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Ground Report: पटियाला के महाराज से लेकर सियासत का सफर, लेकिन आगे 'कैप्टन' की राह नहीं आसान

इनके अंदाज़ राजाओं जैसे हैं और एक लंबा प्रशासनिक अनुभव भी है. पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे और पंजाब में कांग्रेस का चेहरा भी. इन्होंने बगावत भी की और पार्टी से मुखालफत भी की. हम बात कर रहे हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह की. कांग्रेस से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी बना चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह से शहरी व ग्रामीण इलाके के युवा नाराज हैं. कई मुद्दों को लेकर लोगों के पास शिकायतें हैं. ऐसे में कैप्टन के लिए राह आसान नहीं होगी.

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पटियाला की सड़कों पर निकले लोग   (Photo: Aajtak)
पटियाला की सड़कों पर निकले लोग (Photo: Aajtak)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कैप्टन ने बेरोजगारी के मुद्दे पर लड़ा था पिछला चुनाव
  • युवा बोले: अब तक नहीं पूरा हुआ कोई वादा

इन्हें पटियाला के महाराज के नाम से जाना जाता है. फौज में रहते हुए उन्होंने देश की सेवा की. ‌इनके अंदाज़ राजाओं जैसे हैं और एक लंबा प्रशासनिक अनुभव भी है. पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे और पंजाब में कांग्रेस का चेहरा भी. इन्होंने बगावत भी की और पार्टी से मुखालफत भी की. हम बात कर रहे हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह की. कांग्रेस से अलग होकर अपनी खुद की पार्टी बना चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह से शहरी व ग्रामीण इलाके के युवा नाराज हैं. कई मुद्दों को लेकर लोगों के पास शिकायतें हैं. ऐसे में कैप्टन के लिए राह आसान नहीं होगी.

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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के रहे करीबी दोस्त

1942 में जन्मे कैप्टन अमरिंदर सिंह के पिता पटियाला रियासत के आखिरी महाराजा थे‌. 1963 से लेकर 1966 तक कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिख रेजीमेंट में अपने मुल्क की सेवा की. किसी ज़माने में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी दोस्त भी रहे, जो इन्हें 1980 में राजनीति में लेकर आए. पहली बार लोकसभा सांसद बनने के बाद महज़ 4 सालों में ही ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में इन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.

शिरोमणि अकाली दल में हो गए थे शामिल

कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शिरोमणि अकाली दल का दामन थामा और पंजाब में अकाली दल की सरकार बनने के बाद तलवंडी साबो से जीते कैप्टन ने पहली बार पंजाब में बतौर मंत्री का पद संभाला. शिरोमणि अकाली दल से जब उनकी दूरियां बढ़ने लगीं तो 1992 में उन्होंने पार्टी का दामन छोड़कर अपनी नई पार्टी बना ली. 1998 में विधानसभा चुनाव हुए तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी ही नहीं, वह खुद अपनी सीट भी नहीं बचा पाए और हार के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय फिर से कांग्रेस में कर दिया.

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18 सितंबर 2021 को दिया था पद से इस्तीफा

कांग्रेस में रहते हुए वह तीन बार पंजाब प्रदेश के अध्यक्ष भी बने रहे और 2002 में मुख्यमंत्री भी बने. 2017 में कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा और फिर पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन अपने 5 सालों का कार्यकाल पूरा करने से पहले और पंजाब में विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट से ठीक पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. 18 सितंबर 2021 को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यह भी ऐलान किया कि वह अपनी नई पार्टी खड़ी करेंगे.

नवजोत सिंह सिद्धू से कैप्टन के बीच रही खटास

कैप्टन को हटाए जाने के पीछे बड़ी वजह पूर्व बीजेपी सांसद और मौजूदा कांग्रेस के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू माने जाते हैं. सिद्धू कैप्टन सरकार में मंत्री रहे, लेकिन दोनों के बीच खटास एक अलग स्तर पर थी. सिद्धू ने कैप्टन की सरकार तो छोड़ दी, लेकिन जब उन्हें कांग्रेस की कमान पंजाब में संभालने को मिली तो उसका सीधा खामियाजा कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपनी कुर्सी छोड़कर उठाना पड़ा. 2 नवंबर को पटियाला के महाराजा ने अपनी नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बनाई और बीजेपी के साथ गठबंधन कर पंजाब की तूफानी सियासी लहरों में अपनी नाव लेकर उतर चुके हैं.

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कैप्टन ने अपना सियासी नफा नुकसान देखकर ही कदम आगे बढ़ाया है, लेकिन जिस शहर ने उन्हें पहचान दी, उन्हें मकाम दिया, क्या वह शहर कैप्टन के इस नए कदम से इत्तेफाक रखता है? पटियाला के लोगों से सियासी मिजाज और अंदाज समझने की कोशिश करते हैं.

'वक्त के साथ कैप्टन ने पटियाला से मुंह मोड़ लिया'

स्थानीय पत्रकार मनीष कौशिक कहते हैं कि एक जमाने में कहा जाता था कि पंजाब की सियासत चलती ही पटियाला के इसी किले से थी, क्योंकि कैप्टन अमरिंदर जब भी मुख्यमंत्री रहे, वह हर सप्ताह समय निकालकर पटियाला जरूर आते थे, लेकिन न जाने वक़्त ने ऐसी करवट क्यों ले ली कि धीरे-धीरे कैप्टन ने पटियाला से मुंह मोड़ लिया. यहां के लोगों से और अपनी विरासत से दूर होते चले गए. मनीष कहते हैं कि जो कैप्टन साहब खुशमजाज और मिलनसार हुआ करते थे, वह अचानक धीरे-धीरे लोगों से दूर होते चले गए.

पटियाला में तमाम लोग कैप्टन के चाहने वाले भी

हालांकि पटियाला शहर में आज भी कई ऐसे लोग हैं, जो कैप्टन को सर आंखों पर बिठाते हैं. पटियाला के रहने वाले अनिल कुमार आज भी कैप्टन अमरिंदर को नेता नहीं, बल्कि महाराजा की तरह ही देखते हैं. अनिल कहते हैं कि कैप्टन साहब हमारे लिए महाराज थे और आज भी उनके लिए वही सम्मान है, क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल में पटियाला को बहुत सी सौगातें दी हैं. इसलिए आज भी लोग उनसे मोहब्बत करते हैं.

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पटियाला में कैप्टन के प्रशंसकों की कमी नहीं है. केएन मिगलानी कहते हैं कि उन्होंने कैप्टन साहब के जीवन को बेहद नजदीक से देखा है और आज भी वह उनसे प्यार करते हैं, लेकिन उनकी शिकायत यह है कि पटियाला में बदलाव की जो तस्वीर पिछले 1 साल से दिखाई दे रही है, उसकी शुरुआत कैप्टन अपने कार्यकाल में बहुत पहले ही कर सकते थे. उनके पास समय भी था और मौका भी. उन्होंने कैप्टन साहब और उनके कार्यकाल पर सवाल खड़े कर दिए.

'हवेली तक पहुंचना बेहद मुश्किल था'

महाराजा के राज में उनकी प्रजा को विकास और उनके वादों का जायका वैसा मिला, जैसे की उम्मीद की जा रही थी? अनुज त्रिवेदी कहते हैं कि कैप्टन साहब के साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उन तक पहुंचना मुश्किल था, क्योंकि उनकी हवेली पर जाने की अनुमति किसी को नहीं होती थी. ना ही उनके गेट लोगों के लिए खुलते थे. आज्ञा सिंह कहते हैं कि बहुत सारे वादे कैप्टन साहब ने किए, लेकिन उन वादों को उन्होंने पूरा करने की कोशिश नहीं की.

'लोगों के बीच कभी नहीं देखे गए कैप्टन'

ढाबा मालिक कहते हैं कि उन्होंने कभी कैप्टन अमरिंदर सिंह को 2017 के बाद पटियाला में नहीं देखा तो बाकियों की शिकायत भी यही है कि वह अक्सर लोगों के बीच देखे नहीं जाते थे. लोगों की राय यह भी है कि अगर कैप्टन साहब बीजेपी के साथ गठबंधन करके नई सियासी पारी का सपना देख रहे हैं तो वह सपना टूट सकता है. अनुज कहते हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस के लिए लायबिलिटी थे और उनको हटाने के बाद से ही कांग्रेस ने अपने होने वाले नुकसान को काफी कम कर दिया है.

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रोजगार के वादे पर बनी थी सरकार

2017 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान कांग्रेस का चेहरा रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में पार्टी ने गांव-गांव घर-घर जाकर रोजगार गारंटी कार्ड वितरण किया था और यह वादा किया था कि अगर कांग्रेस की सरकार पंजाब में बनती है तो हर घर के एक सदस्य को रोजगार दिया जाएगा. रोजगार की गारंटी मिलते ही युवाओं का एकमुश्त वोट कैप्टन अमरिंदर की ओर चला गया, जिसने रोजगार और बेहतर भविष्य के सपने देखने शुरू कर दिए. कैप्टन अमरिंदर अब सत्ता में तो नहीं रहे, लेकिन साढ़े 4 साल के कार्यकाल में उन्होंने पटियाला की जनता को क्या दिया. खासकर युवाओं के सपने कितने पूरे किए.

युवाओं ने कैप्टन पर लगाया वादाखिलाफी का आरोप

पटियाला शहर और गांव के रहने वाले युवाओं का सीधा आरोप है कि कैप्टन साहब ने रोजगार को लेकर जो वादा पूरा किया, वह आज भी वादा ही रह गया. गुरुजीत कहते हैं कि हमारे गांव में भी किसी को नौकरी नहीं मिली. तो हरप्रीत कहते हैं कि अपने किसी जरूरत को लेकर के कैप्टन साहब के घर जाना मुश्किल था, क्योंकि उनके दरवाजे ही नहीं खुलते थे. हरभजन मान कहते हैं कि कैप्टन साहब ने तो मोबाइल देने का भी वादा किया था, वह भी नहीं मिला तो गांव से आए प्रभजोत कहते हैं कि कैप्टन साहब ने ड्रग्स मिटाने का वादा भी किया था, लेकिन ड्रग्स का कारोबार अब उनके गांव में पहले से ज्यादा बढ़ गया है.

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पटियाला के युवा कहते हैं कि इस चुनाव में उनके सामने शिक्षा की बेहतर व्यवस्था और रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा होगा. युवाओं की राय में कैप्टन साहब की नई सियासी पारी उन्हें कुछ खास सफलता नहीं दे पाएगी. वे कहते हैं कि जब वह मुख्यमंत्री रहते हुए अपने वादा पूरा नहीं कर पाए तो बीजेपी के साथ जाकर भला वो क्या ही करेंगे.

ग्रामीण इलाकों में भी लोग कैप्टन से नाराज

पटियाला के ग्रामीण इलाकों में लोगों की राय जानी गई. यहां पटियाला जिले के सैदखेडी गांव के लोग कैप्टन साहब से बेहद नाराज हैं. ज्यादातर की शिकायत है कि कैप्टन साहब मुख्यमंत्री होते हुए भी उस राजा की तरह थे जो अपनी प्रजा से दूर रहते थे. सैड खेड़ी गांव के साधु सिंह कहते हैं कि वह तो राजा साहब थे, उन्हें जनता से मिलने की फुर्सत ही कहां थी. ना वह कभी आए, ना कभी वादे पूरे करते थे. बूटा सिंह कहते हैं कि वैसे तो वह मुख्यमंत्री थे, लेकिन उनके अंदर महाराजाओं वाला मिजाज था. इसलिए वह जनता से मिलना पसंद नहीं करते थे.

युवा बोले: लोगों से नहीं मिलते थे कैप्टन साहब
 
गांव के सरपंच से लेकर युवाओं की राय कैप्टन साहब को लेकर के एक ही है कि अपने कार्यकाल में वह लोगों से न मिलते थे, ना उनका हाल पूछते थे. गांव के लोगों का कहना है कि कैप्टन साहब ने उन्हें पिछले चुनाव में कई सपने दिखाए, लेकिन उन वादों को अधूरा ही छोड़ दिया, फिर चाहे वह रोजगार का मसला हो, बेहतर शिक्षा का हो या पंजाब को नशे की गिरफ्त से बाहर निकालने का. गांव के युवा सनी का कहना है कि पंजाब बर्बाद हो रहा है और नशा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन कैप्टन साहब ने वादा करने के बावजूद भी नशे के काले धंधे पर रोक नहीं लगाई.

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बेरोजगारी और ड्रग्स की समस्या है सबसे बड़ा मुद्दा

गांव के दूसरे निवासी जोगा सिंह कहते हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा बेरोजगारी और ड्रग्स की समस्या है, जिस पर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वादों के बाद भी ध्यान नहीं दिया. आज भी ड्रग्स गांव गांव में फैल रहा है. अब कैप्टन साहब जब बीजेपी के साथ गठबंधन करके आगे बढ़ रहे हैं तो गांव के लोग अपने सवालों के साथ तैयार खड़े हैं. बाबा साधू सिंह कहते हैं कि इस बार कैप्टन साहब को आशीर्वाद नहीं मिलेगा तो बूटा सिंह कहते हैं जब पिछले वादे पूरे नहीं किए तो इस बार सवाल जरूर पूछेंगे. गांव के युवा कहते हैं कि बेहतर शिक्षा की समस्या से समाधान और रोजगार इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा होगा.

पंजाब विधानसभा चुनाव नजदीक आने से पहले ही कैप्टन अमरिंदर सिंह की सियासत को गहरा झटका कांग्रेस ने दिया है. अब जब वह अपनी नई पार्टी बनाकर सियासत के समंदर में उतरने की कोशिश कर रहे हैं तो उनके पिछले वादे लहरों की तरह उनकी नाव से टकराने के लिए तैयार हैं. पटियाला के महाराज की राह आगे बेहद मुश्किल है.

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