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वाराणसी में कवियों का चुनावी चकल्लस

वाराणसी कवियों का शहर भी है. लिहाजा नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की हाई-प्रोफाइल भिड़ंत पर कविताओं के जरिये भी आनंद लिया जा रहा है. कविगण अपनी पंक्तियों के जरिये राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य कर रहे हैं.

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वाराणसी कवियों का शहर भी है. लिहाजा नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल की हाई-प्रोफाइल भिड़ंत पर कविताओं के जरिये भी आनंद लिया जा रहा है. कविगण अपनी पंक्तियों के जरिये राजनीतिक व्यवस्था पर व्यंग्य कर रहे हैं.

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माहौल कुछ यूं है कि कवियों की महफ़िल वाराणसी के दरभंगा घाट पर सजी है. गंगा किनारे न सिर्फ़ वर्तमान राजनीति पर चर्चा हो रही है बल्कि कटाक्ष भी किए जा रहे हैं. कोई मोदी में ही उम्मीद तलाश रहा है तो किसी को अजय राय भा रहे हैं. चाय की दुकान पर पान की संगत में राजनीति पर मजेदार तरीके से बातचीत हो रही है.

हास्यकवि चकाचौंध ज्ञानपुरी अपनी कविता यहीं से शुरू करते हैं, 'केजरीवाल जी बनारस आए, स्वागत में टमाटर और अंडे पाए.'

डॉ. पूर्णिमा पढ़ती हैं, 'हर शख्स का चेहरा खिल गया, लगता है कोई रोजगार मिल गया, ये नेता टटोलते हैँ हमारी उंगलियां, लगता है इन्हें कोई औजार मिल गया.'

चपाचप बनारसी संकेतों में संदेश देते हुए पढ़ते हैं, 'अपने भीतर के ईश्वर अल्लाह को जगाओ, बाहरी लोगों को भगाओ.'

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युवा हास्यकवि विजेंद्र मिश्र दमदार कहते हैं, 'हमेशा सामने वाले को गप्पू बताता है. जिसे फेंकू बताता था उसे पप्पू बताता है.'

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