दिल्ली चुनाव में वोट देकर निकलने वालों को जायजा लेने के लिए तैयार हुए एग्जिट पोल से जो सबसे बड़ी बात निकलकर आई है, वह कांग्रेस के लिए है. यह ठप्पा उस पर लग गया है कि जहां उसका आलाकमान रहता है, वहीं उसका कोई वजूद नहीं है. पिछले चुनाव में आठ सीटें जीतने वाली इस पार्टी के अब ज्यादा से ज्यादा तीन सीटें जीतने का अनुमान है. तो इसका मतलब क्या है-
1. कांग्रेस समर्थकों ने भी मान लिया है कि अगर बीजेपी को कोई रोक सकता है तो वह कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी है. ऐसे में उसका परंपरागत वोट भी AAP के पक्ष में चला गया.
2. सोनिया और राहुल अब शून्य हो गए हैं. प्रचार के दौरान उन्होंने पुराने कामों की दुहाई दी, लेकिन उनकी नाकामियों का ऐसा असर नजर आया कि कांग्रेस के लिए समर्थन और कम हो गया. सोनिया और राहुल ने तो अपने नाम पर वोट मांगना बंद ही कर दिया है.
3. गांधी परिवार के नजदीकी अजय माकन को इस बार दिल्ली चुनाव का नेतृत्व सौंपा गया. लेकिन अपनी साफ छवि के बावजूद वे कुछ नहीं कर पाए. शीला सरकार के खिलाफ वाला गुस्सा तो अब नहीं रहा, लेकिन कांग्रेस के पक्ष में वोट और कम हो गए. पिछले चुनाव में कांग्रेस को 25 प्रतिशत वोट मिले थे, इस बार सिर्फ 15 फीसदी वोट मिलने के आसार हैं.
4. वोटरों का कांग्रेस के प्रति नजरिया ऐसा हो गया, जैसा उसे एक भी वोट दिया तो वह व्यर्थ चला जाएगा. चाणक्य के एग्जिट पोल के मुताबिक तो कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिल रही है. अगर यह सच है तो किसी राष्ट्रीय पार्टी को जनता की ओर से धूल में मिला देने की यह सबसे बड़ी मिसाल होगी.
5. आखिर में और सबसे अहम. लगातार हार के बाद सबसे बड़ी फजीहत कांग्रेस प्रवक्ताओं की होती रही है. लेकिन अब उन्होंने भी खुद को इस माहौल में ढाल लिया है. अब वे कांग्रेस की बात ही नहीं कर रहे हैं. सिर्फ AAP और बीजेपी की आलोचना कर रहे हैं, जैसा कि वो दोनों एक-दूसरे की करते हैं.
6. एग्जिट पोल के नतीजों को मानने के लिए न तो AAP तैयार है और न ही बीजेपी. दोनों ही अपनी सीटें और ज्यादा आने की बात कर रहे हैं. सिर्फ कांग्रेस ही है, जिसके नेताओं को शून्य सीटें दिए जाने पर भी ऐतराज नहीं है. मानो वे मानकर चल रहे हैं कि पार्टी तो मटियामेट हो चुकी.