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राज ठाकरे को लगा जोर का झटका

महाराष्ट्र की राजनीति में इस चुनाव के साथ कई संकेत सामने आए हैं. इनमें एक बेहद महत्वपूर्ण संकेत यह है कि वहां की राजनीति में मनसे के प्रमुख राज ठाकरे का राजनीतिक प्रभाव काफी कम हो गया है. पिछले विधानसभा चुनाव में वह बहुत चर्चा में रहे थे.

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राज ठाकरे की फाइल फोटो
राज ठाकरे की फाइल फोटो

महाराष्ट्र की राजनीति में इस चुनाव के साथ कई संकेत सामने आए हैं. इनमें एक बेहद महत्वपूर्ण संकेत यह है कि वहां की राजनीति में मनसे के प्रमुख राज ठाकरे का राजनीतिक प्रभाव काफी कम हो गया है. पिछले विधानसभा चुनाव में वह बहुत चर्चा में रहे थे.

जानकारों का कहना है कि राज ठाकरे ने इस बार लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नरेन्द्र मोदी के समर्थन में एक भी सीट पर नहीं खड़े होने का जो फैसला किया, वह उन्हें महंगा पड़ा. इससे उनकी पार्टी के कार्यकर्ता भ्रमित हो गए और वे चुप बैठे रहे. इसलिए जब वह विधानसभा चुनाव में खड़े हुए तो उन्हें जनता का कोई खास समर्थन नहीं मिला. उनके पास कोई बड़ा मुद्दा भी नहीं था. दरअसल पहले तो वह मराठी-गैर मराठी के झगड़े को भुनाकर राजनीति करते थे. वे गैर मराठिययों खासकर बिहारियों और उत्तर प्रदेश के लोगों के खिलाफ ज़हर उगलकर अपनी जड़ें मजूबत कर रहे थे लेकिन धीरे-धीरे यह आग ठंडी पड़ने लगी और लोगों की इसमें दिलचस्पी कम हो गई. मराठी मानुष का उनका नारा इस बार चल नहीं पाया.

2009 के चुनाव में राज ठाकरे को बहुत पब्लिसिटी मिली थी और उन्हें बाला साहब का असली उत्तराधिकारी माना जाने लगा लेकिन उनकी यह छवि कमज़ोर हो गई. उनकी पार्टी ने पिछले पांच सालों में कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके लिए उन्हें याद किया जा सके. उन्होंने इस दौरान टोल टैक्स का मुद्दा जरूर उठाया लेकिन उससे पूरे राज्य की जनता को खास मतलब नहीं था. जानकारों का कहना है कि राज ठाकरे की जीवन शैली भी बदल गई और वे आरामतलब हो गए थे. उन्होंने अपनी पार्टी को कोई नई दिशा नहीं दी जिससे वह आगे बढ़ सके.

अब ताजा स्थिति यह है कि मनसे महज 4 सीटों पर जीत पाएगी. इससे कुछ साबित नहीं होता. वह इस स्थिति में नहीं हैं कि मोलतोल कर सकें या कुछ ऑफर कर सकें.

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