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बिहार विधानसभा चुनाव औंधे मुंह गिरी वाम एकता

बिहार विधानसभा चुनाव में राजग, राजद-लोजपा गठबंधन और कांग्रेस से लोहा लेने के लिए वाम मोर्चे के व्यापक गठजोड़ के दावे में दरार पड़ गयी है, क्योंकि सीटों के बंटवारे को लेकर भाकपा माले (लिबरेशन), भाकपा तथा माकपा झुकने को तैयार नहीं हैं.

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बिहार विधानसभा चुनाव में राजग, राजद-लोजपा गठबंधन और कांग्रेस से लोहा लेने के लिए वाम मोर्चे के व्यापक गठजोड़ के दावे में दरार पड़ गयी है, क्योंकि सीटों के बंटवारे को लेकर भाकपा माले (लिबरेशन), भाकपा तथा माकपा झुकने को तैयार नहीं हैं.

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ऐसा आरोप है कि टिकटों के बंटवारे में प्रमुख वाम दलों ने घटक के ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) सहित पांच छोटी पार्टियों के हितों की अनदेखी की है. फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी पश्चिम बंगाल सरकार में शामिल हैं. वाम एकता के तीन बड़े सहयोगियों के रवैये के विरोध में फारवर्ड ब्लाक और आरएसपी के अलावा, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर आफ इंडिया कम्युनिस्ट (एसयूसीआई-सी), भाकपा माले और मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-यूनाइटेड (एमसीपीआईयू) ने 97 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा की है.

हालांकि भाकपा, माकपा और भाकपा माले (लिबरेशन) ने वोटों के बिखराव को रोकने के लिए मिलकर चुनावी अखाड़े में उतरने की घोषणा दो सितंबर को थी. इन दलों ने बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 171 सीटों पर साझा रूप से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी. शेष 72 सीटों पर दोस्ताना संघर्ष के विकल्प खुले रखे गये थे. भाकपा माले (लिबरेशन) के कार्यालय सचिव संतोष सहार ने कहा था कि तीनों वाम दल संयुक्त रूप से 171 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेंगे और करीब 30 सीटों पर दोस्ताना मुकाबला होगा. भाकपा ने अब तक अपने 58 प्रत्याशियों की घोषणा की है. {mospagebreak}

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पांच और सीटों पर प्रत्याशी उतारने की मंशा दल ने जताई है. भाकपा के राज्य सचिव बद्री नारायण लाल ने कहा, ‘भाकपा माले (लिबरेशन) और माकपा के साथ हुए चुनावी तालमेल का हमारी पार्टी ने हर संभव तरीके से पालन करने का प्रयास किया. पार्टी ने कुछ सीटों पर दोस्ताना मुकाबले के लिए उनके खिलाफ अपने प्रत्याशियों को उतारने का फैसला किया.’ भाकपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य यूएन मिश्रा ने कहा कि 243 सीटों पर चुनावी तालमेल तो नहीं हो पाया था.

सकारात्मक बात यह है कि भ्रष्टाचार, भूमि सुधार, कीमतों में बढ़ोतरी, बार-बार आने वाली बाढ़ और सूखे जैसे साझा मुद्दों के तहत पहली बार हमने दो अन्य वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय किया. भाकपा माले (लिबरेशन) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि यह शुभ संकेत है कि वाम पार्टियों ने साझा लड़ाई में रुचि दिखाई. भाकपा माले (लिबरेशन) ने पहले तीन चरणों के लिए 48 विधानसभा क्षेत्रों में अपने प्रत्याशियों की घोषणा की है जबकि माकपा ने 26 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की स्थिति साफ की है. {mospagebreak}

माकपा ने दूसरे चरण में रुनीसईदपुर, दूसरे चरण में लौरिया (प. चंपारण) तथा छठे चरण में सासाराम तथा बक्सर से अपने प्रत्याशी उतारने की मंशा जताई है. भाकपा माले (लिबरेशन) के साथ व्यापक वाम गठजोड़ की पेशकश को भाकपा और माकपा ने पहले ठुकरा दिया था लेकिन दोनों को एहसास हो गया कि नब्बे के दशक के पहले की तुलना में लालू राज के बाद के परिदृश्य में उनकी स्थिति उतनी दमदार नहीं रह गयी है. नब्बे के दशक तक भाकपा से लोकसभा के लिए अक्सर मधुबनी, बेगूसराय, बक्सर, जहानाबाद, नालंदा और मोतिहारी जैसे संसदीय क्षेत्रों से सदस्य निर्वाचित होते थे.

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माकपा के सुबोध राय भागलपुर सीट से लोकसभा के लिए एक बार सदस्य चुने जा चुके हैं. राय ने अब जदयू की सदस्यता की ग्रहण कर ली है. सत्तारूढ़ पार्टी ने इसबार उन्हें सुल्तानगंज से टिकट दिया है. बिहार विधानसभा के 1972 के चुनावों में भाकपा ने कांग्रेस के साथ गठजोड़ कर 32 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं 1977 में इस वाम दल को 21 सीटों से संतोष करना पड़ा. 1980 में अखंड बिहार में 324 सीटों में से 22 और 1985 में 12 सीटें जीती.

पांच साल बाद 1990 में लालू के जनता दल के साथ गठजोड़ से भाकपा को 23 सीटें प्राप्त हुई. 1995 में राजद के साथ चुनावी तालमेल कर इसे 26 सीटें प्राप्त हुई. 2000 में भी भाकपा का राजद के साथ तालमेल जारी रहा लेकिन इस बार इस वाम दल को जोरदार झटका लगा और केवल पांच सीटें ही यह जीत पाया. 2005 में लोजपा के साथ मैदान में उतरे भाकपा को केवल तीन सीटें प्राप्त हुई. {mospagebreak}

माकपा ने 1967 में तीन सीटों और इसके बाद 1969 तथा 1977 में चार-चार सीटों पर विजयश्री हासिल की. वर्ष 2000 में उसे केवल एक सीट प्राप्त हुई और इसके बाद 2005 के विधानसभा चुनावों में यह किसी प्रकार से इसे बरकरार रखने में सफल रही. भाकपा माले (लिबरेशन) पहले इंडियन पीपुल्स फ्रंट के नाम से जाना जाता था. 1990 में मुख्यधारा में आने के बाद इसने 82 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें से सात पर इसे विजयश्री हासिल हुई. किसी नवोदित के लिए यह अच्छा रिकार्ड था.

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इसके बाद 1995 में उसे छह, 2000 में पांच और 2005 में पांच सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी. भाकपा माले के बिहार और झारखंड के संयोजक अरविंद सिन्हा ने आरोप लगाया कि तीन प्रमुख वामदलों ने सीटों के बंटवारे में छोटी सहयोगी पार्टियों को भरोसे में नहीं लिया. एसयूसीआई-सी के अरुण कुमार सिंह ने दावा किया कि छोटी पार्टियां के 97 सीटों पर लड़ने पर तीन वाम दलों को पता चल जायेगा कि उनकी औकात क्या है.

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