आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी, लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि पॉपुलैरिटी के मामले में 'आम आदमी' केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी आगे निकल गए हैं. इंडिया टुडे-सिसरो के सर्वे में ये सब बातें सामने आयी हैं.
पिछले साल 49 दिन तक दिल्ली की सत्ता संभालने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पॉपुलैरिटी के मामले में किरण बेदी से आगे हैं. गौरतलब है कि बीजेपी ने किरण बेदी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है. मुख्यमंत्री के तौर पर दिल्ली के लोगों की पहली पसंद केजरीवाल हैं और दूसरे नंबर पर किरण बेदी ही हैं. एक और चौंकाने वाली बात ये है कि इस मामले में किरण बेदी ने बीजेपी के सभी पुराने धुरंधरों को पछाड़ दिया है.
इसी हफ्ते के शुरू में हुए इंडिया टुडे-सिसरो पोल में दिल्ली के 41 फीसदी लोग आम आदमी पार्टी के संयोजक को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं, जबकि किरण बेदी को 38 फीसदी लोग पसंद करते हैं. लेकिन इस रेस में कांग्रेस बहुत पीछे है और दिल्ली चुनाव में उनके चेहरे अजय माकन को सिर्फ 12 फीसदी लोग ही मुख्यमंत्री के तौर पर देखते हैं.
बीजेपी में किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर लोगों की मिलीजुली राय देखने को मिली. जहां 43 फीसदी लोगों को यह फैसला सही लगा वहीं 44 फीसदी लोगों का मानना है कि किरण बेदी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना गलत है. इस सर्वे में भाग लेने वाले आधे से ज्यादा लोगों का मानना है कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार वोट खींचने में अहम भूमिका निभाता है, जबकि पार्टी के नाम पर सिर्फ 23 फीसदी वोट मिलते हैं.
केजरीवाल पर दिल्ली का दिल
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के बारे में भी दिल्ली की जनता से कई सवाल किए गए. हाल ही में दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने केजरीवाल को भगोड़ा कहा था, लेकिन दिल्ली की जनता ऐसा नहीं मानती है. दिल्ली के सिर्फ 30 फीसदी लोग उन्हें भगोड़ा और मात्र 14 प्रतिशत लोग उन्हें अराजक समझते हैं. जब लोगों से पूछा गया कि मोदी के कहने के अनुसार क्या केजरीवाल को जंगल में जाकर नक्सलियों के साथ रहना चाहिए तो आश्चर्यजनक रूप से 44 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया, जबकि 34 फीसदी लोगों को लगता है कि प्रधानमंत्री को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए था.
हालांकि पिछले साल 49 दिन में ही सरकार से इस्तीफा देने के कारण केजरीवाल की हमेशा आलोचना होती है. और केजरीवाल खुद भी इसे अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी गलती मानते हैं, लेकिन उनके लिए राहत की बात ये है कि दिल्ली के करीब 50 फीसदी वोटर उन्हें पसंद करते हैं. 25 फीसदी लोग उन्हें करिश्माई नेता मानते हैं, जबकि 22 फीसदी लोग राजनीतिक नेता.
किरण बेदी पर दिल्ली की राय
आनन-फानन में किरण बेदी को बीजेपी में शामिल किए जाने पर दिल्ली के 37 फीसदी वोटरों का मानना है कि उन्हें केजरीवाल की काट के तौर पर पार्टी में शामिल किया गया है. हर चुनाव में मोदी के चेहरे को सामने रखकर वोट मांगने और दिल्ली में किरण बेदी को सीएम उम्मीदवार घोषित करने को भी दिल्ली के वोटर बीजेपी की रणनीति में बदलाव के तौर पर देखते हैं. कम से कम 12 फीसदी लोगों का मानना है कि इस बार बीजेपी को भी मोदी लहर पर भरोसा नहीं है.
जब लोगों से पूछा गया कि क्या बीजेपी के लिए किरण बेदी स्वभाविक चुनाव हैं तो 28 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया. 13 फीसदी लोगों को लगता है कि दिल्ली में बीजेपी के पास कोई चेहरा ही नहीं था. दिल्ली के 65 फीसदी वोटरों का मानना है कि किरण बेदी ने बीजेपी में शामिल होकर सही किया.
दिल्ली चाहे डिबेट
दिल्ली के 72 फीसदी वोटर चाहते हैं कि चुनाव से पहले तीनों पार्टियों के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों के बीच बहस हो. गौरतलब है कि जैसे ही बीजेपी ने किरण बेदी को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीवार घोषित किया था, वैसे ही केजरीवाल ने उन्हें जनता के बीच बहस की चुनौती दी थी. किरण बेदी ने शुरुआत में तो इसके लिए हामी भर दी, लेकिन बाद में उन्होंने कहा, केजरीवाल के साथ बहस अब दिल्ली विधानसभा में ही होगी. उधर दिल्ली में कांग्रेस के चेहरे अजय माकन ने भी बहस के लिए हामी भर दी थी.
दिल्ली का नेता कैसा हो?
यह लड़ाई बड़ी दिलचस्प रही और दिल्ली के 40 फीसदी वोटरों ने अरविंद केजरीवाल को अपना नेता माना, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सिर्फ 31 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी तो इस रेस में कहीं दिखे ही नहीं और उन्हें दिल्ली के 7 फीसदी वोट मिले. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी में दिल्ली के मात्र 1 फीसदी लोग अपना नेता देखते हैं. जबकि दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को 3 फीसदी लोग अपना नेता मानते हैं.
ये तो अवसरवादिता है
दूसरी पार्टियों से नेताओं का आयात कर बीजेपी में शामिल करने को लेकर पूछे गए सवाल पर दिल्ली के 47 फीसदी वोटरों ने इसे गलत बताया और कहा कि यह अवसरवादिता को बढ़ावा देने जैसा है. हालांकि 36 फीसदी लोगों का ऐसा मानना नहीं है. यही नहीं, 49 फीसदी लोगों ने माना कि बीजेपी के जिन पुराने नेताओं को टिकट नहीं दिया गया है वे चुनाव में पार्टी को नुकसान पहुंचाएंगे.
कैसे हुआ सर्वे
इंडिया टुडे-सिसरो के इस सर्वे में दिल्ली की 35 विधानसभा सीटों के करीब 2000 लोगों से सवाल पूछे गए. सर्वे पूरी तरह से निष्पक्ष और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार किया गया है.