इस बार बिहार चुनाव में प्रचार के तरीके काफी बदले-बदले नजर आ रहे हैं. बीजेपी तो 2014 के लोकसभा चुनाव में ही प्रचार के अभिनव प्रयोगों से चौंका चुकी है, लेकिन विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी उसी राह चल पड़े हैं. उनकी अगुआई वाले साझे मोर्चे ने हाई-टेक प्रचार की रणनीति बनाई है.
गौर करें तो पाएंगे कि नीतीश का प्रचार कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा 2014 लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी का था. इसकी वजह हैं प्रशांत किशोर. प्रशांत किशोर ने ही लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रचार की कमान संभाली थी. 'चाय पर चर्चा' और '3डी होलोग्राम' का आइडिया उनकी टीम की ही उपज था. लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने प्रशांत किशोर का इस्तेमाल नहीं किया. वही प्रशांत अब बिहार में नीतीश के प्रचार की कमान संभाल रहे हैं.
देखते हैं कि 2014 में मोदी के और 2015 में नीतीश के चुनाव प्रचार में कैसी समानताएं हैं:
1. ट्विटर पर सियासी चूंचूं
बिहार का वोटर ट्विटर से कितना प्रभावित होगा, यह बहस का विषय होगा, लेकिन प्रशांत किशोर ने यह दांव भी खेल दिया है. नीतीश ट्विटर पर सक्रियता से उतर आए हैं. वह बिहार के पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने इस माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट पर सवाल-जवाब का सत्र बुलाकर चुनाव प्रचार किया. बीते दिनों ट्विटर पर #AskNitish हैशटैग के जरिये लोगों ने उनसे सवाल पूछे और मुख्यमंत्री ने जवाब दिए. इसी दौरान ही वह 'भुजंग कंट्रोवर्सी' हुई.
2014 में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार का अहम टूल ट्विटर था. मोदी समर्थकों की टीम दिन भर काम करती थी ताकि उनके हैशटैग ट्विटर के टॉप ट्रेंड बने रहें. प्रधानमंत्री बनने के बाद भी मोदी ट्विटर को बड़ी ताकत मानते हैं और वहां खासे सक्रिय हैं.
2. नारे भी कमोबेश एक जैसे
मोदी का 'अबकी बार, मोदी सरकार' का नारा सुपरहिट साबित हुआ था और इसे बेहतरीन लोकसंपर्क की मिसाल के तौर पर याद किया जाता है. प्रशांत किशोर ने ऐसा ही आकर्षक और जुबान पर चढ़ने वाला नारा नीतीश के लिए भी बनाया है. यह है, 'फिर से एक बार हो, बिहार में बहार हो, फिर से एक बार हो, नीतीशे कुमार हो.' 'नीतीशे' में आंचलिकता का पुट भी है.
इस गीत को मोबाइल फोन तक पहुंचाने के मकसद से इसकी रिंगटोन भी रिलीज की गई है. इसका इस्तेमाल नीतीश के प्रचार अभियान 'हर घर दस्तक' के दौरान किया जा रहा है. नीतीश समर्थक नारों में वैसी सामयिकता भी नजर आ रही है, जैसी बीजेपी इस्तेमाल करती रही है. यह अनायास नहीं है कि मोदी की मुजफ्फरपुर रैली के ठीक बाद नारा आया, 'झांसे में न आएंगे, नीतीश को जिताएंगे.'
3. नीतीश का 'पर्चा पर चर्चा'
डोर-टु-डोर कैंपेन कोई नया तरीका नहीं है, लेकिन 2014 में बीजेपी और 2015 में आम आदमी पार्टी ने इसका बड़े स्तर पर और कामयाब इस्तेमाल किया. 'घर घर मोदी, हर हर मोदी' का नारा वाराणसी से उछला और दिल्ली तक छाया रहा. इस बार जेडीयू कार्यकर्ता भी हाथ में पर्चे लिए घर-घर जा रहे हैं. 30 दिन में पार्टी के 10 लाख कार्यकर्ताओं ने 1 करोड़ घरों पर दस्तक देकर 3 करोड़ लोगों से संपर्क करने का लक्ष्य रखा है. जेडीयू की ओर से पर्चा पर चर्चा भी चलाई जा रही है. इसका मकसद पार्टी के पर्चों के आधार पर मतदाताओं से चर्चा करना है ताकि अर्ध-शहरी और ग्रामीण मतदाताओं के साथ सीधा नाता जोड़ा जा सके. चुनाव प्रचार का यह तरीका भी मोदी के बेहद सफल रहे चाय पर चर्चा से साफ तौर पर प्रेरित लगता है. मजे की बात है कि वह तरीका भी प्रशांत किशोर के दिमाग की उपज था.
4. जुड़ने के लिए कॉल करें
बीजेपी ने मिस्ड कॉल कैंपेन चलाया था. नीतीश कुमार ने भी एक नंबर जारी किया है. विज्ञापन इस तरह है- 'हमसे जुड़ने के लिए कॉल करें. 9006290062'
5. 10 साल बाद का विजन
नीतीश कुमार फेसबुक और ट्विटर पर The Bihar@2025 कैंपेन लॉन्च करने वाले हैं. इसके तहत बीते 10 साल में सरकार की उपलब्धियों का बखान किया जाएगा, सवालों के जवाब दिए जाएंगे और सुझावों को आमंत्रित किया जाएगा. जनता तक पहुंचने का यह तरीका मोदी स्टाइल की याद दिलाता है. मोदी भी अपने भाषणों में भारत के 10 और 20 साल बाद के भविष्य पर बात किया करते थे. नीतीश कुमार अपने समर्थकों और मीडिया से नाश्ते की बैठकी भी करना शुरू करेंगे.
6. मोदी सरकार पर तथ्यों के साथ वार
मोदी ने यूपीए के समय के भ्रष्टाचार और गिरती अर्थव्यवस्था और विकास के सपने को मुद्दा बनाया था. टीम नीतीश ने मोदी की आलोचना को लेकर बहुत तार्किक रणनीति तैयार की है. वह हवाई फायर और बदजुबानी करने के बजाए कागजों पर बात कर रहे हैं. मोदी सरकार पर उन्हीं की जुबान से निकले अब तक अधूरे वादों की बाबत हमला किया जा रहा है. मसलन काले धन की वापसी और सबके अकाउंट में 15-20 लाख रुपये आने का वादा, एमएसपी पर यूटर्न, 2022 में सबको घर देने के सपने पर अब तक कोई योजना-संसाधन नहीं, बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे का वादा आदि.