पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव दोनों में ही कांग्रेस फिसड्डी साबित हुई. लेकिन इस बार कलेवर बदलते हुए कांग्रेस ने अजय माकन को मैदान में उतारा, जो किरण बेदी और केजरीवाल से मुकाबला करने जा रहे हैं. माकन के साथ प्लस प्वाइंट है उनकी साफ छवि. उनके खिलाफ शीला दीक्षित जैसा कोई एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर भी नहीं है. माकन पर जिम्मेदारी यही है कि वे कांग्रेस के हताश वोटरों को वापस जोड़ें, जो आम आदमी पार्टी से जुड़ गए थे. कुछ और चुनौतियां भी हैं-
1. दहाई में पहुंचे सीटें
सबसे बड़ी चुनौती फिलहाल ये है कि सीटों की संख्या दहाई में न हो सके तो भी पिछली बार की आठ सीटों से कम न हो. रणनीति वैसे तो क्रिकेट और राजनीति दोनों में बनाई जाती है – मगर नतीजा कभी निश्चित नहीं होता. हारने जैसी हालत में क्रिकेट कप्तान जैसे-तैसे मैच ड्रॉ कराने की कोशिश करता है. अगर राजनीति में भी ये फॉर्मूला लागू होता तो अजय माकन उसका पूरा फायदा उठाने की कोशिश करते.
2. ‘ट्रस्टेड’ और ‘टेस्टेड’ की लड़ाई
किरण बेदी और केजरीवाल के लिए अजय माकन ने नया फॉर्मूला खोजा है. सार्वजनिक तौर माकन स्वीकार करते हैं कि किरण और केजरीवाल दोनों ‘टेस्टेड’ हैं लेकिन समझाते हैं कि दोनों ही ‘ट्रस्टेड’ नहीं हैं. केजरीवाल को माकन भगोड़ा और वादों से मुकर जानेवाला बताते हैं. इसके लिए उन्होंने एक बुकलेट भी जारी किया है, जिसका टाइटल है - '49 दिन की उल्टी चाल, दिल्ली हुई बेहाल, यू-टर्न केजरीवाल’.
शासन के मामले में किरण बेदी को अक्षम बताने के लिए माकन अलग तर्क देते हैं. वे कहते हैं, ‘किरण बेदी अच्छी पुलिसकर्मी थीं. लेकिन, राजनीतिक प्रशासन में बिल्कुल अलग क्षमता की जरूरत होती है. धैर्य की. सबको सुनना पड़ता है.’ बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से ही सुर्खियों में रहीं किरण बेदी का मंगलवार को बीच में ही टीवी शो छोड़ कर चले जाना माकन को अपनी बात समझाने में मददगार साबित हो रहा है.
3. सियासत या मौकापरस्ती का सवाल
किरण बेदी और केजरीवाल, अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के दो चेहरे थे. बात जब सियासत की आई तो दोनों जुदा हो गए. पहले केजरीवाल ने पार्टी बनाई. बाद में किरण बेदी ने बीजेपी का दामन थाम लिया. दिल्ली की गद्दी के लिए अब दोनों आमने-सामने हैं. माकन दोनों को मौकापरस्त बता रहे हैं. वे कहते हैं, ‘ये दोनों नेता समान अवसरवादी ताकतों का प्रतिनिधित्व करते हैं. दोनों ने आगे बढ़ने के लिए अन्ना हजारे और भ्रष्टाचार के मुद्दे का इस्तेमाल किया. इससे पहले वे एक एनजीओ की आड़ में थे और अब वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं.’
4. बहस की बहस में घुसपैठ
केजरीवाल ने किरण बेदी को खुली बहस की चुनौती दी तो उन्होंने इसे ड्रामा बताते हुए नामंजूर कर दिया. मौका देख अजय माकन बीच में कूद पड़े और ट्वीट कर दिया, 'मैं खुली और रचनात्मक बहस के लिए तैयार हूं. इस बहस के बहाने दिल्ली की जनता को तुलना करने का मौका मिलना चाहिए.'
बहस भले न हो, पर लोग ये तो समझें कि केजरीवाल भी तैयार हैं, माकन भी तैयार हैं. अगर कोई भाग रहा है तो वो हैं – किरण बेदी.
ऐसे में जबकि दिल्ली की कुर्सी की लड़ाई किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द सिमटी नजर आ रही है, माकन कांग्रेस के सरवाइवल के लिए संघर्ष कर रहे हैं. 10 फरवरी को अगर बीजेपी और आप दोनों बहुमत से दूर रहे और कांग्रेस की झोली में कुछ सीटें आ गईं तो पिछली बार की तरह उनकी पार्टी इस लायक तो हो ही जाएगी कि खेल बना या बिगाड़ सकें. किंगमेकर.