अभी तक के सबसे टेक्नोसेवी मुख्यमंत्री के रूप में खुद को स्थापित करने वाले नरेंद्र मोदी का सफर कई राहों से गुजरते हुए अब इस मुकाम पर पहुंचा गया है जहां पार्टी के नेता भी मोदी के खिलाफ कुछ कहने से पहले कई बार सोचते हैं.
केशुभाई पटेल ने जब नरेंद्र मोदी को सत्ता की बागडोर सौंपी थी तब यह अनुमान लगाना कतई संभव नहीं था कि आने वाले कई वर्षों तक मोदी गुजरात की सत्ता पर काबिज रहेंगे और देश के सामने विकास का एक ऐसा मॉडल पेश करेंगे जो दूसरे राज्यों के लिए भी प्रेरक साबित होगा.
विपक्षी पार्टियों को नरेंद्र मोदी पसंद नहीं है. मोदी का विरोध उनके काम को लेकर नहीं बल्कि उस दंगें को लेकर किया जाता रहा है जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. विपक्षी पार्टियों का आरोप रहा है कि मोदी दंगा रोकने में कामयाब नहीं रहें थे. अगर मोदी चाहते तो दंगा को रोका जा सकता था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. मोदी ने सत्ता संभालने के साथ ही खुद को राजनीतिक संगठन मजबूत करने और राज्य के विकास के कामों पर लगा दिया.
उद्योग की बात हो या कृषि की, मोदी ने लोगों के सामने एक बेहतर विकल्प देने की कोशिश की. नतीजा यह रहा कि कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं ने उनके काम की तारीफ की. जैसे-जैसे यह तारीफ बढ़ती गई वैसे-वैसे मोदी का मॉडल 'विकास मॉडल' के रुप में परिवर्तित होते चला गया.
मोदी की तारीफ करने वालों में कई दूसरी पार्टियों के नेता भी शरीक हो गए. नरेंद्र मोदी काम करना जानते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि उस काम की पूरी कीमत वसूल करना भी उन्हें बखूबी आता है.
गुजरातियों को उसकी अस्मिता से जोड़ने की बात हो या फिर विकास को महिमामंडित करने की बात, वह हर कला में माहिर हैं. तकनीक का इस्तेमाल भी बखूबी करते हैं. अगर आज फेसबुक और ट्विटर पर देखें तो सबसे ज्यादा उनके फॉलोअर्स मिल जाएंगे. इंटरनेट पर पॉपुलर नेताओं की सूची में वो अव्वल हैं.
3डी के जरिए प्रचार करने वाले लोगों में उनके आस-पास भी कोई नहीं है. गूगल हैंगआउट के जरिए दुनिया के साथ संवाद करने वाले वो पहले भारतीय नेता हैं. विरोधी भी कहते हैं, आप मोदी को नापसंद करें या पसंद करें लेकिन उन्हें आप नजरअंदाज नहीं कर सकते.
तो यहां जानते हैं गुजरात में अपने आकर्षक व्यक्तित्व और दमदार छवि की बदौलत तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी के राजनीतिक सफर के बारे में...
नरेंद्र मोदी का सियासी सफरनामा...
- नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर, 1950 को गुजरात में मेहसाणा के वादनगर में एक मध्यमवर्गीय हिंदू परिवार में हुआ. मोदी के पिता का नाम दोमदर मूलचंद मोदी और माता का नाम हीराबेन मोदी है.
- बचपन में वह साधू बनना चाहते थे. साधू बनने के लिए घर से उत्तर भारत की ओर भाग गए. कुछ दिन साधुओं के साथ गुजारने के बाद मोदी ने साधू बनने का इरादा त्याग दिया और कुछ सालों बाद वापस लौट आए. घर वापस आकर उन्होंने अहमदाबाद में चाय बेची.
- मोदी ने गुजरात यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री प्राप्त की.
- 1987 में मोदी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ज्वाइन की. उस वक्त बीजेपी ने हिंदु राष्ट्रवाद को लेकर काफी जोर पकड़ रही थी. 1995 में गुजरात में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मोदी का वर्चस्व बढ़ते चला गया.
- गुजरात में बीजेपी की नींव मजबूत करने में शंकर सिंह वाघेला के साथ नरेंद्र मोदी का भी नाम शामिल है. कॉलेज के दिनों जव वह आरएसएस प्रचारक थे, तब वाघेला एक बड़े जनसमूह नेता थे. वही दिन थे जब मोदी में छिपी काबिलियत को पहचाना गया. उनकी रणनीति को हर जगह तारीफ मिली.
- लेकिन गुजरात में मोदी और वाघेला की ये जोड़ी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी. 1995 में बीजेपी के गुजरात की सत्ता में आने के बाद मोदी को दो अहम यात्राओं की जिम्मदारी सौंपी गई. उन्हें लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथयात्रा और कन्याकुमारी से कश्मीर तक के मार्च की यात्रा आयोजित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.
- 1995 में मोदी को बीजेपी का राष्ट्रीय सचिव बनाया गया और उन्हें 5 राज्यों की जिम्मेदारी सौंपी गई. इसके बाद उन्हें महासचिव बनाया गया. इसके बाद गुजरात और हिमाचल में चुनाव प्रचार में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी गई.
- 2001 में जब गुजरात में भूकंप के आने से 20,000 लोग मारे गए तब राज्य में राजनीतिक सत्ता में भी बदलाव हुआ. दबाव के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को अपना पद छोड़ना पड़ा. पटेल की जगह नरेंद्र मोदी को राज्य की कमान सौंपी गई और इसके बाद मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह आज तक गुजरात की सत्ता पर दमदार तरीक से काबिज हैं.
- इसके बाद वर्ष 2002 में गुजरात ही नहीं पूरे देश के इतिहास में वो काला अध्याय जुड़ गया जिसके बारे में किसी ने सोचा नहीं था. गोधरा में एक ट्रेन में सवार 50 हिंदुओं के जलने के बाद पूरे गुजरात में जो दंगे भड़के उसका कलंक मोदी आज तक नहीं धो पाए हैं. इन मुस्लिम विरोधी दंगों में करीब 1000 से 2000 लोग मारे गए. मारे गए लोगों में अधिकांश मुस्लिम थे. मोदी पर इल्जाम लगा कि उन्होंने दंगों को भड़काने का काम किया. आरोप ये भी लगा कि वह चाहते तो दंगे रोक सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. 2012 में उन्हीं की मंत्री माया कोडनानी समेत 30 अन्य को 28 साल जेल की सजा सुनाई गई.
- दंगों में धूमिल हुई छवि के बावजूद वर्ष 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में भी मोदी की जीत हुई.
- वर्ष 2005 में मोदी को अमेरिका ने वीजा देने से इंकार कर दिया.
- 2007 में विधानसभा चुनाव में फिर मोदी की जीत हुई और वह दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.
- वर्ष 2008 में मोदी ने टाटा को नैनो कार संयंत्र खोलने के लिए आमंत्रित किया. अब तक गुजरात बिजली, सड़क के मामले में काफी विकसित हो चुका था. देश के धनी और विकसित राज्यों में उसकी गिनती होने लगी थी. मोदी ने अधिक से अधिक निवेश को राज्य में आमंत्रित किया.
- वर्ष 2012 तक मोदी का बीजेपी में कद इतना बड़ा हो गया कि उन्हें पार्टी के पीएम उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा.
- 31 अगस्त, 2012 को मोदी ने ऑनलाइन तरीके से वैब कैम के जरिए जनता के सवालों के जवाब दिए. ये सवाल देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पूछे गए.
- मोदी ने जनता से जुड़ने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल किया. आज ट्विटर पर उनके लाखों फोलोअर हैं.
- 22 अक्टूबर, 2012 को ब्रिटिश उच्चायुक्त ने मोदी से मिलकर गुजरात की तारीफ की और वहां निवेश किए जाने की बात की. इसके साथ दंगों के बाद बाधित हुए ब्रिटेन और गुजरात के संबंध फिर से बहाल हो गए.
- दिसंबर, 2012 में मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान थ्री-डी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया और राज्य की ज्यादा से ज्यादा जनता को संबोधित किया.
- 20 दिसंबर, 2012 को मोदी ने फिर बहुमत हासिल किया और राज्य में तीसरी बार अपनी सत्ता का डंका बजाया.