डेट्रॉइट की शाम. करीब 350 भारतीयों का जमावड़ा. साहित्यिक माहौल. अचानक आयोजक मंडल की सदस्या मंच पर आईं और बोलीं, 'हमारे बीच विशेष रूप से आमंत्रित हैं श्री अनिल कुमार जी. मैं उनको मंच पर आमंत्रित करती हूं कि वो आएं और दो शब्द कहें.' नीले सूट में एक सज्जन माइक पर आए और उन्होंने बोलना शुरू किया, 'मेरे प्रिय भारतीय भाइयो-बहनो, मैं हूं अनिल कुमार और 2016 के लिए कांग्रेस (अमेरिकी संसद) का प्रत्याशी हूं. आप लोगों से सपोर्ट मांगने आया हूं. यहां भारतीयों की संख्या 20 हजार है और हमें जीतने के लिए सिर्फ 18 हजार वोट ही चाहिए तो अगर सारे भारतीय एक जुट होकर मुझे वोट दे दें तो वाशिंगटन डीसी में आपका एक अपना प्रतिनिधि होगा. आपकी आवाज पहुंचाने के लिए.'
तस्वीर साफ हो गई. भारतीय राजनीति और गतिविधियों पर पैनी नजर रखने वाले भारतीय, अमेरिका की सक्रिय राजनीति में भी उतरने के लिए कमर कस चुके हैं. अनिल कुमार इसकी मिसाल हैं. अमेरिका में बसे भारतीय तेजी से एकजुट हो रहे हैं. वो दिन दूर नहीं जब अमेरिकी संसद में भारतीयों की संख्या दमदार होगी. भारतीय, अमेरिकी शासन और सत्ता के केंद्र में आ जाएंगे. यहां बसे भारतीयों का यही मानना है इसलिए बेहतर से बेहतरीन भविष्य के नजरिए से हिंदुस्तानी सियासत की तरफ भी वो न सिर्फ अधिकार भाव से देखते हैं बल्कि उस पर खुलकर अपने विचार भी रखते हैं.
अरविंद की हड़बड़ी ने बिगाड़ी तस्वीर
लखनऊ के विजय कुदेशिया कहते हैं, 'केजरीवाल के राजनीति में आने पर एक आशा जगी थी. लेकिन उनकी हड़बड़ी ने पूरी तस्वीर ही बिगाड़ दी. अरविंद के अंदर अब सेवा के बजाए सत्ता की भावना आ गई है जो उनको आगे बढ़ने के बजाए पीछे धकेलेगी.' नरेंद्र मोदी के भविष्य को लेकर आशंकित बलरामपुर के सतीश शांत कहते हैं, 'बीजेपी मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर तो कर रही है लेकिन सहयोगी दलों का मोदी के नाम पर एकमत होना मुश्किल लगता है. ऐसे हालात में बीजेपी टूटेगी या फिर सहयोगी दल समर्थन हटाएंगे और मोदी के लिए मुश्किल पैदा करेंगे.'
लखनऊ के विजय कुदेशिया को अमेरिकी राजनीति में भारतीयों के बढ़ते प्रभाव के सकारात्मक पहलू नजर आते हैं. वो कहते हैं, 'भारत-अमेरिका रिश्तों की प्रगाढ़ता ही भविष्य के विश्व का भविष्य है.' उन्हें अपने हिंदुस्तान में केजरीवाल जैसे नेता की जरूरत है, लेकिन उनके साथ के लोगों की छवि के बारे में वो बहुत भ्रमित हैं. कुदेशिया पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं, 'टीम-केजरीवाल में राजनीतिक दांवपेंचों की कमी है जो उनको नुकसान करेगी और लोकसभा में सीटों की संख्या दहाई के आंकड़े तक नहीं पहुंचेगी.'
असल मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में
ज्यादातर भारतीय मानते हैं कि असल मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस में ही है. मोदी और राहुल में है. कांग्रेस पर घोटालों का दाग है तो मोदी पर साम्प्रदायिकता का इल्जाम. ऐसे में छोटी-छोटी पार्टियां अगर जीत भी गईं तो सरकार बनाने में अपनी शर्तें और मोल-भाव का हथकंडा अपनाएंगी. कुल मिलाकर अमेरिकी-भारतीयों में भी भारत के चुनावों को लेकर अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है. जितने मुंह उतनी बातें. लेकिन करवट तो ऊंट के लेने के बाद ही पता चलेगी.
(हमारे वरिष्ठ साथी आलोक श्रीवास्तव इन दिनों अमेरिका यात्रा पर हैं और अलग-अलग शहरों में बसे भारतीयों का सियासी रुख परख रहे हैं.)
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पढ़ें, रिचमंड में लोकसभा चुनाव पर क्या राय रखते हैं भारतीय