बीजेपी के खिलाफ चुनावी रणभूमि में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जिन लोगों साथ मिला, उसमें वोट और सीटों के गणित से इतर एक प्रमुख नाम अरविंद केजरीवाल का है. नीतीश जब भी दिल्ली आते हैं केजरीवाल से मुलाकात करते हैं, वहीं राष्ट्रीय राजधानी में केजरवील का करिश्मा देख चुके नीतीश की चुनावी रणनीति बहुत हद तक केजरीवाल जैसी ही है.
यह दिलचस्प है कि बीजेपी के रथ में रोड़ा अटकाने के लिए नीतीश कुमार ने जहां पहले 'सांप्रादायिकता के खिलाफ लड़ाई' का नारा दिया, वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का डीएनए संबंधी अब चुनावी मंत्री बन गया है और सोशल मीडिया एक बड़ा अस्त्र.
राज्य में जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, नीतीश कुमार ट्विटर पर सक्रिय हो रहे हैं. जेडीयू-आरजेडी ने सोशल मीडिया से लेकर विधानसभा क्षेत्रों में लोगों के बीच ऐसी कई कवायद शुरू की है, जो कहीं न कहीं 'केजरीवाल शैली' से मेल खाती है.
हर घर दस्तक
दिल्ली में अरविंद केजरीवाल सत्ता के शिखर पर बैठे तो इसके पीछे एक बड़ा कारण प्रदेश के घर-घर तक आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की पहुंच थी. पोस्टर छपवाने से लेकर किसी बड़े निर्णय लेने तक में 'आप' ने जनता से मश्विरा किया.
बिहार में नीतीश कुमार ने भी कुछ इसी तर्ज पर 'हर घर दस्तक' कार्यक्रम शुरू किया. हर कार्यकर्ता के लिए घरों की संख्या तय की गई. पोस्टर और पैम्प्लेट के जरिए नीतीश सरकार की उपलब्धियों का जिक्र किया गया. यही नहीं, इस दौरान वोटरों को व्हाट्सअप के जरिए भी जोड़ा गया.
AskNitish कैंपेन
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अरविंद केजरीवाल की रजानीति ने जनता और नेता के बीच की दूरी को कम करने का काम किया है. आम आदमी पार्टी ने नेता और जनता के बीच और जनता को नेता के निकट पहुंचाने की नीति पर काम किया और राजनीति को नई धारा दी. बिहार में नीतीश कुमार भी अब इस धारा को अपने अनुसार मोड़ने में जुटे हुए हैं. 'हर घर दस्तक' के बाद 'आस्क नीतीश कैंपेन' भी बहुत हद तक इसी की बानगी रही, जिसमें जनता अपने मुख्यमंत्री से सीधा सवाल कर सकती है.
सोशल मीडिया को तव्वजो
नीतीश सरकार ने बीते कुछ महीनों में सोशल मीडिया को भी खूब तव्वजो दी है. नीतीश खुद जहां ट्विटर पर एक्टिव हुए हैं, वहीं पार्टी के दूसरे नेता और कार्यकर्ता भी फेसबुक से लेकर व्हाट्सअप जनता से जुड़ रहे हैं.
गीत-संगीत और रिंगटोन
नीतीश कुमार ने 'हर घर दस्तक' के साथ चुनाव प्रचार के लिए एक गीत भी बनवाया है. यही नहीं, वह इसे रिंगटोन बनाकर लोगों तक पहुंचा भी रहे हैं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने भी चुनावी जमीन तैयार करने के लिए कुछ ऐसी ही विधियों का इस्तेमाल किया था.
पहले कुर्सी छोड़ी, फिर मांगी माफी
यह संयोग ही है कि जिस तरह दिल्ली में 49 दिनों की सरकार के बाद वापसी के लिए अरविंद केजरीवाल ने इसे अपनी बड़ी भूल बताते हुए जनता से माफी थी, कुछ उसी अंदाज में नीतीश कुमार ने भी पहले मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दिया और फिर जनता से माफी मांगते हुए पद पर दुबारा आसीन हो गए. हालांकि इसके लिए उन्हें केजरीवाल की तरह दोबारा चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं पड़ी.