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ये हैं बीजेपी की हार की 10 वजहें

राजधानी दिल्ली में नरेंद्र मोदी का विजय रथ रुक गया. पिछले साल आश्चर्यजनक तरीके से सत्ता के करीब जापहुंची आम आदमी पार्टी ने इस बार उसे मात दे दी. पार्टी ने अपने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के बलबूते कांटे की टक्कर में यह चुनाव जीता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

राजधानी दिल्ली में नरेंद्र मोदी का विजय रथ रुक गया. पिछले साल आश्चर्यजनक तरीके से सत्ता के करीब जा पहुंची आम आदमी पार्टी ने इस बार उसे मात दे दी. पार्टी ने अपने प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं के बलबूते कांटे की टक्कर में यह चुनाव जीता है.

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पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल वाराणसी में पराजित होने के बाद से लगातार यहां प्रचार कर रहे थे और इसका फल उन्हें मिला. हम आपको बताते हैं कि हैं कि वो कौन सी 10 वजहें रहीं जिनके कारण बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा.

1. किरण बेदी की उम्मीदवारी
बीजेपी के आलाकमान ने अरविंद केजरीवाल की पूर्व सहयोगी किरण बेदी को सीधे मु्ख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बना दिया. इससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और उनके समर्थकों में काफी रोष पैदा हुआ. वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव में पूरी ताकत नहीं लगाई और उनके समर्थक भी काफी निष्क्रिय रहे.

2. किरण बेदी का व्यवहार
किरण बेदी भारत की पहली महिला पुलिस ऑफिसर थीं और लगभग चार दशक तक उस विभाग में रहीं. वह कड़क किस्म की अधिकारी थीं और राजनीति में कूदने के बाद भी उनका यह स्वभाव बदला नहीं. शुरू में वह जिस ढंग से कार्यकर्ताओं तथा नेताओं से बातचीत कर रही थीं वह उन्हें पचा नहीं. इससे वे उनसे दूर हो गए. उनके शुरूआती बयान भी कुछ पचे नहीं.

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3. चुनाव कराने में देरी
बीजेपी आलाकमान ने दिल्ली में चुनाव कराने में काफी देरी की. लोकसभा चुनाव में दिल्ली की 70 सीटों में से 60 पर बढ़त लेने के कारण बीजेपी आलाकमान अति आत्म विश्वासी हो गया और उसे लगने लगा कि वह कभी भी चुनाव जीत सकते हैं. अगर चुनाव उसके तुरंत बाद होते तो यह हार नहीं होती.

4. दिल्ली म्युनिसिपैलिटी का निकम्मापन
दिल्ली में एमसीडी के तीन टुकड़े इसलिए किए गए थे कि इसमें कार्य कुशलता आए लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इनकी कार्यशैली ऐसी थी कि महानगर को गंदगी, भ्रष्टाचार और निकम्मेपन का सामना करना पड़ा. इन सभी में बीजेपी सत्ता में काबिज है और लोग इनके काम-काज के तरीके से बेहद नाराज हैं.

5. निगेटिव प्रचार
इस चुनाव में बीजेपी का प्रचार केजरीवाल के इर्द-गिर्द रहा यानी उनकी आलोचना करने में पार्टी ने ज्यादा वक्त बर्बाद कर दिया. अपनी उपलब्धियों और आगे के कार्यक्रमों की बात करने के बजाय बड़े-बड़े विज्ञापनों के जरिये केजरीवाल को निशाना बनाया गया. इससे लोगों में नाराजगी हुई ठीक उसी तरह जैसे मोदी के खिलाफ व्यक्तिगत हमले करने वाले कांग्रेस के अभियान से. वो लोग जो तटस्थ थे केजरीवाल की तरफ आ गए.

6. सस्ती बिजली, मुफ्त पानी
केजरीवाल ने अपनी 49 दिनों की सरकार में सस्ती बिजली और मुफ्त पानी का प्रावधान किया था. इससे काफी तादाद में लोगों को फायदा हुआ. लोग इस बार भी यही उम्मीद कर रहे थे और इस आधार पर उन्हें वोट देने वालों की तादाद बड़ी थी.

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7. लोक लुभावने वादे
केजरीवाल ने इस चुनाव में वादों का पिटारा खोल दिया. हर मुद्दे के बारे में उन्होंने वादे किए. पानी-बिजली से लेकर लाखों अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने के वादे किए गए. लगभग 70 तरह के वादे पार्टी के घोषणा पत्र में किए गए जबकि बीजेपी ने ऐसा कुछ नहीं कहा. इससे पार्टी के समर्थकों की तादाद बढ़ी और उन्हें लगने लगा कि केजरीवाल के हर समस्या का समाधान है.

8. अल्पसंख्यक
इस बार 90 फीसदी अल्पसंख्यकों ने आम आदमी पार्टी को एक रणनीति के तहत वोट दिया और यही कारण है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरा. वे आरएसएस की घर वापसी और हिन्दूवादी संगठनों की उद्दंडता से नाराज थे. उन्हें आम आदमी पार्टी में एक विकल्प दिखा.

9. अन्य पार्टियों के नेताओं को प्रवेश
बीजेपी ने भी कांग्रेस की तरह चलते हुए अन्य पार्टियों के कई नेताओं को जगह दी. कुछ को टिकटें भी मिलीं. इससे वर्षों से वहां काम कर रहे स्थानीय नेता भड़क गए और उनमें से कई ने भीतरघात किया.

10. कांग्रेस की निष्क्रियता
कांग्रेस ने इस चुनाव को महज खानापूर्ति की तरह लिया. उन्होंने प्रचार पर कोई ध्यान नहीं दिया जिसका फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया. उसने उनके वोट बैंक जिनमें झुग्गी-झोपड़ियां और अल्पसंख्यक थे, कब्जा कर लिया. कुल वोटरों में ऐसे लोग तकरीबन 60 फीसदी तक हैं.

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