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भाजपा और कांग्रेस, दोनों भितरघात झेल रहे बाड़मेर में, कौन होगा विनर, सोनाराम या जसवंत

संसदीय चुनावों में बाड़मेर लोकसभा सीट पर यह संभवत: पहला मौका होगा जब कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला नहीं होगा. इस बार यहां भाजपा बनाम भाजपा और कांग्रेस बनाम कांग्रेस का सीन है. दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे को चुनौती देने के बजाय, अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं. इसकी वजह हैं पाला बदल कर कांग्रेसी से भाजपाई बने कर्नल सोनाराम चौधरी और भाजपा से निष्कासित नेता जसवंत सिंह जो अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

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संसदीय चुनावों में बाड़मेर लोकसभा सीट पर यह संभवत: पहला मौका होगा जब कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला नहीं होगा. इस बार यहां भाजपा बनाम भाजपा और कांग्रेस बनाम कांग्रेस का सीन है. दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे को चुनौती देने के बजाय, अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने की जुगत में लगे हुए हैं. इसकी वजह हैं पाला बदल कर कांग्रेसी से भाजपाई बने कर्नल सोनाराम चौधरी और भाजपा से निष्कासित नेता जसवंत सिंह जो अब निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं.

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बाड़मेर से कांग्रेस ने मौजूदा सांसद हरीश चौधरी को एक बार फिर से चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं, भाजपा ने कांग्रेस से टिकट न मिलने के बाद पार्टी छोड़कर कुछ ही दिन पहले भाजपा में शामिल हुए सोनाराम चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है. भाजपा उम्मीदवार चौधरी इस सीट से कांग्रेस के टिकट पर चार बार लोकसभा चुनाव लड़कर तीन बार संसद में बाड़मेर का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. दो बार विधानसभा चुनाव लड़कर एक बार राज्य विधानसभा में बाड़मेर की बायतु विधानसभा सीट का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.

वसुंधरा लहर में विधानसभा चुनाव हारे सोनाराम
हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा के कैलाश चौधरी ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े सोनाराम को करीब 15 हजार मतों से हराया था. शिकस्त के बाद सोनाराम चौधरी ने कांग्रेस से लोकसभा का टिकट मांगा लेकिन पार्टी की ओर से हरीश चौधरी को मौका देने पर सोनाराम दलबदल कर कांग्रेसी से भाजपाई बन गए.

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जसवंत का बेटा दो बार हारा सोनाराम से
बाड़मेर संसदीय सीट पर कुछ ऐसी ही स्थिति वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह की भी है. भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण इसे स्वाभिमान की लड़ाई बताकर सिंह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में उतर पड़े हैं. बगावत के बाद उन्हें छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. हालांकि, जसवंत सिंह इस सीट से पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन उनके पुत्र और वर्तमान में बाड़मेर की शिव विधानसभा सीट के विधायक मानवेंद्र सिंह इस सीट से तीन बार 1998, 2004 और 2009 में भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. वर्ष 1998 में मानवेन्द्र सिंह ने कांग्रेस के सोनाराम चौधरी से शिकस्त खाई और 2004 के चुनावों में सोनाराम चौधरी को करारी शिकस्त दी. मानवेन्द्र 2009 में कांग्रेस के हरीश चौधरी से चुनाव हार गए थे.

क्या हैं जाति समीकरण
बाड़मेर लोकसभा सीट पर करीब 17 लाख मतदाताओं में से 3.5 लाख जाट, 2.5 लाख राजपूत, 4 लाख एससी-एसटी, 3 लाख अल्पसंख्यक और शेष अन्य जातियों के मतदाता हैं. विश्लेषकों का मानना है कि सोनाराम चौधरी के कारण कांग्रेसी वोट बैंक में बिखराव आ सकता है. चौधरी भी 50 फीसदी कांग्रेसी वोट मिलने का दावा कर रहे हैं. कांग्रेस की तरह की ही स्थिति भाजपा की है, जिसे पार्टी के परंपरागत वोट बैंक के जसवंत सिंह के पक्ष में लामबंद होने का डर सता रहा है. इसमें राजपूत और ओबीसी चारण, पुरोहित, प्रजापत जैसी जातियां शामिल हैं. सिर्फ यही नहीं भाजपा कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग भी जसवंत सिंह के पक्ष में खुलकर खड़ा है.

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