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कर्नाटक का सियासी मिजाज: जानिए 224 सीटों की केमिस्ट्री और जियोग्राफी

कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. बीजेपी अपनी सत्ता को बचाए रखने की कोशिश में जुटी है तो कांग्रेस वापसी की कवायद में है. जेडीएस के लिए भी यह चुनाव काफी अहम बन गया है. ऐसे में कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों को छह रीजन में बांटकर वहां का राजनीतिक मिजाज को समझने की कोशिश की गई है.

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव का भले ही औपचारिक ऐलान न हुआ हो, लेकिन सियासी तपिश बढ़ गई है. बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस सहित तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं. बीजेपी दक्षिण भारत में अपने एकलौते दुर्ग को बचाए रखने की जद्दोजहद में जुटी है तो कांग्रेस मिशन-साउथ के तहत कर्नाटक की सत्ता में वापसी के लिए बेताब है. जेडीएस एक बार फिर से किंगमेकर बनने के लिए हाथ-पैर मार रही है. कर्नाटक के चुनाव पर सिर्फ कर्नाटक के लोगों की ही नहीं बल्कि देश भर की निगाहें हैं, क्योंकि इसे 2024 का सेमीफाइनल माना जा रहा है. 

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कर्नाटक का मिजाज एक जैसा नहीं

कर्नाटक को भौगोलिक तौर पर छह इलाकों में बांटकर वहां की सियासी तस्वीर पढ़ी जा सकती है. राज्य में हर इलाके का चुनावी मूड अलग होता है और उनके सियासी आग्रह और रुझान भी अलग होते रहे हैं. इन इलाकों में जातियों और समुदायों का वर्चस्व है. कर्नाटक में कुल 224 सीटें है, लेकिन राज्य को मुख्य रुप से 6 भागों में बंटा हुआ है. आंध्र प्रदेश से सीमाएं जुड़ने वाला क्षेत्र हैदराबाद कर्नाटक तो महाराष्ट्र से लगे इस क्षेत्र को मुंबई कर्नाटक कहा जाता है. हैदराबाद कर्नाटक में 40 सीटें आती हैं तो मुंबई कर्नाटक में 44, तटीय क्षेत्र 19 सीटें, ओल्ड मैसूर में 66 सीट, सेंट्रल कर्नाटक में 27 सीट और बैंगलोर क्षेत्र में 28 सीट हैं. ऐसे में हर इलाके का सियासी मिजाज क्या है.

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1. तटीय कर्नाटक: हिंदुत्व की प्रयोगशाला में कैसा एक्सपेरिमेंट

कर्नाटक का तटीय इलाका बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला मानी जाती है. बीजेपी कर्नाटक के इसी इलाके में मजबूत पकड़ रही है, जहां कांग्रेस तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक सेंधमारी नहीं कर सकी है. हालांकि, 2013 के चुनाव में येदियुरप्पा के अलग होने से कांग्रेस यहां बढ़िया प्रदर्शन करने में कामयाब रही थी. तटीय कर्नाटक क्षेत्र की कुल 19 सीटों में से कांग्रेस 14, बीजेपी 4 और एक सीट अन्य पार्टी जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन 2018 में येदियुरप्पा की घर वापसी का फायदा बीजेपी को चुनाव में मिला था. 

कोस्टल कर्नाटक इलाके में बीजेपी के हिंदुत्व फायर ब्रांड नेता और सांसद अनंत हेगड़े सबसे बड़े चेहरे माने जाते हैं, लेकिन उन्होंने लंबे समय से खामोशी अख्तियार कर रखी है. तटीय कर्नाटक में नाथ संप्रदाय के मानने वालों लोगों की संख्या अच्छी-खासी है, जिसके चलते बीजेपी योगी आदित्यनाथ को चुनावी प्रचार में उतारती रही है. मंगलुरू का कदाली मठ, जिसे योगेश्वर मठ के नाम से भी जाना जाता है. ये कर्नाटक में नाथ संप्रदाय का सबसे बड़ा केंद्र है. दक्षिण कन्नड़ और उडपी इलाके में नाथ संप्रदाय के लोगों की खास पकड़ है. आरएसएस का कर्नाटक के इसी इलाके में सियासी आधार रहा है. यहां की सियासी हिंदुत्व के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, जिसके चलते बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही यहां पर हिंदुत्व के पिच पर अपना एजेंडा सेट कर रही हैं. 

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2. ओल्ड मैसूर क्षेत्र: देवगौड़ा के दुर्ग में सेंधमारी?

दक्षिणी कर्नाटक जिसे पुराना मैसूर के नाम से भी जाना जाता है. यह पूरा हिस्सा वोक्कालिंगा समुदाय का गढ़ माना जाता है, जो जेडीएस परंपरागत वोटबैंक है. इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा असर भले ही वोक्कालिंगा समुदाय का है, लेकिन दलित और कोरबा समुदाय के लोग भी काफी निर्णायक हैं. वोक्कालिंगा समुदाय के वोटबैंक पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों की निगाहें लगी हुई. मैसूर इलाके में पारंपरिक रूप से लड़ाई कांग्रेस और जेडीएस के बीच में रही है. हालांकि, काफी समय से यहां बीजेपी अपने पैर जमाने की कवायद कर रही है, लेकिन उसे बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई है. 

साल 2013 के विधानसभा चुनाव में साउथ कर्नाटक क्षेत्र की 66 सीटों में से कांग्रेस 27 और जेडीएस 25 सीटें जीतीं थीं जबकि बीजेपी  को महज तब 4 सीटें मिली थीं, लेकिन 2018 के चुनाव नतीजे काफी अलग रहे हैं. जेडीएस भले ही सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बीजेपी को भी बढ़त मिली थी और कांग्रेस ने भी अपना दबदबा कुछ हद तक बनाए रखा था. दक्षिण कर्नाटक में लड़ाई जेडीएस और कांग्रेस के बीच रही, लेकिन बीजेपी जिस तरह से 4 से 15 सीटों पर पहुंच गई है. ऐसे में इस बार आधी से ज्यादा सीटों को अपने नाम करने की कोशिश में जुटी है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसी इलाके से कर्नाटक चुनाव का बिगुल फूंका था. 

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एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी वोक्कालिंगा समुदाय से आते हैं, जबकि सिद्धारमैया कोरबा समुदाय से. कांग्रेस डीके शिवकुमार वोक्कालिंगा समाज से आते तो के एच मुन्नियप्पा दलित समुदाय से है, लेकिन दोनों ही इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं. बीजेपी के पास इस इलाके में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं, जो वोक्कालिंगा समुदाय से आते हैं. ऐसे में बीजेपी को उनसे काफी उम्मीदें लगी हुई है. 

3. बेंगलुरु क्षेत्र: सत्ता का फैसला तय करेगा बेंगलुरु
 

बेंगलुरु क्षेत्र की सियासत कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिमटी हुई है. बेंगलुरु एक कास्मोपॉलिटन सिटी. यहां बड़ी संख्या पढ़े लिखे और मिडिल क्लास के मतदाता हैं, जो अलग अलग राज्यों से आकर यहां बस गए हैं. इस क्षेत्र में बेंगलुरु सिटी, बेंगलुरु नॉर्थ, बेंगलुरु साउथ और बेंगलुरु सेंट्रल इलाके आते हैं. कर्नाटक की सियासत में बेंगलुरु क्षेत्र का अपना मुकाम है. राज्य की सत्ता की राजनीति का रास्ता बेंगलुरु से तय होता है.

बेंगलुरु में ब्राह्मण समाज के लोगों की तादाद अच्छी खासी है, वो परंपरागत रूप से बीजेपी के समर्थक माने जाते हैं. उनका वोट बैंक भी बीजेपी को लाभ पहुंचा सकता है और शहरी क्षेत्र में उसका प्रदर्शन भी अच्छा रहता है. हालांकि, कांग्रेस का भी यहां परंपरागत वोटबैंक मुस्लिम रहा है. मुस्लिम के कारण भी कांग्रेस को कम नहीं आंका जा सकता. कर्नाटक में बीजेपी के युवा और फायर ब्रिगेड नेता तेजस्वी सूर्य और पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा इसी इलाके से आते हैं. कांग्रेस के दिग्गज नेता दिनेश गुंडूराव इसी क्षेत्र से आते हैं तो राज्य में पार्टी का मुस्लिम चेहरा के. रहमान खान भी बेंगलुरु से हैं. 

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4. मुंबई-कर्नाटक क्षेत्र: लिंगायत किसके साथ

महाराष्ट्र की सीमा से लगने वाले इलाके को मुंबई कर्नाटक कहा जाता है, लेकिन 2021 में महाराष्ट्र के साथ सीमा विवाद के चलते मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस रीजन का नाम मुंबई से बदलकर कित्तूर कर्नाटक कर दिया है. इस पूरे इलाके में लिंगायत समुदाय का दबदबा माना दाता है. ये इलाका लिंगायत समुदाय के बाहुल्य वाला है, जिसके चलते यहां पर बीजेपी की मजबूत पकड़ रही है. बीजेपी के यहां चेहरा कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा माने जाते हैं, जो लिंगायत समुदाय से आते हैं. बसवराज बोम्मई भी इस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं. 

कित्तूर इलाके में पानी की किल्लत बड़ी समस्या है. इस रीजन में बीजेपी का दबदबा था, लेकिन 2013 में येदियुरप्पा के पार्टी से अलग होने के बाद कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की थी. 28 सीटों में से कांग्रेस ने 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि बीजेपी ने 10 और जेडीएस ने 4 सीटों पर जीत हासिल की थी. पिछले चुनाव में पूरा समीकरण ही बदल गया था. कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला रहा था जबकि जेडीएस का पूरी तरह से सफाया हो गया था. बीजेपी अपने सियासी दबदबे को बनाए रखने तो कांग्रेस सेंधमारी की कवायद कर रही है. 

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5. हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र: खड़गे और रेड्डी बंधु की अग्निपरीक्षा

कर्नाटक के उत्तरी हिस्से और आंध्र प्रदेश से सटे इलाके को हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. इस पूरे क्षेत्र में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे का मुकाबला है जबकि जेडीएस का यहां कोई खास आधार नहीं है. इस क्षेत्र में कांग्रेस का सारा दारोमदार मल्लिकार्जुन खड़गे पर है जबकि बीजेपी के पास इस क्षेत्र में कोई बड़ा चेहरा नहीं है. यहां कास्ट समीकरण देखें तो लिंगायत, ओबीसी, बंजारा और दलित समुदाय की बड़ी आबादी है, जो किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. 

हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र में 40 विधानसभा सीटें आती है. साल 2013 के विधानसभा चुनाव में हैदराबाद कर्नाटक की कुल 40 सीटों में से कांग्रेस 22, बीजेपी 7 और जेडीएस 6 सीटें मिली थी तो येदियुरप्पा की पार्टी को 2 सीटें और बाकी अन्य के खाते में तीन सीटें गई थी. रेड्डी बंधुओं का भी इस इलाके में अच्छा खासा प्रभाव है, जो कभी बीजेपी के साथ रहे है, लेकिन खुद ही मैदान में है. पीए मोदी इस इलाके में रैली कर बंजारा और दलित समुदाय को साधने के लिए बड़ी संख्या में लोगों को जमीन का पट्टा दिया था. 

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6. सेंट्रल कर्नाटक: येदियुरप्पा का वर्चस्व रहेगा बरकरार

कर्नाटक में बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ सेंट्रल कर्नाटक माना जाता है. इस क्षेत्र में कर्नाटक के टुमकुर, दावनगेरे, चित्रदुर्ग और शिवमोगा जिले की विधानसभा सीटें आती है. लिंगायत समुदाय यहां की सियासत का फैसला करते हैं. सेंट्रल कर्नाटक में धार्मिक मठ और उससे जुड़े हुए संत सियासत को प्रभावित करते हैं. येदियुरप्पा सेंट्रल कर्नाटक के शिवमोगा से ही आते हैं. इस वजह से बीजेपी का शिवमोगा और चिकमंगलूर जिलों में दबदबा है. 2018 के चुनाव में इस क्षेत्र से कांग्रेस का जिस तरह से सफाया हुआ था, उसी तरह 2013 में बीजेपी को मात खानी पड़ी थी. 

2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि जेडीएस को 8 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए बीजेपी को महज 2 सीट पर सीमित कर दिया था. इस बार सेंट्रल कर्नाटक के इलाके में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद लगाए हुए हैं. दोनों ही सियासी पार्टियों का यहां बराबर राजनीतिक असर है. कांग्रेस निश्चित तौर पर कड़ी मेहनत करके यहां पिछले चुनावों के ट्रेंड को बदलना चाहती है तो बीजेपी अपने दबदबे को बनाए रखने की जुगत में है. ऐसे में देखना है कि कर्नाटक की सियासी बाजी किसके नाम लगती है. 

 

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