एक तरफ जहां राहुल गांधी बढ-बढ़कर भ्रष्टाचार, भ्रष्ट लोगों के खिलाफ बात कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ बीजेपी भी दागदार लोगों को पार्टी से दूर रखने के दावे तो कर रही है लेकिन इन पार्टियों की कथनी और करनी का फर्क टिकटों के बंटवारे में साफ दिख रहा है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि इन दोनों बड़ी पार्टियों ने ही बड़ी संख्या में उन नेताओं को टिकट दिए हैं जिनके खिलाफ गंभीर अपराधिक मामले चल रहे हैं.
लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ से घोषित 62 उम्मीदवारों में से 23 के खिलाफ अपराधिक और 14 ऐसे हैं जिनपर गंभीर अपराधिक मामले चल रहे हैं. इसी तरह कांग्रेस के 126 उम्मीदवारों में 33 के खिलाफ आपराधिक और 10 के खिलाफ गंभीर अपराधिक मामले सामने आए. मतलब 30 फीसदी ऐसे लोगों को टिकट मिल चुका है जिनके खिलाफ कोई ना कोई अपराधिक मामला चल रहा है.
इन आकंड़ों ने कई अन्य पार्टियों के नेताओं को देश की दो बड़ी पार्टियों पर हमला बोलने बोलने का पूरा मौका दे दिया है. जेडीयू नेता शरद यादव कहते हैं कि समय आने पर हम ये मुद्दा उठाएंगे. पिछली बार भी जनता ने दागदार नेताओं को हराया था और इस बार भी वही सबक सिखाएगी.
एक साल में सभी एमपी, एमएलए के खिलाफ चल रहे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये तो तय है कि यदि ये दागी उम्मीदवार जीत भी जाएं तो संसद में वो लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे. ऐसे में सवाल यही है कि ये जानते हुए भी पार्टियां दागी नेताओं को टिकट क्यों दे रही हैं? वैसे भी अभी बहुत से उम्मीदवारों के नाम का ऐलान होना बाकी है. उन उम्मीदवारों की छवि कैसी होगी, यह भी जल्द ही पता चल जाएगा.
लेकिन एक कड़वा सच यह है कि यदि दागी नेता जीत कर संसद पहुंच भी जाते हैं और बाद में उन पर अपराध साबित हो जाता है तो मई 2015 तक वे भी लालू यादव की तरफ संसद से बाहर हो जाएंगे.