मुद्दे ने छोड़ा प्रभाव
असम अपने आप में एक मिनी इंडिया है. यहां सांस्कृतिक और भाषाई विविधता है. बराक घाटी और ब्रह्मपुत्र घाटी की सोच भी अलग है और भाषा भी ऊपरी असम और निचले असम से कई मायनों में अलग हैं. भाजपा ने हमेशा की तरह इस बार भी 'अवैध बांग्लादेशी' मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की. भाजपा नेताओं का दावा है कि राज्य के चुनाव परिणाम इस बात का प्रतीक माने जा रहे हैं कि इस मुद्दे ने अपना प्रभाव छोड़ा है.
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अल्पसंख्यक वोट का बंटवारा
राज्य में मुस्लिम आबादी 34 फीसदी है जिसमें अधिकतर बांग्ला भाषा बोलने वाले हैं. 9 जिलों के 39 विधानसभा क्षेत्रों में इनका असर भी है और वे कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल की एआईयूडीएफ को वोट देते आए हैं. पिछली बार अजमल की पार्टी को 18 सीटें मिली थी लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में एआईयूडीएफ को नौ सीटें ही मिली है. इसके साथ ही राज्य में किंगमेकर बनने का अजमल का सपना अधूरा रह गया. अल्पसंख्यक अजमल की पार्टी एआईडीयूएफ और कांग्रेस के बीच में बंटे हुए दिखे.
केंद्र के पास जश्न के दो मौके
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के लिए दिल्ली और बिहार में मिली हार के बाद असम एक अहम चुनौती थी. केंद्र में भाजपा के दो वर्ष पूरे होने के समय अमित शाह से लिए यह जरूरी था कि राजनीतिक एवं चुनावी प्रबंधक के रूप में उनकी साख बनी रहे. असम चुनाव परिणाम इस दृष्टि से भी पार्टी के लिए राहत लेकर आए हैं.
भाजपा ने तरुण गोगोई को दी मात
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुख्यमंत्री रहते हुए तरूण गोगोई के कार्यकाल में कोई दूसरा नेता उभर कर नहीं आ सका. गोगोई अपने करीबी रहे हेमंत विश्व सर्मा को साथ रखने में विफल रहे और हेमंत ने चुनाव से कुछ महीने पहले भाजपा का दामन थाम लिया था. असम के बराक और ब्रह्मपुत्र की घाटियों वाले क्षेत्र में हेमंत लोगों के बीच खासे लोकप्रिय हैं. असम में तरूण गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस ने मोदी के विरोध और असमिया अस्मिता एवं बाहरी के मुद्दे को तवज्जो दी. भाजपा ने प्रचार के दौरान यह आरोप लगाकर लाभ उठाने का प्रयास किया कि एआईयूडीएफ और कांग्रेस के बीच अघोषित गठबंधन है.
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इन वजहों ने गोगोई को हुआ नुकसान
असम में कांग्रेस अकेले दम पर चुनाव लड़ रही थी जबकि भाजपा ने विभिन्न समीकरणों पर विचार करते हुए असम गण परिषद और बीपीएफ से गठजोड़ किया था जिसका उसे लाभ मिला. बिहार में कांग्रेस की सहयोगी जेडीयू ने असम में आरजेडी तथा एआईयूडीएफ के साथ तालमेल करके लोकतांत्रिक मोर्चा बनाया था और बदरूद्दीन अजमल इस मोर्चे के नेता बने. लोकतांत्रिक मोर्चा ने कांग्रेस के वोट में ही सेंध लगाने का काम किया जिसका नुकसान भी तरूण गोगोई की पार्टी को उठाना पड़ा. हेमंत विश्व सर्मा के भाजपा में शामिल होने से भी कांग्रेस पार्टी को नुकसान हुआ.
जनजातियों का झुकाव पारंपरिक रूप से कांग्रेस की ओर रहा है, मगर चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो इस स्थिति में बदलाव आया है. ऊपरी असम में सर्बानंद सोनोवाल की वजह से भाजपा इसमें सेंध लगाने में कामयाब रही और भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में इस वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
एजीपी से गठबंधन का फायदा
भाजपा को असम गण परिषद से गठजोड़ करने का फायदा मिला. एजीपी की पहली बार 1985 में और फिर 1996 में सरकार बनी थी. असम की राजनीतिक सत्ता में 1952 से ही कांग्रेस का वर्चस्व रहा है. सिर्फ तीन बार गैर कांग्रेसी सरकारें बनीं. एजीपी ने दो बार सरकार बनाई और उससे पहले 1978 में जनता पार्टी की सरकार बनी थी.