अनुशासनहीनता के आरोप में बीजेपी से निकाले जाने से खफा जसवंत सिंह ने पार्टी पर रविवार को पलटवार किया. उन्होंने कहा कि बीजेपी ने अपना नजरिया खो दिया है और वह क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए व्यक्ति विशेष की मामूली सनक पर ध्यान देते हुए अपने मूल्यों से हट गई है.
साल 1980 में पार्टी का गठन होते समय इससे जुड़ने वाले जसवंत ने कहा कि बीजेपी अब वह नहीं रही जिसकी कल्पना इसके संस्थापकों अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत ने की थी. उन्होंने कहा कि पार्टी में मूल्यों, मानकों और अस्वीकार्य शॉर्टकट के बीच पूरी तरह भ्रम है. रविवार को जारी बयान में जसवंत ने कहा, 'जो पार्टी अपने सबसे वफादारों को बर्दाश्त नहीं कर सकती और किसी की मामूली सनक के आगे मामूली शिष्टाचार भी नहीं बचे तो उसने निश्चित रूप से अपना दृष्टिकोण त्याग दिया है और क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए अपने गुणों से हट गई है. क्या होगा, यह केवल वक्त बताएगा.'
बाड़मेर से टिकट चाहते थे जसवंत
बीजेपी ने जसवंत को शनिवार को 6 साल के लिए पार्टी से निकाल दिया गया था. इसकी वजह यह थी कि उन्होंने बाड़मेर से पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार कर्नल
सोनाराम चौधरी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरा. जसवंत बाड़मेर से पार्टी का टिकट चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं दिया गया.
जसवंत ने कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम के खिलाफ चुनाव लड़ने का बचाव करते हुए कहा कि इस क्षेत्र के चुनाव से पता चलता है कि बीजेपी जिन मूल्यों को लिए बनी थी उन्हें किस तरह पार्टी अनुशासन के नाम पर नष्ट किया जा रहा है. उन्होंने कहा, बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय क्षेत्र का चुनाव दुखद उदाहरण है कि किस तरह मूल्यों का क्षरण हो रहा है.
'BJP के समर्पित उम्मीदवार का समर्थन करता'
जसवंत ने कहा कि अपने निष्कासन से वह काफी दुखी हैं लेकिन बाड़मेर से चुनाव लड़ने का बचाव करते हुए कहा कि जाति को ध्यान में रखकर कांग्रेस उम्मीदवार को
उन पर तरजीह दी गई न कि वफादारी को ध्यान में रखकर. जसवंत ने कहा, चूंकि इस निर्णय में पारदर्शिता, ईमानदारी और उपयुक्त संवाद की कमी थी इसलिए मैं इस
पर सवाल खड़ा करता हूं. उन्होंने कहा कि बाड़मेर से बीजेपी के किसी भी समर्पित उम्मीदवार का वह समर्थन करते.
बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा था कि कुछ राजनीतिक बाध्यताएं हैं जिनके कारण बाड़मेर से जसवंत सिंह को टिकट न देने का फैसला किया गया. वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली राज्य इकाई जाट वोट के लिए चौधरी को टिकट देना चाहती थी.
जसवंत ने कहा, 'पार्टी प्रश्नचिह्न लगे सार्वजनिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवार को चुनना चाहती थी जिसने केवल एक दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ी थी. इस निर्णय का बचाव करने के लिए पार्टी ने मेरी जीत की संभावना पर संदेह जताया और मेरे रिकॉर्ड को श्रेय नहीं दिया चाहे यह 1989 में अशोक गहलोत पर हो या दो बार चित्तौड़गढ़ से हो या हाल में दार्जिलिंग से हो. पार्टी ने दल बदलने वाले व्यक्ति के पक्ष में जाति समीकरण बताया लेकिन मैं जाति को न तो स्वीकार करता हूं और न कभी किया है.'