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नक्‍सलियों का डर भगाने में जुटा चुनाव आयोग

छत्तीसगढ़ में फ्री एंड फेयर चुनाव कराना इलेक्शन कमीशन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इन दिनों चीफ इलेक्शन कमिश्नर सहित उनका पूरा अमला छत्तीसगढ़ में डेरा डाले है.

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छत्तीसगढ़ में फ्री एंड फेयर चुनाव कराना इलेक्शन कमीशन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इन दिनों चीफ इलेक्शन कमिश्नर सहित उनका पूरा अमला छत्तीसगढ़ में डेरा डाले है.

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दरअसल राज्य के चारों ओर नक्सलियों का बोलबाला है. प्रदेश के दो जिले छोड़कर शेष 28 जिलों में नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है. नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार कर रखा है. सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद नक्सली बड़ी से बड़ी वारदात कर गुजरते हैं. ऐसे में नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव ड्यूटी करने से सरकारी अफसर कतरा रहे हैं. कई कर्मचारी संगठनों ने तो पर्याप्‍त सुरक्षा न होने का आरोप जड़कर इलेक्शन ड्यूटी से अपने हाथ खड़े कर दिए हैं.

चीफ इलेक्शन कमिश्नर सहित उनका पूरा स्टाफ सरकारी अफसरों को इस बात का भरोसा दिलाने में माथापच्ची कर रहा है कि वे बगैर किसी डर के चुनाव में सहभागी बनें. कर्मचारियों को जोखिम भत्ता और अच्छा ख़ासा बीमा का लालच देकर पटाया जा रहा है. छत्तीसगढ़ में 10 दिसम्बर तक नई सरकार का गठन होना है. माना जा रहा है कि 15 सितम्बर तक राज्य में आदर्श आचार सहिता लग जायेगी. इसके मद्देनजर प्रदेश भर में पुलिसकर्मियों से लेकर उन प्रशासनिक अफसरों को हटाने का काम जारी है, जो तीन साल से ज्यादा समय से एक ही स्थान पर जमे हैं. खासकर नक्सल प्रभावित इलाकों में ज्यादातर सरकारी अफसरों ने स्थानीय स्तर पर नक्सलियों और उनके समर्थकों से मधुर संबंध बना लिए हैं, ताकि वे बेखौफ होकर नौकरी कर सकें.

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चुनाव के मद्देनजर ऐसे अफसरों और पुलिसकर्मियों की दूसरी जगह विदाई कर दी गयी है, लेकिन उनके स्थान पर तबादला होकर आए अफसर और कर्मचारियों ने अपना कामकाज सम्भालने में कोताही बरतनी शुरू कर दी है. कोई बीमारी का बहाना बनाकर अपना तबादला रद्द कराने में जुटा है, तो कोई पारिवारिक और प्रशासनिक कारण बताकर कार्य में उपस्थित नहीं हो रहा है.

दरअसल छत्तीसगढ़ में पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद नक्सली किसी भी गंभीर वारदात को अंजाम दे जाते हैं इस बार तो उन्होंने मतदान दल को सबक सिखाने की चेतावनी दी है. नक्सलियों ने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों, राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं और चुनावी ड्यूटी करने वाले अफसरों को मौत के घाट उतारने का फरमान जारी कर दिया है. इसके चलते सरकारी अफसरों और कर्मचारियों को अपनी जिंदगी जोखिम भरी नजर आ रही है. वो ना तो मतदान में हिस्सा लेना चाहते हैं और ना ही नक्सलियों से किसी प्रकार का बैर. सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस और प्रशासन के अफसर चुनाव आयोग को दो या तीन चरणों में मतदान करवाने के लिए राजी कर रहे हैं, ताकि पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों को एक-दूसरे इलाको में आने-जाने के लिए पर्याप्‍त समय मिल सके.

मतदान दलों को सुरक्षा और सुविधा का भरोसा दिलाकर चुनाव आयोग नक्सल प्रभावित इलाको में मिल रही चुनौतियों का सामना करने के लिए कमर कसे हुए है.

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