राजस्थान के चुनावी गणित का ज्ञान रखने वाले लगभग हर विशेषज्ञ ने प्रदेश में इस बार कमल खिलने की बात पहले ही कह दी थी. लेकिन यह कमल इतना बड़ा खिलेगा, इसकी कल्पना खुद बीजेपी को भी नहीं थी.
चुनाव नतीजे सामने हैं. प्रदेश में बीजेपी को 199 में से 162 सीटें मिली हैं. यानी बीजेपी ने 81 फीसद सीटें हासिल की हैं. यह आंकड़ा राजस्थान समेत खुद बीजेपी के लिए ऐतिहासिक है. राजस्थान में मोदी की लहर की कल्पना तो हर किसी ने की थी, लेकिन यह तूफान का रूप ले लेगी यह कोई नहीं जानता था.
कांग्रेस को प्रदेश में सिर्फ 21 सीटें मिली हैं, जो 10 फीसद के आसपास है. एक तरह से कहें तो कांग्रेस के लिए यह धोबी पछाड़ जैसी स्थिति है. हालांकि चार राज्यों में छत्तीसगढ़ को छोड़कर दिल्ली और मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस की स्थिति कमोबेश ऐसी ही है. लेकिन राजस्थान पर बात इसलिए कि यहां पार्टी की जीत के लिए कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी से लेकर उपाध्यक्ष राहुल गांधी तक ने खूब पसीना बहाया था.
राजनीति नहीं जन-रणनीति कहिए
राजस्थान के चुनावी गणित पर ध्यान दें तो यहां ज्यादा माथापच्ची की जरूरत नहीं पड़ती. जनता बीते कई वर्षों से यहां हर पांच साल पर परिवर्तन को चुनती है. इस नतीजे के बाद भी जनता ने इस रणनीति को स्पष्ट कर दिया कि वे हर 5 साल में नई सरकार को अवसर देना चाहते हैं. 1998 में भाजपा को हटाकर प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के हाथों में जनादेश सौंपा था. इसके बाद से यह तीसरा चुनाव है जिसमें प्रदेशवासियों ने बीजेपी और कांग्रेस की सरकार को एक के बाद एक करके मौका दिया है.
आंकड़ों मे गुजरात को भी छोड़ा पीछे
मौजूदा नतीजों ने बीजेपी की सबसे बड़ी जीत के आंकड़े को बदल कर रख दिया है. इससे पूर्व पार्टी के लिए 2002 में गुजरात की जीत सबसे बड़ी थी. तब बीजेपी 182 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से 127 सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई थी. यानी 69 फीसद.
वहीं राजस्थान की बात करें तो यहां 2003 में बीजेपी ने 197 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे, जिसमें से पार्टी को 120 सीटों पर जीत मिली थी. यह 60 फीसद का आंकड़ा था. हालांकि इससे पूर्व कांग्रेस ने भी बीजेपी को 1998 में कुल दावेदारी में से 76 फीसद सीटें जीतकर करारी शिकस्त दी थी. लेकिन 81 फीसद का ताजा आंकड़ा कांग्रेस के लिए सूद समेत वापसी की तरह है.
बढ़ा वसुंधरा का कद
चुनाव नतीजों के साथ ही एक बार फिर वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सरकार का बनना तय है. इस जीत में मोदी इफेक्ट भले की काम आया हो, लेकिन इससे पार्टी और राज्य में वसुंधरा का कद भी बढ़ा है. विपक्ष ने भी वसुंधरा के लिए 'तानाशाह' और 'ऐट पीएम नो सीएम' जैसे जुमले तैयार किए थे, लेकिन इनमें से एक भी काम नहीं आए. चुनाव की घोषणा के साथ ही जिस तरह वसुंधरा ने प्रत्याशियों के चयन से लेकर रणनीति तक हर जगह अपनी दमदार उपस्थिति रखी, उसने नतीजों के बाद पार्टी के भीतर और बाहर उन्हें और मजबूत बनाया है.
ढ़ेर हुए कांग्रेसी दिग्गज
इस बार चुनाव में कांग्रेस के कई दिग्गज धराशाई हो गए. यही नहीं जनता ने दागी नेताओं के रिश्तेदारों को भी नकार दिया. ओसियां से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मंत्री महिपाल मदेरणा की पत्नी लीला मदेरणा, लूणी से मलखान विश्नोई की मां अमरी देवी, दूदू से पूर्व मंत्री बाबूलाल नागर के भाई हजारीलाल नागर को हार का सामना करना पड़ा है.
इसके अलावा तिजारा से कांग्रेस दिग्गज दुर्रू मियां, सिविल लाइंस जयपुर से प्रताप सिंह खाचरियावास, कोटा उत्तर से शांति धारीवाल, सुमेरपुर से बीना काक, बीकानेर पश्चिम से बीडी कल्ला, श्रीमाधोपुर से दीपेंद्र सिंह, आसीन से रामलाल जाट और कोलायत से देवी सिंह भाटी भी कांग्रेस की साख नहीं बचा पाए.
काम नहीं आई राहुल की भावुकता
प्रदेश में जीत के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने देश के लिए अपनी दादी इंदिरा और पिता राजीव गांधी की शहादत तक याद दिलाई थी. चुरु के चनावी रैली में राहुल ने भावुक होकर यहां तक कहा था कि उन्हें आशंका है कि अमन के दुश्मन एक दिन उन्हें (राहुल) भी मार देंगे. लेकिन अफसोस कि चुनावी दंगल में जनता को उनकी भावुकता भी नहीं बांध सकी.