देश बदलाव को बेताब है, इसकी जानकारी सभी को थी. एक झलक दिल्ली विधानसभा चुनाव में देखने को मिली. बदलाव की एजेंट बनी आम आदमी पार्टी, लेकिन सिर्फ 6 महीने में कितना कुछ बदल गया. इसका अंदाजा बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों को भी नहीं था. AAP लोकसभा चुनाव में वही प्रदर्शन दोहराने में नाकामयाब रही, फायदा बीजेपी को मिला. सूबे की सभी सीटों पर कमल खिला.
अरविंद केजरीवाल की पार्टी को इन सीटों पर दूसरे स्थान से ही संतोष करना पड़ा. इसका अंदाजा उन्हें भी नहीं था, तभी तो मतदान के दिन उन्होंने ट्वीट कर दावा किया था कि दिल्ली की 7 में से 6 सीटें AAP के खाते में जाएंगी. नतीजे ठीक उलट. एक भी सीट जीतने को लाले पड़ गए. चुनाव लड़े, टक्कर दी. पर मोदी लहर के सामने पार्टी के सभी कैंडिडेट बौने साबित हुए.
दिल्ली में बीजेपी की जीत का श्रेय सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी को जाता है. डॉ. हर्षवर्धन को छोड़ दिया जाए तो एक भी उम्मीदवार ऐसा नहीं था जिसे जनाधार वाला नेता कहा जाए. क्या आपने उम्मीदवारों के नाम के ऐलान से पहले महेश गिरि का नाम सुना था? दलित की सियासत करने का दंभ भरने वाले उदित राज अगर निर्दलीय खड़े हो जाएं तो उन्हें कितने वोट मिलेंगे? मनोज तिवारी पहले सपा में थे, यूपी से चुनाव लड़े, हार गए. रमेश बिधूड़ी पहले भी लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं और हारे भी. मीनाक्षी लेखी को आपने टीवी पर बाइट देते सुना और देखा होगा पर क्या वह चुनाव जीत सकती हैं? आप इन उम्मीदवारों पर दांव लगाने को तैयार हैं? नहीं, ना. पर ये सभी बीजेपी के कैंडिडेट अपनी-अपनी सीट से जीते. वो भी बड़े अंतर से. यह मोदी लहर ही थी.
दिल्ली के चुनाव की एक खास बात यह रही कि वो मिडिल क्लास जो विधानसभा चुनाव में आप को एक उम्मीद की तरह देखने लगा था वह उसके कारनामे और नीतियों से जल्द ही निराश हो गया. मिडिल क्लास को अराजकता नहीं पसंद, यह साफ है. शायद, उन्हें अराजक केजरीवाल नहीं भाया. मोदी में उम्मीद दिखी और उनकी भाषा में दिल्ली से 7 कमल भेज दिए संसद में.
अरविंद केजरीवाल से एक बड़ी गलती मूड पढ़ने में हुई. उन्हें लगने लगा कि दिल्ली अब आम आदमी पार्टी की गिरफ्त में है. उन्हें लगा कि सिर्फ 49 दिनों में ही मुख्यमंत्री पद से उनके इस्तीफे को जनता त्याग के तौर पर देखेगी. लोगों ने त्याग से ज्यादा इसे राजनीतिक अपरिपक्वता या फिर स्टंट करार दिया. ये देश टिकाऊ चीजों में बहुत विश्वास रखता है. केजरीवाल अच्छे तो लगते हैं पर टिकाऊ नहीं. जो टिकता नहीं वो मार्केट में बिकता नहीं. नतीजा सबके सामने है.
केजरीवाल से एक और बड़ी गलती हुई. उन्होंने अपना दायरा बढ़ा दिया. बड़े नाम दिल्ली छोड़कर चले गए. केजरीवाल खुद मोदी को टक्कर देने बनारस पहुंच गए. कुमार विश्वास ने राहुल गांधी को अमेठी में ललकारा. मनीष सिसोदिया और संजय सिंह जैसे जाने-पहचाने चेहरे चुनाव नहीं लड़े. आशीष खेतान को नई दिल्ली से टिकट दिया. केजरीवाल लहर में भी विधानसभा चुनाव हारने वाले देवेंद्र सिंह शेहरावत को साउथ दिल्ली से उतार दिया.
अब नतीजे आ चुके हैं. नतीजों की निराशा केजरीवाल के बयान में साफ झलकी. उम्मीद है कि वो विधानसभा चुनाव में वापसी करेंगे.
अब बात कांग्रेस की. पार्टी ने पिछले चुनाव में सभी सीटें जीती थीं. एक से एक धुरंधर. कपिल सिब्बल से लेकर जयप्रकाश अग्रवाल, कृष्णा तीरथ और महाबल मिश्रा. पार्टी ने इस बार सभी उम्मीदवारों को रिपीट किया, पर नतीजे रिपीट नहीं हुए. सभी हारे. दुर्गति ऐसी कि सबके सब तीसरे नंबर पर रहे.
दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों के नतीजे
चांदनी चौक
डॉ. हर्षवर्धन (बीजेपी)- 436468
आशुतोष(AAP)-300515
कपिल सिब्बल(कांग्रेस)-175619
ईस्ट दिल्ली-
महेश गिरि (बीजेपी)- 572202
राजमोहन गांधी(AAP)-381739
संदीप दीक्षित(कांग्रेस)- 203240
नई दिल्ली
मीनाक्षी लेखी(बीजेपी)- 453350
आशीष खेतान(AAP)-290642
अजय माकन(कांग्रेस)-182893
नॉर्थ ईस्ट दिल्ली
मनोज तिवारी (बीजेपी)- 596125
आनंद कुमार(AAP)-452051
जय प्रकाश अग्रवाल(कांग्रेस)-214792
नॉर्थ वेस्ट दिल्ली-
उदित राज (बीजेपी)- 629860
राखी बिरला(AAP)- 523058
कृष्णा तीरथ(कांग्रेस)- 157468
दक्षिणी दिल्ली
रमेश बिधूड़ी (बीजेपी)- 497980
कर्नल देवेंद्र शहरावत(AAP)- 390980
रमेश कुमार(कांग्रेस)-125213
पश्चिमी दिल्ली
परवेश साहिब सिंह वर्मा (बीजेपी)- 651395
जरनैल सिंह(AAP)-382809
महाबल मिश्रा(कांग्रेस)-193266