अमेरिका के ओहायो प्रदेश का क्लीवलैंड शहर यूं भी कम खूबसूरत नहीं है. लेकिन आसमान से बरसती दूधिया बर्फ ने उसकी सुंदरता में चार चांद लगा दिए हैं. तापमान माइनस में है. बर्फ के रेशे मद्धम-मद्धम पेड़ों, घरों और पहाड़ों की चोटियों को दूधिया करने में लगे हैं. डॉ. बशीर बद्र का शेर याद आ रहा है,
सब्ज़ पत्ते धूप की ये आग जब पी जाएंगे,
उजले फर के कोट पहने हल्के जाड़े आएंगे
सुर्ख-नीले चांद तारे दौड़ते हैं बर्फ पर,
कल हमारी तरह ये भी धुंध में खो जाएंगे.
पहाड़ों के जिस्मों पर बर्फों की चादर है. खुद में जकड़ता तेज़ जाड़े का एहसास है. दूर जाकर धुंध में खोती सड़कें हैं. ये माइकल जैक्सन का शहर है. दुनिया को अपने संगीत से झुमाने वाले 'रॉक एंड रोल’ की जन्मस्थली है. दुनिया में मशहूर रॉक एंड रोल म्यूज़ियम भी यहीं है. एक इत्तेफ़ाक़ है, जो अनूठी शक्ल लिए है- शहर का एक हिस्सा ‘मेक्का’ है तो दूसरा ‘मेडिना’. गंगा-जमुनी तहज़ीब से लबरेज़ भारतीय हिंदू-मुसलमान इसे 'मक्का-मदीना' का शहर कहकर खुश होते हैं.
यहां हिंदू-मुसलमान मिलजुल कर रहते हैं. हिंदू, हिंदी के विकास में जुटे हैं, मुस्लिम उर्दू के. साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजन यहां खूब होते हैं. तब,
दोनों एक दूसरे के शाना-ब-शाना खड़े नज़र आते हैं. हिंदी से वरिष्ठ साहित्यकार गुलाब खंडेलवाल यहां 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति’ के मुखिया कहलाते हैं, डॉ.
ज़ाहिद सिद्दीक़ी 'बज़्म-ए-अदब' का परचम लहराते हैं. इस तरह क्लीवलैंड की धरती पर एक और भारत धड़कता, सांस लेता है.
यहां, हिंदुस्तानियों के पेशे अलग-अलग हैं. मगर देश के लिए सोच एक है, विकास. इसीलिए इनकी निगाहें भारत में चल रहे आम चुनावों पर लगी हैं. दिल्ली के तख़्त पर होने वाली ताजपोशी पर गड़ी हैं.
सीनियर रेडियोलाजिस्ट डॉ. विमल शरण को केजरीवाल, भ्रष्टाचार रहित व्यवस्था और विकास के लिए जंच गए लेकिन उन्हें केजरीवाल का दिल्ली के मुख्यमंत्री पद को छोड़कर भागना रास नहीं आया. डॉ. विमल कहती हैं, 'केजरीवाल मुख्यमंत्री नहीं बनते तो लोकसभा में उनकी पार्टी शानदार प्रदर्शन करती. लेकिन उन्होंने हड़बड़ी में अपना खेल और साख बिगाड़ ली.'
हीरे-जवाहारात की जानकार किरण खेतान केजरीवाल को नए दौर की भारतीय राजनीति का नायक मानती हैं, और नरेंद्र मोदी को निर्भीक राजनेता. हिंदी लेखिका प्रतिभा खंडेलवाल और उनका परिवार केजरीवाल की शान में क़सीदे तो पढ़ते हैं लेकिन उन पर अपना वोट ख़र्च करने से झिझक भी दिखाते हैं. वह कहती हैं, 'तमाम ख़ूबियों के बावजूद पता नहीं क्यों केजरीवाल की शख़्सियत भरोसा नहीं जगा पाती.' आईटी फील्ड के सुमीत जैन को 'आप’ में आंदोलन की शानदार शुरुआत तो नज़र आती है लेकिन जल्द ही ये शुरुआत एक अंतहीन भटकाव में गुम होती दिखाई देने लगती है.
डॉ ज़ाहिद सिद्दीक़ी को कांग्रेस के उस पार कुछ नज़र नहीं आता. उन्हें कांग्रेस जातिवाद से परे और मज़हबी राजनीति से दूर खड़ी पार्टी दिखाई देती है. वह मानते हैं कि भारत के वर्तमान को जिस तरह के समाज की ज़रूरत है वह राहुल गांधी के नेतृत्व में सिर्फ कांग्रेस ही दे सकती है. कैंसर एक्सपर्ट डॉ. मुकेश भट्ट गुजरात से हैं. मोदी के अंधभक्त हैं और उन्हें भारत का प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. कहते हैं, 'मोदी ने गुजरात में गज़ब का विकास किया है, अब देश में देखना है.' भारत में चुनाव चल रहे हैं. और भारत से दूर अमेरिका में चुनावों पर चर्चा. जिज्ञासाएं जाग रही हैं. भारतीय मतदाताओं की उंगलियां, अमेरिकी-भारतीयों की आकांक्षाओं के हित में क्या करतब दिखाने वाली हैं इस पर कौतुहल बना हुआ है.
(हमारे वरिष्ठ साथी आलोक श्रीवास्तव इन दिनों अमेरिका यात्रा पर हैं और अलग-अलग शहरों में बसे भारतीयों का सियासी रुख परख रहे हैं.)
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डेट्रॉइट से लोकसभा चुनावों पर रिपोर्ट