देश में चुनावी मौसम एक बार फिर आ गया है. दिल्ली और बिहार चुनाव में करारा झटका खाने वाली बीजेपी आने वाले चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह अभी से सियासी गोटियां फिट करने में जुट गए हैं.
इस साल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और अगले साल यूपी और पंजाब के चुनावों में कामयाबी के लिए बीजेपी वोट बैंक की पॉलिटिक्स ध्यान में रखकर कदम बढ़ा रही है. हाल की घटनाओं और बयानों पर नजर डालें तो बीजेपी का एजेंडा साफ-साफ नजर आता है. बीजेपी के एजेंडे में शामिल हैं ये बातें-
1- राष्ट्रवाद:
जेएनयू से शुरू हुई राष्ट्रवाद की लड़ाई अब बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गई है. फिर चाहे वह देश विरोधी नारे लगाने का मुद्दा हो या 'भारत माता की जय' न बोलने की बात हो. हाल ही में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रवाद को पार्टी की ताकत बताया. उन्होंने कहा, 'राष्ट्रवाद हमारी ताकत है और हम इसे लेकर ही आगे बढ़ेंगे.' बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी बैठक में कहा कि पार्टी किसी भी सूरत में देश का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती.
राष्ट्रवाद के मुद्दे को जिस तरह बीजेपी लगातार उठा रही है जाहिर है चुनावों में भी इसका फायदा उठाने की पूरी कोशिश होगी.
2- दलित अधिकार:
बीजेपी ने जिस तेजी के साथ दलित अधिकारों का मुद्दा उठाया है उससे साफ पता चलता है कि वह आने वाले चुनावों में भी इसे भुनाएगी. हालांकि हालिया पांच राज्यों के चुनाव में उसे इसका खास फायदा होता नहीं दिख रहा लेकिन यूपी और पंजाब के चुनावों में वह इसे वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करेगी. बीजेपी ने दलितों को रिझाने के लिए न सिर्फ आरक्षण के मुद्दे को उठाया बल्कि बाबा साहब अंबेडकर को भी अपना आइकन बनाकर पेश किया है.
अंबेडकर स्मारक के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को 'बाबा साहब का भक्त' बताया था. उन्होंने यह भी कहा, 'आरक्षण कोई खत्म नहीं कर सकता. कुछ लोग आरक्षण को लेकर भ्रम फैला रहे हैं.' साफ है कि बीजेपी बिहार चुनावों के दौरान आरक्षण की बहस से हुए नुकसान को दोबारा नहीं झेलना चाहती और यही वजह है कि प्रधानमंत्री से लेकर बीजेपी अध्यक्ष तक आरक्षण की वकालत लगभग हर सभा में कर रहे हैं.
3- यहां बढ़ाएंगे हैसियत:
अप्रैल-मई में पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल में चुनाव हैं. पश्चिम बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापस आने के लिए पूरा जोर लगा रही है तो वहीं असम में कांग्रेस ने भी एक बार फिर सरकार बनाने का दम भरा है. यहां बीजेपी को अब तक सत्ता नहीं मिली है. तमिलनाडु और केरल में बीजेपी को अभी पैर जमाना है. इन दो राज्यों में बीजेपी के लिए सत्ता का सपना दूर की बात है यहां विपक्ष में बैठने के लिए भी पार्टी को लंबी रेस दौड़नी होगी.
बीते दिनों 'इंडिया टुडे कॉन्क्लेव' में खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बीजेपी सिर्फ अपनी असरदार उपस्थिति दिखाना चाहती है और हैसियत में इजाफा करना चाहती है. उन्होंने कहा, 'उन राज्यों में हम सत्ता में बैठने के लिए नहीं अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए लड़ रहे हैं.'
इसके अलावा, यूपी और पंजाब में भी बीजेपी को कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी. लोकसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन ने यूरी में 73 सीटें जीतकर सियासी अटकलों में जो उलटफेर किया था उसे बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी. साथ ही पंजाब में भी आम आदमी पार्टी के बढ़ते असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. ऐसे में बीजेपी को यहां भी अपनी हैसियत को मजबूत करने के लिए कड़ी जंग लड़नी पड़ेगी.