भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वयोवृद्ध नेता अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत के सहारे संसद में पहुंचने की कोशिश में जुटे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ब्राह्मण और मुस्लिम समीकरण की फांस में फंस गए हैं. राजनीतिक विश्लेषकों और जानकारों की मानें तो फिलहाल के समीकरण राजनाथ के खिलाफ ही दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि ब्राह्मणों का वोट यदि भाजपा से खिसका तो राजनाथ की हार लगभग तय है.
यूपी की राजधानी में विरोधियों ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ की घेरेबंदी काफी कायदे से की है. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की ओर से नकुल दूबे, समाजवादी पार्टी (सपा) की ओर से अभिषेक मिश्र और कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी मैदान में हैं. कांग्रेस नेत्री जोशी ने वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार लालजी टंडन को कड़ी टक्कर दी थी और वह लगभग 40 हजार मतों से ही चुनाव हारी थीं. इस बार वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहेंगी. राजधानी में समीकरण इस कदर बने हैं कि राजनाथ को राजधानी की गलियों के चक्कर लगाने ही पड़ेंगे, वरना अटल के गढ़ में ही राजनाथ को मुंह की खानी पड़ेगी.
आंकड़ों की बात करें तो राजधानी में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या तीन लाख है. डेढ़ लाख पहाड़ी मतदाता हैं और इसके अलावा मुस्लिम मतदाताओं की संख्या चार लाख के आसपास है. ठाकुर मतदाताओं की संख्या महज 60 हजार के आसपास ही है और क्षत्रियों के सहारे लखनऊ की जंग जीतना राजनाथ के लिए आसान नहीं होगा.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि लखनऊ में कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा मैदान में नहीं उतरता है, तो लखनऊ संसदीय सीट पर पलड़ा रीता बहुगुणा जोशी का ही भारी रहने की संभावना है. विश्लेषकों के मुताबिक, यदि मुस्लिम समुदाय से कोई उम्मीदवार नहीं आया तो मुसलमानों का ध्रुवीकरण उसी के पक्ष में होगा जो भाजपा उम्मीदवार को हराने की स्थिति में होगा. जोशी खुद ब्राह्मण सुमदाय से हैं और उत्तराखंड से जुड़ी हैं, इसलिए इंदिरा नगर और उसके आसपास रहने वाले पहाड़ी लोगों का मत उनसे जुड़ सकता है. रीता ने पिछले चुनाव में कैंट विधानसभा में टंडन को भी शिकस्त दी थी. इसके अलावा कलराज मिश्र को देवरिया भेज दिए जाने की वजह से भी लखनऊ का ब्राह्मण समुदाय राजनाथ से खफा है. टंडन का टिकट कटने के बाद से पार्टी पहले ही स्थानीय स्तर पर अंतर्कलह से जूझ रही है. इस लिहाज से राजनाथ की राह आसान नहीं होने वाली.
लखनऊ में अभिषेक मिश्र को मैदान में उतारकर सपा प्रमुख ने राजनाथ का रास्ता पहले ही साफ कर दिया है. पिछले डेढ़ साल से अशोक वाजपेयी दिन रात मेहनत कर रहे थे लेकिन राजनाथ की उम्मीदवारी घोषित होने के साथ ही सपा ने यहां उम्मीदवार बदल दिया. ऐसी अटकलें हैं कि राजनाथ की राह आसान बनाने के लिए ही सपा की ओर से यह कवायद की गई है. वर्तमान समीकरण को देखते हुए इस चुनाव में लखनऊ संसदीय सीट पर जीत की चाबी मुसलमानों के पास ही रहने वाली है. यदि कोई मुस्लिम चेहरा मैदान में नही उतरा तो मुसलमानों का ध्रुवीकरण जोशी के पक्ष में होना लगभग तय है और ऐसी स्थिति में राजनाथ के मंसूबों पर पानी फिर सकता है.
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शरत प्रधान भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि फिलहाल रीता बहुगुणा की उम्मीदवारी काफी मजबूत दिख रही है. उन्होंने कहा, 'लखनऊ में मुलायम सिंह ने राजनाथ के लिए मैदान खुला छोड़ दिया है. राजनाथ की उम्मीदवारी घोषित होने के 24 घंटे के भीतर उम्मीदवार बदला जाना यही दर्शाता है कि उन्होंने राजनाथ को सेफ पैसेज दे दिया है.' प्रधान ने कहा कि अभिषेक मिश्र की स्थिति अशोक वाजपेयी के कद वाली नहीं है. वह एक महीने में क्या कर सकते हैं. फिलहाल जोशी की स्थिति बेहतर नजर आ रही है.
ब्राह्मण समुदाय के अलावा आम लोगों के बीच भी उनकी छवि एक बेहतर नेता की है और इसका लाभ उन्हें मुसलमानों के सहयोग के तौर पर मिल सकता है. इधर, लखनऊ के शहर काजी अबु इरफान फिरंगी महली ने कहा कि अभी तक मुसलमानों का रुझान साफ नहीं हो पाया है. जनता जैसे हालात देख रही है, उसमें उनकी भलाई के लिए कौन काम आ सकता है, उनका ही चयन वह करेगी. भाजपा के पक्ष में वोट देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि बद अच्छा, बदनाम बुरा. बदनामी के दाग के लिए विख्यात हो चुकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया है. हाल में एक ही व्यक्ति को शामिल किया गया और उसको भी गद्दारी का धब्बा लगाकर हटा दिया गया.
उन्होंने कहा कि जो पार्टी खुलेआम मुस्लिमों का विरोध कर रही हो, तब वह किस बुनियाद पर उसे वोट देगा. कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि मुस्लिम कांग्रेस का ठेकेदार नहीं है. जो उम्मीदवार जनता के बीच रहेगा, उसी का चयन किया जाएगा.