दिल्ली कई रोज से दम से बहस कर रही है कि मोदी बनारस से चुनाव लड़ेंगे तो क्या हो जाएगा और इस लड़ने पर मुरली मनोहर जोशी क्यों भकुरे बैठे हैं. मगर आज इस खबर में हम आपको बता रहे हैं कि बनारस क्या सोचता है मोदी के बारे में. इस खबर में आंकड़ों की मार नहीं है. बस हवा का एक मुसलसल बयान है, जो इस रिपोर्टर ने अपने हालिया बनारस प्रवास के दौरान समाज के तमाम किरदारों से सुना.
संकटमोचन मंदिर से शुरू हुई यात्रा...
हम संकटमोचन मंदिर के बाहर थे. ये वही मंदिर है, जो सीरियल बम ब्लास्ट के चलते खबरों में था. सुरक्षा का आलम ये है कि बाहर काउंटर पर फोन और बैग जमा हो जाता है, मगर भीतर सिक्युरिटी एक नीली कमीज वाली यूनिफॉर्म पहने खैनी घिसते दुमकू चचा नुमा शख्स के जिम्मे है. यानी सब कुछ वाकई राम और हनुमान भरोसे है अभी भी. इस बारे में एक पुलिस वाले से पूछा, तो बोले. भइया राम जी रखाते हैं.
बहरहाल, राम जी की कथित तिजारत करने वाली बीजेपी के लिए ये बनारस की सीट सबसे खास बन गई है. और इसका इलहाम आप बनारस के किसी भी अखबार को देखकर लगा सकते हैं. और ये अखबार जरूरी नहीं कि आपने पहले कभी देखे सुने हों. नामी अखबारों के साथ ये चार पन्ने वाले ब्लैक एंड व्हाइट अखबार आजकल कुछ निश्चिंत हैं. वो इसलिए क्योंकि इनकी लीड खबर तय है. जोशी माने, जोशी रूठे. आज होगा मोदी के नाम का ऐलान. होली तक टल गया नाम का ऐलान. मतलब इहां से या उंहा से. घींच घांच के बाद मोदी पर ही टिका देनी है. कभी कभी व्यवधान होता है, जब मौर्या नाम का कोई शूटर बीयर बार लूट कर भागता है और बीच बाजार नए नए भर्ती हुए पुलिस जवान उसे मार रिवॉल्वर फायर ढेर कर देते हैं. मगर बनारस इस फैरिंग और शूट आउट पर मोदी के बाद ही चर्चा कर रहा है.
हां, तो हम अभी भी संकटमोचन के बाहर हैं. एक पहले गठीला रहा और अब कुछ तोंदू होने की राह पर चल पड़ा नौजवान खड़ा है. अपनी धार्मिक सामान की दुकान के बाहर. उसका कहना है. भइया हमारे घर के चार वोट हैं. जोशी लड़े तो एक न देंगे. कुछ नहीं किए हैं पांच साल में. और गर मोदी आए तो. देंगे और मुहल्ला का भी वोट डलवाएंगे पूरा. और इन सज्जन के मुताबिक ‘मोदी जी कम से कम चार लाख वोट से चुनाव जीतेंगे’. इन्होंने एक और बात पते की बताई. बोले, भइया ये संकटमोचन और तमाम मंदिर के मैनेजमेंट कमेटी वाले भड़भडा़ए हुए हैं, जब से मोदी जी का नाम चला है. आज तक कोई कैंडिडेट आया हो. ये सब के सब कांग्रेसी ही रहे. मगर अब ये भी दाएं बाएं हो रहे हैं.
जाइए कानपुर जोशी जी...
मैं ये सुनता हूं और अगली बार जब दीवार पर नजर ठहरती है तो होली की शुभकामना देते मुरली मनोहर जोशी नजर आते हैं. ये वही जोशी हैं, जिन्होंने सुना है एक बार बयान दिया था कि सांसद का काम नाली खडंजे बनवाना नहीं, क्षेत्र की संसद में शान बढ़ाना है. देश के मसलों पर बहस करना है. जोशी जी विद्वान राजनेता हैं. और बनारस विद्वान तो है, मगर दंभ नहीं मलंग पर मर मिटता है. सो उन्हें मेरी एक बिन मांगी सलाह. आपसे न हो पाएगा. आप तो सीट बदल ही लें. वर्ना 2004 में इलाहाबाद सी हाराकीरी हो सकती है. जाइए कानपुर, मोदी लहर पर सवार हो. अगर जीते तो लोकसभा भी दिखेगी और दो बार के काबीना मंत्री और जीत की हैट्रिक रच चुके श्रीप्रकाश जायसवाल को हराने का जस भी मिलेगा.
...तो लकालक सड़कें बनवा देंगे मोदी
बनारस लौटते हैं. अबकी मुखामखम हो रहा है ऑटो वाले के सहयोगी से. हम सफर पर निकले ही थे कि पांच सौ मीटर आगे ऑटो रुका और एक सज्जन उचककर ड्राइवर के बगल में बैठ गए. मुंह में पान दबा. दिल्ली होती तो भरपूर डर जाते. वो आमिर खान वाला ऑटो ऐड याद करके. पता चला कि ये भी ऑटो वाले हैं. आगे तक जाना है. पूछा वोट किसे दोगे. तो बोले मोदी को. क्यों. ठहरे. मुस्कुराए. एक दूसरे की तरफ दोनों ने देखा. कुछ सलज्ज से हो गए. गोया पूछ लिया हो. सखि पिया से प्रीत क्यों. फिर बोले. भइया ये सड़कें देख रहे हैं आप. उखड़ी पड़ी हैं. बुरा हाल हो जाता है. टेंपो चलाने में. तो मोदी सड़कें बनवा देंगे क्या. हां भइया बनवा देंगे न. मेरे साढ़ू का लड़का है. सूरत में बताशे(पढ़ें गोलगप्पा) बेचता है. बता रहा था कि लकालक सड़कें होती हैं वहां. और उन पर रात भर बत्ती (लाइट) भी जलती रहती है. तो खूब बताशे बिकते हैं उसके.
गंगा को बचाना है तो मोदी को लाना है
मोदी जीतें-हारें लड़ें या न लड़ें. ये बनारस का एक बहुत बड़ा सच है कि यहां की सड़कें बहुत ज्यादा खराब हैं. जहां देखिए खुदा पड़ा है. आलम ये है कि चौराहे पर लाल टोपी वाले होमगार्ड भी मुंह पर जापानियों की तरह मास्क पहनकर खड़े होते हैं, ताकि उनकी सुरती में धूरा न चली जाए. और मसला सिर्फ सड़क का ही नहीं. वह भी है, जिसका बनारस रैली में बीजेपी के मौजूदा महानायक जिक्र कर गए. गंगा के प्रदूषण का. पीपे वाले पुल से अस्सी घाट तक तो पानी फिर भी हरा सा कुछ दिखता है. मगर फिर राजघाट तक पहुंचते पहुंचते काशी की ये गंगा काली सी होने लगती है. और यकीन मानिए, ये मणिकर्णिका या हरिश्चंद्र घाट पर जलती चिता की राख से नहीं ही हुआ है. बनारस को बचाना है, तो गंगा को बचाना ही होगा. और ये काम सिर्फ एक जगह नहीं होगा. पहाड़ से शुरू होगा. मगर चिंता मैदान को ज्यादा करनी पड़ेगी. क्योंकि वहीं ज्यादा मल डाला जाता है कई किस्म का इस धारा में.
गंगा पर समझ को कुछ पैना किया बबलू निषाद ने. उन्होंने कहा कि भइया, हम क्या करें. सबको फटाफट उस पार जाना है. फिर लौटकर दशाश्वमेध की आरती भी देखनी है. मजबूरन, सारी चप्पू वाली नाव हटाकर डीजल पंपिंग सेट फिट करने पड़े. अब दिक्कत ये है कि उनकी रोजी तो चल रही है. मगर गंगा में लगातार धक धक भक भक तेल का प्रदूषण भी तिर रहा है. बबलू वोट के सवाल पर सही चोट करते हैं. उनके मुताबिक भइया फर्क हमें नहीं पड़ता. न सामने घाट की दीवार को पड़ता है. बस फरक शकल का है. हमारी नहीं बदलती. उसकी हर चुनाव में बदल जाती है. नए नए नाम आ जाते हैं. नई तस्वीरों के साथ नारे पुत जाते हैं. दिल्ली में बैठे राजनीतिशास्त्री चाहें तो इसके आधार पर भी एक सिद्धांत बघार सकते हैं. पर ये वाकई तकलीफदेह है कि समाज के आखिरी छोर पर खड़ा आदमी उम्मीद खो चुका है लगभग.
हाल पिछले चुनाव का...
बहरहाल, बात हो रही थी बनारस के चुनाव की. चौकी पर एक छुटभैये और फिलहाल बेरोजगार नेता ने और ज्ञान बघार दिया. बोले, देखो भइया मोदी जी आए तो ठीक है जिता देंगे. मगर नेता तो अजय राय है. निकाल ही दिया था पिछली बार चुनाव. मगर ये खाकी वाले आखिरी में हिंदू मुस्लिम करा दिए. हमें तो लगता है कि पइसा देकर मुख्तार को लड़वाए यहां से. वर्ना जोशी तो गए थे. तो मित्रों नेता जी का ये कथन समझने के लिए आइए कुछ अतीत दर्शन भी कर लें.
बनारस भले ही संतों असंतों और घोंघाबसंतों की नगरी रहा हो. भले ही यहां समाजवादी, कांग्रेसी और वामपंथी, सबके मठ सजे हों. मगर राम लहर के बाद से खिला कमल ही है. 91 में श्रीश चंद्र दीक्षित सांसद बने और उसके बाद तीन दफा 96,98 और 99 में शंकर प्रसाद जायसवाल. 2004 में कुछ समीकरण बदले और कांग्रेस डॉ. राजेश मिश्र जीत गए. मगर 5 साल बाद ही बनारस फिर भगवा हो गया.
ये उसी पिछले चुनाव का हाल है. 2004 में इलाहाबाद का चुनाव सपा के कुंवर रेवती रमण सिंह के हाथों हारने के बाद जोशी बनारस आए थे. मगर यहां तो बीजेपी के लोकप्रिय विधायक अजय राय दावेदारी ठोंके थे. आलाकमान के सामने जब राय की नहीं चली तो वह साइकल पर सवार हो गए. मुकाबले के सीधे तौर पर तीन और कुल जमा पांच कोण बने. अजय राय ने एक मोर्चा संभाला, तो बीएसपी के हाथी पर सवार बाहुबली मुख्तार अंसारी ने दूसरा. और जैसा कि पहले जिक्र किया गया है. अस्सी घाट के चाय वाले भी बताते हैं कि आखिर में तो बस हिंदू मुस्लिम हो गया. बताते हैं कि इसी ध्रुवीकरण से जोशी की लाज बची. डिफेंडिंग सांसद मिसिर खेत तो रहे ही, चौथी पर जा गिरे. उनसे कुछ चार सौ वोट ही कम मिले इस इलाके में तेजी से उभर रहे अपना दल के विजय प्रकाश जायसवाल को. हार जीत की बात करें तो जोशी लगभग 17 हजार वोट से जीते. मुख्तार ने कड़ी टक्कर दी. अजय राय भी आखिर तक दम साधे रहे और सवा लाख वोट के साथ तीसरे पर रहे.
ध्रुवीकरण ही चुनाव का अंतिम सत्य है...
अब सवाल उठता है कि इस अतीत पुराण को फिलहाल बांचने का क्या मतलब. मतलब है. इससे हमारे आपके जैसे लोगों को कुछ पेच समझ आ सकते हैं. पहला यह कि बनारस के रोजमर्रा के जीवन में भले ही आपको सांप्रदायिकता की गंध न दिखे, क्योंकि धार्मिक आचरण यहां का सामान्य व्यवहार बन चुका है. मगर ध्रुवीकरण ही चुनाव का अंतिम सत्य है यहां पर. दूसरा, मुसलमान और दलित का गठजोड़ मारक साबित होता है. वर्ना मुख्तार अंसारी को सिर्फ दबंगई के दम पर तो इतने वोट न मिलते. भूमिहारों और राजपूतों की भी अच्छी संख्या है और इसी तरह से जायसवाल भी ताकतवर हैं. ’‘पंडित जी हर जगह की तरह पहले कांग्रेसी थे, फिर भाजपाई हुए और अब सत्ताई हो गए हैं. मतलब वह भी चतुर सुजान की तरह हवा का रुख भांपने लगे हैं.’ ये पंडित जी वाला ज्ञान हमें बीएचयू के रविदास गेट पर बनी मशहूर केशव की पान दुकान के बाहर एक सरकारी बाबू ने दिया.
तो आलम यह है कि अगर मोदी चुनाव लड़ते हैं, तो कांग्रेस की तरफ से दो दावेदार हैं. एक तो राजेश मिश्रा, जिन्होंने राहुल गांधी के हालिया दौरे के दौरान अपनी राहुल भइया के साथ खूब होर्डिंग टंगवाईं शहर में. दूसरे हैं अजय राय, जो अब साइकल से उतर हाथ मजबूत कर रहे हैं. मगर राय पिछला प्रदर्शन दोहरा पाएंगे, इसे लेकर बनारसी अब शक जाहिर करते हैं. उनका कहना है कि जोशी हल्के थे. मोदी वजनी हैं. और एक बात ये भी है कि अजय राय के प्रभाव क्षेत्र वाला एक बड़ा इलाका अब मछलीशहर संसदीय सीट में चला गया है परिसीमन के बाद. तीसरे दावेदार हैं मुख्तार अंसारी. फिलहाल उनकी पत्नी अफसा अंसारी उम्मीदवार हैं कौमी एकता दल से. मगर मुख्तार ने कल ही ऐलान किया कि गर मोदी लड़े तो हम भी हैं मैदान में. चर्चा यह भी है कि अंसारी की पार्टी का सपा में विलय कर उन्हें साइकिल की सवारी करा दी जाएगी. फिलहाल की बात करें तो नेता जी की साइकिल से पैडल मार रहे हैं कैलाश चौरसिया. वैसे तो वह सपा के टिकट पर पड़ोस के मिर्जापुर से विधायक हैं. मगर नेता जी के तमाम व्यावसायिक हित बनारस में हैं. ऐसा लहकट लबरा महफिलबाजों ने बताया. बताया ये भी गया कि चौरसिया जी भी जाएंगे. जैसे सुरेंद्र पटेल गए. ये सज्जन पहले बनारस से सपा कैंडिडेट थे. फिर कैलाश आए.
बसपा का कैंडिडेट अभी जाहिर नहीं हुआ. वैसे भी किसी ने खूब कहा है. बसपा का एक ही कैंडिडेट होता है. बहन मायावती. बाकी तो सब डमी है. खैर, ये उनकी अपनी राय हो सकती है. बसपा में तमाम धुरंधर हैं, मगर बनारस से कौन लड़ेगा, ये तो बहन जी ही तय करेंगी. या अखिलेश यादव के शब्दों में कहें तो बुआ जी. नाम एक जायसवाल जी का चल रहा है, जो मशहूर शराब कारोबारी जवाहर जायसवाल के खास बताए जाते हैं. मार्बल का व्यापार करते हैं और मेयर के चुनाव में पटखनी खा चुके हैं.
...तो बिना जुगाड़ के नहीं जीत सकते बनारस
चलते चलते हमको एक बड़े अखबार के पत्रकार ने फोन पर समझाया. देखो भइया, बनारस में बिना बाहुबल और धनबल के संभव नहीं है. अब पिछला चुनाव ही देख लीजिए जोशी जी का. कई कारोबारियों की प्रतिष्ठा भी लगी थी उसमें. तो सब सेट किया गया. अब इहां चुनाव नरेंद्र मोदी भी लड़ेंगे तो भी मुकाबला अंसारी से ही होगा. मतलब मुस्लिम वर्सेस हिंदू ही रहेगा मामला. मुसलमान एकमुश्त किसी मुस्लिम कैंडिडेट को ही वोट देगा. और एक बात. अभी जो कैंडिडेट दिख रहे हैं, सब हवा हो सकते हैं. मोदी के गणित पर ही सारी गणित सेट है. मोदी के लिए ही मुलायम सिंह ने सारी बिसात बिछाई है. सपा को भी दिखाना है कि हम रहनुमा हैं मुसलमानों के. इसलिए पार्टियों ने जो उतारा है, बदला जा सकता है. अब देखो आप. किसी को कानों कान खबर नहीं हुई और फूलपुर में कैफ को उतार दिया कांग्रेस ने.
इस बतकही में एक क्षेपक और जोड़ लीजिए. ये हमको सारनाथ के बाहर कार की स्टेयरिंग पर पैर टिकाए एक ठेकेदार नुमा लेकिन साहित्य पढ़े गुरू ने बताया. बनारस की सांसदी करना रायसीना हिल्स पर केंद्र की बागडोर संभालने से कम मुश्किल नहीं होगा. शहर गत वैभव और आयातित आगत के बीच अटका हुआ है. इसका एक छोर सतयुग तक जाता ही है, दूसरे छोर की पहुंच अभी बनारस तय नहीं कर पाया है. कहते हैं गपबाज की पहले तय कर ले नापेगा कौन, तब ये भी देख लिया जाएगा कि छोर पहुंचा कहां तक.
फिलहाल बनारस किमाम वाले जर्दा और मगही पत्ते के साथ दाढ़ के नीचे पान गुलगुला रहा है. इस इंतजार में कि देखें कौन ससुर आते हैं और क्या गुल खिलाते हैं. ये बनारस है. भस्म और आरती से बना शहर. कबीर और तुलसी को एक सुर में साधता शहर. रेत गंगा और रेलवे इंजन कारखाने का शहर. और अब शायद मोदी का भी शहर.