प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके बिहार चुनाव में बीजेपी हर उस नुस्खे को आजमाना चाहती है, जिसका तनिक भी फायदा हो रहा हो. जातीय समीकरण की ओर बढ़ चुके इस चुनाव से कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी पार्टी आलाकमान को दिखने लगी है. लिहाजा पार्टी ने बिहार के करीब ढाई-तीन हजार कार्यकर्ताओं को 'तीर्थ' पर भेजने की योजना बनाई है.
स्वतंत्रता दिवस समारोह के फौरन बाद इस योजना पर अमल शुरू हो जाएगा, जिसकी मुकम्मल तैयारी हो चुकी है. बीजेपी ने इस चुनाव को विकास के एजेंडे पर वापस लाने के मकसद से यह योजना तैयार की है. जिसमें बीजेपी शासित चार राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का चयन किया है. इन राज्यों में 600-700 के समूह में बिहार बीजेपी के कार्यकर्ता बारी-बारी से इन राज्यों में भेजे जाएंगे.
यह दौरा करीब तीन से चार दिन का एक राज्य में होगा. इसमें बीजेपी अपने राज्य के विकास की तस्वीर अपने ही कार्यकर्ताओं को दिखाएगी. बिहार बीजेपी के इन कार्यकर्ताओं को मुंबई में सिद्धिविनायक तो उज्जैन में महाकाल और गुजरात में सोमनाथ आदि मंदिरों के भी दर्शन कराए जाएंगे. लेकिन उनका फोकस इन राज्यों में हो रहे विकास को दिखाना है.
अपने ही कार्यकर्ताओं को विकास दिखाने की जरूरत क्यों?
सवाल उठता है कि अचानक बिहार चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को अपने ही कार्यकर्ताओं को यह समझाने की जरूरत
क्यों आन पड़ी है कि बीजेपी शासित राज्यों में बेहतरीन विकास हो रहा है और यही मॉडल बिहार में भी अपनाया जा
सकता है. कार्यकर्ताओं को महाराष्ट्र में 24 घंटे बिजली, मध्य प्रदेश, गुजरात की बेहतरीन
सड़कें आदि के बारे में बताया और दिखाया जाएगा. इसका मकसद यह है कि बीजेपी के कार्यकर्ता
बिहार लौटकर बीजेपी शासित राज्यों के विकास के बारे में जनता को बताएं.
दरअसल बीजेपी को लगता है कि जिस तरह से लालू-नीतीश गठबंधन से जातियों का ध्रुवीकरण हो रहा है, उससे बीजेपी के कार्यकर्ताओं का मनोबल वैसा नहीं है जैसा लोकसभा चुनाव के दौरान दिखा था. ऐसे में विकास का एजेंडा पीछे छूट रहा है, लेकिन तीर्थाटन के फॉर्मूले से कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ाया जाएगा और विकास की तस्वीर दिखाकर उन्हें जनता को यह बतलाने के लिए प्रेरित किया जाएगा.