हरियाणा में 15 अक्टूबर को ऐतिहासिक मतदान हुआ. प्रदेश में बीजेपी को 4 से 40 के आंकड़े पर पहुंचाने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कमर कसी . एक के बाद एक ताबड़तोड़ रैलियां की गईं और रविवार को जो नतीजे आए, वह भी ऐतिहासिक.
फिर चला 'मोदी मैजिक'
प्रदेश में 10 वर्षों से काबिज हुड्डा सरकार खारिज हो गई है. हुड्डा ने अपनी हार कबूल कर ली है. यानी एक बार फिर 'मोदी मैजिक' ने बीजेपी के लिए जन्मघुट्टी का काम किया है. दिलचस्प यह है कि हरियाणा के लिए विकास शुरू से कोई मुद्दा नहीं था. यानी बीजेपी की जीत में मोदी की लहर वाकई सबसे बड़ा और हवाओं का रुख मोड़ने वाला कारक रहा है.
रोहतक बना रोड़ा
शुरुआती नतीजों मे 90 विधानसभा सीटों में से 12 पर बीजेपी ने जीत दर्ज कर ली है, जबकि 40 पर आगे चल रही है. इसके पीछे दूसरा बड़ा कारण कांग्रेस नीत सत्ता के लिए लोगों के दिल में घटती साख है. सीएम हुड्डा पर शुरू से यह आरोप लगते रहे हैं कि वह रोहतक के सीएम होकर रह गए. हालांकि हुड्डा सरकार ने विज्ञापनों के जरिए अपनी चमक बनाने के कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन चाहे अहिरवाल इलाका हो या कैप्टन अजय यादव के इस्तीफे का ड्रामा. कांग्रेस सरकार के लिए सभी परेशानी बनकर उभरे.
जनहित से अलगाव और कार्यकर्ताओं का हित
बीजेपी के लिए भ्रष्टाचार पर आईएनएलडी का मुद्दा यकीनन काम कर गया. हरियाणा जनहित से नाता तोड़ना पार्टी के सुस्त कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भर गया तो मोदी की ताबड़तोड़ रैलियों ने पार्टी में नया जोश भरा. बीजेपी ने सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारें, यह भी बीजेपी की जीत में एक प्रमुख कारक रहा है.
'दामाद जी' पर निशाना
कांग्रेस पर निशाना साधने में बीजेपी का सबसे बड़ा रामबाण वाड्रा लैंड डील रहा. एक ऐसा मुद्दा, जिस पर कांग्रेस के किसी नेता ने कुछ बोलना उचित नहीं समझा और बीजेपी के छोटे से छोटे कार्यकर्ता ने 'मुंहफाड़ आलोचना' की. स्थानीय नेता चौधरी वीरेन्द्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह का साथ आना भी बीजेपी के लिए जीत का गणित बनाने में मददगार साबित हुआ.
ओबीसी, दलितों का रुझान
इसे देश का दुर्भाग्य कहें या राजनीति की जमीन, लेकिन धर्म और जाति की राजनीति किसी भी चुनाव में अहम भूमिका निभाती है. हरियाणा में कुछ हटके लेकिन बहुत हद तक ऐसा ही हाल रहा. डेरा सच्चा सौदा के सपोर्ट ने बीजपी के खाते में कई वोटर जोड़ें, तो जाट और 'नॉन जाट' की राजनीति बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड बना. बीएसपी के घरोंदे में सेंध लगाते हुए बीजेपी ओबीसी और दलितों को रिझाने में भी कामयाब रही.