खुद की बीजेपी से पुरानी नजदीकियों के आरोप पर किरण बेदी ने AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल पर पलटवार किया है. उन्होंने पूछा है कि अगर मैं बीजेपी के लिए नरम थी तो 2013 में केजरीवाल ने उन्हें मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी क्यों ऑफर की थी. उन्होंने कहा, 'अगर मैं लोगों की बातों पर कमेंट करती रहूंगी तो काम कब करूंगी.' हालांकि केजरीवाल एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में पहले ही कह चुके हैं कि वह किरण बेदी की इस 'नरमी' के बारे में जानते हुए भी वह उन्हें अपने पाले में लेने की कोशिश कर रहे थे.
इससे पहले AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि किरण बेदी बहुत पहले से ही बीजेपी के करीब थीं.
उन्होंने यह दावा भी किया कि किरण बेदी के बीजेपी में आने से आम आदमी पार्टी को फायदा हुआ है. अंग्रेजी अखबार 'द इकोनॉमिक टाइम्स' से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनके पार्टी में शामिल होने से पहले ही दिल्ली में बीजेपी की नैया डूबने की कगार पर पहुंच चुकी थी और बाद में उन्होंने खुद पार्टी को डुबाने में बड़ा रोल निभाया.
'उन्हें BJP ही मिली जाने के लिए'
किरण बेदी के आने के बाद राजनीति कैसे बदली है, इस सवाल पर केजरीवाल ने कहा, 'पहले दिल्ली बीजेपी बंटी हुई थी. नेताओं के कई गुट थे. अब वे सभी गुट एक होकर मुख्यमंत्री पद पर किरण बेदी की दावेदारी के खिलाफ काम करने लगे हैं.'
किरण बेदी के भाजपाई होने पर अपनी पहली प्रतिक्रिया के बारे मे पूछे जाने पर AAP संयोजक ने कहा, 'बड़े हैरत की बात थी. जब ये खबर मिली तो मुझे याद नहीं कि मैं कहां था. पर मेरे मन में पहला ख्याल यही आया कि यार बीजेपी ही मिली जाने के लिए.'
'गडकरी का घेराव करने से रोका था बेदी ने'
केजरीवाल ने दावा किया कि किरण बेदी की बीजेपी से नजदीकियों का अंदाजा उन्हें पहले से था. उन्होंने बताया, 'जब हम तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी के घर का घेराव करने वाले थे तो उन्होंने इससे मना किया. हमने घेराव किया और वह सार्वजनिक रूप से हमारे खिलाफ हो गईं. हम उन्हें अपनी तरफ लाना चाहते थे लेकिन वह नहीं मानीं. उसके बाद उनसे हमारे रिश्ते नहीं रहे. ऐसा लगा कि किसी ने कोई स्विच ऑफ कर दिया हो. '
'तब गलत थीं, या अब गलत हैं?'
क्या वह किरण बेदी के बीजेपी में जाने से ठगा हुआ महसूस करते हैं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'मैं महत्वपूर्ण नहीं हूं, पर लोग हैं. मैं कई लोगों से मिला हूं जिन्होंने कहा कि अगर उन्हें राजनीति में आना था तो आम आदमी पार्टी में आतीं. अगर उन्हें बीजेपी इतनी ही पसंद थी तो वह अन्ना आंदोलन का हिस्सा क्यों बनीं? या तो वह उस वक्त गलत थीं, या अब गलत हैं.'