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...तो क्या तय है बिहार में बीजेपी पर लालू-नीतीश की जीत?

बिहार में बीजेपी के खि‍लाफ खड़े 'महागठबंधन' ने सीटों के बंटवारे के साथ बुधवार को लिटमस पेपर टेस्ट पास कर लिया है. लेकिन राजनीति के इस दंगल में असली धोबी पछाड़ को पार पाना अभी बाकी है. क्योंकि एसिड टेस्ट अभी बाकी है.

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लालू प्रसाद, नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
लालू प्रसाद, नीतीश कुमार (फाइल फोटो)

बिहार में बीजेपी के खि‍लाफ खड़े 'महागठबंधन' ने सीटों के बंटवारे के साथ बुधवार को लिटमस पेपर टेस्ट पास कर लिया है. नीतीश कुमार ने घोषणा की कि जेडीयू और आरजेडी 100-100 और कांग्रेस 40 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ेगी. यानी एक तरह से देखा जाए तो चुनावी गली के सबसे मुश्कि‍ल मोड़ पर गठबंधन ने सबसे समझदारी और संतुलन वाला फैसला किया है, लेकिन राजनीति के इस दंगल में असली धोबी पछाड़ को पार पाना अभी बाकी है. क्योंकि एसिड टेस्ट अभी बाकी है.

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तीनों दलों के बीच सीटों का यह बंटवारा इस मायने में महत्वपूर्ण था कि यहीं से महागठबंधन की असली धार का पता चलता. इसमें कोई दोराई नहीं है बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला लेकर जेडीयू-आरजेडी ने यह संदेश दिया है कि अंदर खाने चाहे कितनी भी नूरा कुश्ती हो, बाहर 'हम सब एक हैं' का नारा ही लगेगा. इस फैसले के साथ कांग्रेस को भी प्रदेश में अपनी चुनावी जमीन मिल गई है, लेकिन यह सब इतना भी सरल नहीं है. क्योंकि राजनीति में सीधे संकेत से कहीं ज्यादा छिपी हुई आशंकाएं मायने रखती हैं.

नीतीश के कितने अपने हो पाएंगे 'लालू'
सीटों के बंटवारे के बाद सबसे बड़ा सवाल जनमत यानी जनता के वोटों पर आकर टिक जाता है. इंडिया टुडे हिंदी के संपादक और बिहार चुनाव पर गहरी नजर रखने वाले अंशुमान तिवारी कहते हैं, 'सीटों का बंटवारा तो हो गया है, लेकिन अब सबसे महत्वर्पूण यह देखना होगा कि लालू प्रसाद के कितने वोट नीतीश के खाते में जाते हैं. सीधे शब्दों में कहें तो आरजेडी के वोटों का नीतीश के खाते में ट्रांसफर ही महागठबंधन की जीत या हार का फैसला करेगा.'

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वोटों के इस गणि‍त के बारे में आगे बात करते हुए वह कहते हैं, 'प्रदेश में लालू प्रसाद और आरजेडी का जनाधार भले ही पहले के मुकाबले थोड़ा खि‍सका हो, लेकिन यह भी सच है कि उनका एक वोट बैंक है. लालू-नीतीश अब तक एक दूसरे के विरोधी रहे हैं. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि लालू का वोट बैंक इस मेल को कितना स्वीकारता है. लोकसभा चुनाव के समय हम इसकी एक झलक देख चुके हैं.'

यही है सबसे सही फॉर्मूला
अंशुमान कहते हैं कि इसमें कोई दोराय नहीं है कि सीटों के बंटवारे का यही सही फॉर्मूला है. इससे पहले संभावना जाहिर की जा रही थी कि जेडीयू 120-130 सीटों पर अपनी दावेदारी रखेगी, लेकिन इसी बीच दोनों प्रमुख दलों के बीच तनाव की भी खबरें आईं. जाहिर तौर पर नया फॉर्मूला दोनों दलों को बराबर मौका देने के साथ ही एक संतुलन भी बनाता है. वह कहते हैं, 'इससे कम या ज्यादा की स्थि‍ति में किसी न किसी का नाराज होना तय था और यह गठबंधन के लिए कहीं से भी श्रेष्यकर स्थ‍िति नहीं होती है.'

एनडीए पर भी बना दबाव
सीटों के बंटवारे में आरजेडी-जेडीयू ने बराबर साझेदारी के साथ जहां एक और एक-दूसरे को तुष्ट किया है, वहीं इसी तीर से बीजेपी नीत एनडीए पर भी दबाव बनाया है. क्योंकि विरोधी खेमे ने अभी तक ऐसा कोई बंटवारा नहीं किया है, जबकि वहां जीतन राम मांझी से लेकर राम विलास पासवान और खुद बीजेपी अधि‍क से अधि‍क की चाह रखने की मंशा जता चुकी है. हालांकि यह भी तय है कि अंतिम मुहर बीजेपी के फैसले पर ही होगा, लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि विरोधी 'महागठबंधन' को देखते हुए क्षेत्रीय पार्टियां उस खेमे में भी सिर उठाएंगी.

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दूसरी ओर, एनडीए से पहले सीटों के बंटवारे का ऐलान कर महागठबंधन ने जहां एक ओर जनता के सामने अपनी रणनीति साफ कर दी है, वहीं बीजेपी नीत विरोधी खेमे पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने का भी काम किया है.

चुनावी क्षेत्र बड़ा मुद्दा नहीं
जानकार मानते हैं कि जिस तरह सीटों के बंटवारे में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस ने समझदारी और संतुलन का परिचय दिया है, विधानसभा क्षेत्र के बंटवारे में भी यही परिपक्वता देखने को मिलेगी. महागठबंधन से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पहली प्राथमिकता जीती हुई सीटों को दी जाएगी. इसके बाद जीत की संभावित सीटों और फिर इसी क्रम में क्षेत्रों का बंटवारा होगा.

मिलेगा बराबर का मौका
राजनीति की सबसे बड़ी नीति शायद यही है कि यहां हर स्तर पर एक राजनति चल रही होती है. यानी गले मिलने के बावजूद यहां अपनों से आगे बढ़ने और बेहतर साबित करने की होड़ मची रहती है. बीते दिनों ट्विटर से लेकर सियासी मंच तक जेडीयू-आरजेडी के बीच अंदरखाने की तल्खी सामने आई है. ऐसे में बराबर सीटों का बंटवारा दोनों के लिए बराबर मौके की तरह है. यानी चुनाव बाद आंकड़ों का पलड़ा जिसकी ओर झुकेगा नेता उसकी पसंद का होगा.

फिलहाल लालू ने मारी बाजी
बहराहल, सीटों के बंटवारे की इस घोषणा से फिलहाल यही जान पड़ता है यहां लालू प्रसाद बाजी मार गए हैं. क्योंकि 10 साल सत्ता में रहने और सुशासन बाबू का तमगा हासिल करने के बावजूद बीजेपी खासकर नरेंद्र मोदी को रोकने के उन्हें आरजेडी के साथ समझौता करना पड़ रहा है. जेडीयू पहले आरजेडी से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की मंशा जता चुकी थी, लेकिन जिस तरह नीतीश बैकफुट पर आए हैं, उनका हाल बताने की ज्यादा जरूरत नहीं है.

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