मध्य प्रदेश चुनाव में आखिरी वक्त में कांग्रेस से गठबंधन न हो पाना समाजवादी पार्टी को भारी पड़ा है. मध्य प्रदेश के जब नतीजे आए तो समाजवादी पार्टी को नोटा से भी आधे से कम वोट मिले हैं. मध्य प्रदेश में नोटा को 0.98% जबकि सपा को 0.46% वोट मिला.
समाजवादी पार्टी यह सोच रही थी कि अगर आधे दर्जन सीटों पर कांग्रेस पार्टी से उसका गठबंधन हो जाता और वह दो-तीन सीटें कांग्रेस के साथ जीत जाती, तो वह मध्य प्रदेश की तीसरी बड़ी पार्टी बन जाती. लेकिन कांग्रेस ने अखिलेश यादव को बीच में ही गच्चा दे दिया. जिससे बिफरे अखिलेश ने कांग्रेस को खूब खरी खोटी सुनाई थी. उसके बाद अखिलेश यादव ने 69 सीटों पर मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवार उतारे, करीब 6 दिनों तक मध्य प्रदेश में जमकर प्रचार किया. यहां तक की डिंपल यादव ने भी प्रचार किया.
दूसरे नंबर पर भी नहीं आ पाई कांग्रेस
लेकिन इक्के दुक्के सीटों को छोड़कर सपा को कहीं वोट तक नहीं मिला. 69 में से 43 सीटों पर समाजवादी पार्टी को 1000 से भी कम वोट मिले और सबसे अहम बात कि समाजवादी पार्टी एक भी सीट पर दूसरे स्थान यानी की रनर अप तक नहीं बन पाई.
यह मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी का अब तक का सबसे खराब परफॉर्मेंस है. मुलायम सिंह यादव के दौर में एक बार समाजवादी पार्टी आधे दर्जन से ज्यादा जीती थी और उसका वोट प्रतिशत भी पांच फीसदी से ज्यादा गया था.
राजस्थान में भी खराब रही सपा की हालत
समाजवादी पार्टी का राजस्थान में तो परफॉर्मेंस और भी खराब रहा. यहां राजस्थान में सपा ने पांच सीट पर चुनाव लड़ा था, जिसमें राजगढ-लक्ष्मणगढ़, थानागाजी, धौलपुर, नदबई अलवर सीट एक भी नहीं जीते और वोट 0.01 फीसदी मिला.
समाजवादी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी और दूसरे राज्यों में पांव पसारने के पहले संगठन पर ज्यादा ध्यान देना होगा.